प्रश्न- 501 मोक्ष किसे कहते है ?
जवाब- 501 आत्मा के संपूर्ण प्रदेशों से समस्त कर्म पुद्गलों का सर्वथा क्षय हो जाना, मोक्ष कहलाता है ।
प्रश्न- 502 मोक्ष के मुख्य कितने भेद है ?
जवाब- 502 दो – 1.द्रव्य मोक्ष 2. भाव मोक्ष ।
प्रश्न- 503 द्रव्य मोक्ष किसे कहते है ?
जवाब- 503 आत्मा से कर्मपुद्गलों का विनष्ट होना द्रव्य मोक्ष है ।
प्रश्न- 504 भाव मोक्ष किसे कहते है ?
जवाब- 504 कर्म एवं रागद्वेष रहित आत्मा का शुद्ध उपयोग भाव मोक्ष है ।
प्रश्न- 505 मोक्ष तत्व के प्रकारान्तर से कितने भेद है ?
जवाब- 505 नौ अनुयोग द्वार रुप नौ भेद है- 1.सत्पदप्ररुपणा 2.द्रव्यप्रमाण 3.क्षेत्र 4.स्पर्शना 5.काल 6.अंतर 7.भाग 8.भाव 9.अल्पवहुत्व ।
प्रश्न- 506 सत्पद प्ररुपणा द्वार किसे कहते है ?
जवाब- 506 कोई भी पद वाला पदार्थ सत् (विद्यमान) है या असत् है । अर्थात् उस पदार्थ का अस्तित्व जगत में है या नहीं, उसकी विवक्षा करना, सत्पद प्ररुपणा द्वार है ।
प्रश्न- 507 मोक्षपद सत् है या नहीं, यह कैसे जाना जाता है ?
जवाब- 507 मोक्षपद सत् है क्योंकी यह शुद्ध एक पदवाला नाम है । जो एक पद वाले नाम से वाच्य वस्तु होती है, वह अवश्य विद्यमान होती है, जैसे कुसुम । दो पद से मिलकर बने हुए एक पदवाली वस्तु होती भी है और नहीं भी होती । जैसे उद्यान-कुसुम होता है परंतु आकाश पुष्प नहीं होता है । यह असत्पद है ।
प्रश्न- 508 मोक्ष पद की विचारणा किससे होती है ?
जवाब- 508 मार्गणाओं से ।
प्रश्न- 509 मार्गणा किसे कहते है ?
जवाब- 509 मार्गणा अर्थात् किसी वस्तु को खोजने के मुद्दे । अथवा विवक्षित भाव का अन्वेषण-शोधन मार्गणा कहलाता है ।
प्रश्न- 510 ज्ञान व अज्ञान के भेद कितने है ?
जवाब- 510 ज्ञान के 5 व अज्ञान के 3 भेद है ।
प्रश्न- 511 मतिज्ञान किसे कहते है ?
जवाब- 511 इन्द्रिय तथा मन के द्वारा जो ज्ञान होता है, उसे मतिज्ञान कहते है ।
प्रश्न- 512 श्रुतज्ञान किसे कहते है ?
जवाब- 512 शास्त्रों के पठन-पाठन द्वारा जो ज्ञान होता है, उसे श्रुतज्ञान कहते हैं ।
प्रश्न- 513 अवधिज्ञान किसे कहते है ?
जवाब- 513 इन्द्रियों तथा मन की सहायता के बिना केवल आत्मा से रुपी द्रव्यों का ज्ञान अवधिज्ञान कहलाता है ।
प्रश्न- 514 मनःपर्यवज्ञान किसे कहते है ?
जवाब- 514 जिस ज्ञान के द्वारा संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के मनोगत भावों को जाना जाय, उसे मनःपर्यव ज्ञान कहते हैं ।
प्रश्न- 515 केवलज्ञान किसे कहते है ?
जवाब- 515 जो ज्ञान किसी की सहायता के बिना सम्पूर्ण ज्ञेय पदार्थों को विषय करता है अर्थात् इन्द्रियादि की सहायता के बिना मूर्त-अमूर्त सभी सभी ज्ञेय पदार्थों को साक्षात् प्रत्यक्ष करने की शक्ति रखनेवाला ज्ञान केवलज्ञान कहलाता है ।
प्रश्न- 516 मति अज्ञान किसे कहते है ?
जवाब- 516 मतिज्ञान का विरोधि अर्थात् मिथ्यात्वी होने को होने वाला ज्ञान मति अज्ञान कहलाता है ।
प्रश्न- 517 श्रुत अज्ञान किसे कहते है ?
जवाब- 517 मिथ्यात्वी को शास्त्रों के पठन-पाठन से तत्व के विपरित जो ज्ञान होता है, उसे श्रु अज्ञान कहते है ।
प्रश्न- 518 विज्ञंगज्ञान किसे कहते है ?
जवाब- 518 मिथ्याद्रष्टि जीव के अवधिज्ञान को विभंगज्ञान कहते है ।
प्रश्न- 519 चक्षुदर्शन किसे कहते है?
