HAVE YOU EVER THOUGHT ? Who Are You ? A Doctor ? An Engineer ? A Businessman ? A Leader ? A Teacher ? A Husband ? A Wife ? A Son ? A Daughter are you one, or so many ? these are temporary roles of life who are you playing all these roles ? think again ...... who are you in reality ? A body ? A intellect ? A mind ? A breath ? you are interpreting the world through these mediums then who are you seeing through these mediums. THINK AGAIN & AGAIN.
Tuesday, 2 September 2014
ज्योतिष्क देव के भेद -
ज्योतिष्का:सूर्या चद्रमसौ ग्रह नक्षत्र प्रकीर्णक तारकाश्च: !!१२!!
संधिविच्छेद :-ज्योतिष्का:+सूर्या +चद्रमसौ ग्रह +नक्षत्र +प्रकीर्णक +तारका:+च
शब्दार्थ -ज्योतिष्का:-ज्योतिष्क देव सूर्या ,चद्रमा, ग्रह,नक्षत्र,प्रकीर्णक -फैले हुए,तारका:-तारे +च -और
अर्थ -पांच ज्योतिष्क देव सूर्य,चन्द्रमा,गृह,नक्षत्र और फैले हुए तारे है !
विशेषार्थ-
१-पांचों ज्योतिष्क देव ज्योति स्वभाव अर्थात प्रकाशमान होते है इसीलिए इन्हे ज्योतिष्क कहा है !
२-सूत्र में,सूर्य-प्रतीन्द्र और चद्रमा-इन्द्र का ,गृह नक्षत्र और तारों से अधिक प्रभावशाली दर्शाने के उद्देश्य से साथ रखा है!ये पांचो चमकते सूर्य,चन्द्र,गृह ,नक्षत्र ,तारे आदि ज्योतिष्क देवों के असंख्यात विमान है !
३-सभी ज्योतिष्क देव मध्य लोक में चित्रा पृथिवी से ७९० महायोजन ऊपर तारे ,८००महा योजन पर सूर्य,८८० महायोजन पर चन्द्रमा,८८४ योजन पर नक्षत्र ,८८८ महायोजन बुध,८९१ महायोजन पर शुक्र,८९४ महा योजन पर गुरु ,८९७ महायोजन पर मंगल और ९०० महायोजन पर शनि के विमान है !अर्थात ११० महा योजन आकाश में ज्योतिष्क देवों के विमान सुदर्शन समेरू पर्वत की ११२१ योजन दूर रहते हुए परिक्रमा करते है!ज्योतिष्क देव लोकांत तक असंख्यात द्वीप समुद्र तक है !
४- प्रत्येक विमान में संख्यात ज्योतिष्क देव रहते है ,प्रत्येक विमान में एक एक अकृत्रिम जिनालय है इस अपेक्षा से असंख्यात जिंलाय मध्यलोक में है !
५- गृह /नक्षत्र चमकते हुए ज्योतिष्क देवों के विमान के नाम है इसलिए यह हमारे को सुखी दुखी नहीं कर सकते !सुख दुःख हमें अपने क्रमानुसार साता वेदनीय अथवा असाता वेदनीय कर्म के उदय से मिलते है !ज्योतिष्क विद्या में प्रवीण ज्योतिष इन ज्योतिष्क विमान के गमन के आधार पर हमारा भविष्य तो अवश्य बता सकते है किन्तु उनका यह कहना की गृह /नक्षत्र हमारे सुख /दुःख के कारण है सर्वथा गलत है !
६-आजकल मंदिरों में अनेक स्थानो पर शनिवार को मुनिसुव्रत भगवान की पूजा -शनिग्रह के प्रकोप को समाप्त करने के लिए ,अथवा पार्श्वनाथ पूजा संकटों को दूर करने के लिए,अथवा शांतिनाथ भगवान की पूजा शांति प्रदान करने के लिए करी जाने लगी है ;जो की सर्वथा मिथ्यात्व के बंध का कारण है क्योकि आगमानुसार सिद्धालय में विराजमान सभी सिद्ध,शक्ति की अपेक्षा बिलकुल बराबर है जो कार्य एक भगवान कर सकते है वह सभी कर सकते है ,दूसरी बात सिद्ध भगवान वीतरागी,सिद्धालय में अनंत काल के लिए अनंत चतुष्क के साथ स्व आत्मा में मग्न है वे किसी के सुख /दुःख में कुछ नही कर सकते है और नहीं करते है!किसी भी भगवान की पूजादि करने से अशुभ कर्मों का आस्रव कम और शुभ आस्रव अधिक होता है,असातावेदनीय कर्म का संक्रमण भी साता वेदनीय कर्म में भी होता है ,इस कारण सांसारिक सुखो की अनुभूति अवश्य होती है!
६-भवनत्रिक देवों में सबसे कम भवनवासी देव है ,उनसे अधिक व्यन्तर और सर्वाधिक ज्योतिष्क देव है !
७-जम्बूद्वीप में २ सूर्य २ चन्द्रमा,लवण समुद्र में ४ सूर्य ४ चन्द्रमा,धातकी खंड में १२ सूर्य १२ चन्द्रमा ,कालोदधि समुद्र में ४२ सूर्य ४२ चन्द्र,पुष्करार्ध द्वीप में ७२ सूर्य और ७२ चन्द्रमा है इस प्रकार ढाई द्वीप में १३२सॊर्य और १३२चन्द्रमा है ! बाह्य पुष्करार्ध द्वीप में इतने ही ज्योतिष्क देव है !पुष्करवर समुद्र में इससे चौगनी संख्या है ! उसे आगे प्रत्येक द्वीप समुद्र में लोकांत तक दुगने दुगने सूर्य और चन्द्रमा है !
८-चन्द्रमा का परिवार में १ प्रतीन्द्र सूर्य ८८ गृह २८ नक्षत्र ,६६९७५ कोडकोडी तारे है!
९-तारे के टूटने का वर्णन -पद्मपुराण के रचियता महान आचार्य रविसैन जी के अनुसार पदमपुराण में कहते है की तारे अकृत्रिम अनादिकालीन है वे टूट नहीं सकते,उनकी संख्या हीनाधिक नहीं हो सकती !वे कहते है जब हनुमान जी यात्रा कर लौट रहे थे तो पर्वत पर हुए लेटे हुए वे आकाश से टूटता हुआ एक तारा देखते है !उन्होंने इस घटना का स्पष्टीकरण देते हुए कहा है कि"सम्भवत: कोई देव विचरण कर रहे हो जिनका चमकता हुआ वैक्रयिक शरीर,आयु पूर्ण होने के कारण,बिखर गया हो"जो की चमकीला होने के कारण तारे के टूटना जैसा लगता हो !