जवाब- 519 चक्षु द्वारा जो सामान्य ज्ञान होता है, उसे चक्षुदर्शन कहते है ।
प्रश्न- 520 अचक्षुदर्शन किसे कहते है ?
जवाब- 520 अचक्षु अर्थात् आंख के बिना अन्य चार इन्द्रियों से जो सामान्य ज्ञान होता है, उसे अचक्षुदर्शन कहते है ।
प्रश्न- 521 अवधि दर्शन किसे कहते है ?
जवाब- 521 अवधि अर्थात् सीमा में रुपी तथा अरुपी पदार्थों का सामान्य ज्ञान होना अवधि दर्शन है ।
प्रश्न- 522 केवल दर्शन किसे कहते है ?
जवाब- 522 लोकालोक से रुपी तथा अरुपी समस्त पदार्थों का सामान्य अवबोध केवल दर्शन कहलाता है ।
प्रश्न- 523 लेश्या किसे कहते है ?
जवाब- 523 जिनके द्वारा आत्मा कर्मो से लिप्त होती है, मन के ऐसे शुभाशुभ परिणामों को लेश्या कहते है ।
प्रश्न- 524 लेश्या के कितने भेद है ?
जवाब- 524 छह – 1.कृष्णलेश्या 2.नीललेश्या 3.कपोतलेश्या 4.पीतलेश्या 5.पद्मलेश्या 6.शुक्ललेश्या ।
प्रश्न- 525 कृष्णलेश्या किसे कहते है ?
जवाब- 525 काजल के समान कृष्ण और नीम के अनन्तगुण कटु पुद्गलों के सम्बन्ध के सम्बन्ध से आत्मा में जो परिणाम होता है, वह कृष्ण लेश्या है । इस लेश्या वाला जीव क्रूर, हिंसक, असंयमी तथा रौद्र परिणामवाला होता है ।
प्रश्न- 526 नील लेश्या किसे कहते है ?
जवाब- 526 नीलम से समान नीले तथा सौंठ से अनन्त गुण तीक्ष्ण पुद्गलों के सम्बन्ध से आत्मा में जो परिणाम होता है, वह नील लेश्या है । इस लेश्यावाला जीव कपटी, निर्लज्ज, स्वादलोलुपी, पौद्गलिक सुख में रत रहने वाला होता है ।
प्रश्न- 527 कापोत लेश्या किसे कहते है ?
जवाब- 527 कबुतर के गले के समान वर्ण वाले तथा कच्चे आम के रस से अनन्तगुण कसैले पुद्गलों के सम्बन्ध से आत्मा में जो परिणाम होता है, वह कापोत लेश्या है । इस लेश्यावाला जीव अभिमानी, जड, वक्र तथा कर्कशभाषी होता है ।
प्रश्न- 528 पीत लेश्या किसे कहते है ?
जवाब- 528 हिंगुल के समान रक्त तथा पके आमरस से अनन्तगुण मधुर पुद्गलों के सम्बन्ध से आत्मा में जो परिणाम होता है, वह पीत लेश्या है । इस लेश्यावाला जीव पापभीरु, ममत्वरहित, विनयी तथा धर्म में रुची रखनेवाला होता है ।
प्रश्न- 529 पद्म लेश्या किसे कहते है ?
जवाब- 529 हल्दी के समान पीले तथा मधु से अनन्तगुण मिष्ट पुद्गलों के सम्बन्ध से आत्मा में जो परिणाम होता है, वह पद्म लेश्या है । पद्म लेश्यावाला जीव सरल, सहिष्णु, समभावी, मितभाषी तथा इन्द्रियों पर नियंत्रण करनेवाला होता है ।
प्रश्न- 530 शुक्ल लेश्या किसे कहते है ?
जवाब- 530 शंख के समान श्वेत और मिश्री अनन्तगुण मिष्ट पुद्गलों के सम्बन्ध से आत्मा में जो परिणाम होता है, वह शुक्ल लेश्या है । शुक्ल लेश्यावाला जीव राग-द्वेष रहित, विशुद्ध ध्यानी तथा आत्मलीन होता है ।
प्रश्न- 531 सम्यक्त्व किसे कहते है ?
जवाब- 531 दर्शन मोहनीय कर्म के क्षय, उपशम अथवा क्षयोपशम से जिन प्ररुपित तत्व पर श्रद्धा रुप जो आत्मा का परिणाम है, उसे सम्यक्त्व कहते है ।
प्रश्न- 532 औपशमिक सम्यक्त्व किसे कहते है ?
जवाब- 532 अनन्तानुबंधि कषायचतुष्क तथा सम्यक्त्व मोहनीय, मिश्र नोहनीय, मिथ्यात्व मोहनीय, इन सात कर्म प्रकृतियों की अन्तर्मुहूर्त तक पूर्ण रुप से उपशान्ति होने पर आत्मा में जो विशुद्ध परिणाम उत्पन्न होता है, उसे औपशमिक सम्यक्त्व कहते हैं ।
प्रश्न- 533 क्षायोपशमिक सम्यक्त्व किसे कहते है ?
जवाब- 533 उपरोक्त सातों कर्म प्रकृतियों में से छह का उपशम तथा सम्यक्त्व मोहनीय का उदय होकर क्षय हो रहा होता है, उस समय आत्मा के जो परिणाम होते हैं, उसे क्षायोपशमिक सम्यक्त्व कहते है ।
प्रश्न- 534 क्षायिक सम्यक्त्व किसे कहते है ?
जवाब- 534 उपरोक्त सातों कर्म प्रकृतियों का सर्वथा क्षय होने पर आत्मा में जो अत्यंत विशुद्ध परिणाम उत्पन्न होता है, उसे क्षायिक सम्यक्त्व कहते है ।
प्रश्न- 535 मिश्र सम्यक्त्व किसे कहते है ?
जवाब- 535 उपरोक्त सातों प्रकृतियों में से मात्र मिश्र मोहनीय का उदय हो, बाकि छह प्रकृतियाँ उपशान्त हो, उस समय सम्यग्-मिथ्यारुप जो आत्मा का परिणाम होता है, उसे मिश्र सम्यक्तव कहते हैं । इस सम्यक्त्व से जीव को सुदेव, सुगुरु तथा सुधर्म पर न श्रद्धा होती है, न अश्रद्धा होती है ।
प्रश्न- 536 सास्वादन सम्यक्त्व किसे कहते है ?
जवाब- 536 औपशमिक सम्यक्त्व से पतित होता हुआ जीव अनन्तानुबंधी कषाय के उदय से मिथ्यात्व भाव को प्राप्त करने से पूर्व जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट छह आवलिका पर्यंत सम्यक्त्व का कुछ आस्वाद होने से सास्वादन सम्यक्त्वी कहलाता है । उस जीव के स्वरुप विशेष को सास्वादन सम्यक्त्व कहते हैं । सम्यक्त्व से गिरकर मिथ्यात्व भाव को प्राप्त करनेवाले जीव को ही यह सम्यक्त्व होता है ।
प्रश्न- 537 मिथ्यात्व किसे कहते है ?
जवाब- 537 मिथ्यात्व मोहनीय कर्म के उदय से जीव में जो मिथ्या भाव प्रकट होता है, उसे मिथ्यात्व कहते हैं । इससे जीव को कुदेव-कुगुरु तथा कुधर्म पर श्रद्धा होती है ।
प्रश्न- 538 आहारमार्गणा के कितने भेद है ?
जवाब- 538 दो- 1.आहारक 2. अनाहारक ।
प्रश्न- 539 आहारक व अनाहारक किसे कहते है ?
जवाब- 539 जो जीव आहार ग्रहण करे, वह आहारक कहलाता है । जो जीव आहार रहित है, वह अनाहारक कहलाता है ।
प्रश्न- 540 चौदह मार्गणाओं में से किन-किन मार्गणाओं में जीव मोक्ष पा सकते है ?
जवाब- 540 10 मार्गणाओं मे ही मोक्ष है- 1.मनुष्यगति 2.पंचेन्द्रिय जाति 3.त्रसकाय 4.भव्य 5.संज्ञी 6.यथाख्यात चारित्र 7.क्षायिक सम्यक्त्व 8.अनाहारक 9.केवलज्ञान 10.केवलदर्शन ।
प्रश्न- 541 द्रव्य प्रमाणद्वार किसे कहते है ?
जवाब- 541 सिद्ध के जीव कितने हैं, इसका संख्या संबंधी विचार करना द्रव्य प्रमाण द्वार है । सिद्ध के जीव अनन्त हैं । क्योंकी जघन्य से एक समय के अन्तर में तथा उत्कृष्ट छह मास के अन्तर में अवश्य कोई जीव मोक्ष जाता है, ऐसा नियम है । एक समय में जघन्य एक तथा उत्कृष्ट 108 जीव भी मोक्ष में जाते हैं । इस प्रकार अनन्त काल बीत गया है, अतः उस अनन्तकाल में अनन्त जीवों की सिद्धि स्वतः सिद्ध है ।
प्रश्न- 542 क्षेत्र द्वार किसे कहते है ?
जवाब- 542 सिद्ध के जीव कितने क्षेत्र का अवगाहन करके रहते हैं, यह विचार करना क्षेत्र द्वार है ।
प्रश्न- 543 अनंत सिद्ध कितन् क्षेत्र में रहते है ?
जवाब- 543 अनंत सिद्ध लोकाकाश के असंख्यातवें भाग जितने क्षेत्र में रहते है ।
प्रश्न- 544 एक सिद्ध की जधन्य अवगाहना कितनी है ?
जवाब- 544 एक सिद्ध की जघन्य अवगाहना एक हाथ और आठ अंगुल अधिक है ।
प्रश्न- 545 सिद्धो की उत्कृष्ट अवगाहना कितनी ?
जवाब- 545 एक कोस (दो हजार धनुष) का छट्ठा भाग यानि 333 धनुष 32 अंगुल (1333 हाथ और 8 अंगुल) यह सिद्धों की उत्कृष्ट अवगाहना होती है ।
प्रश्न- 546 सिद्धों की मध्यम अवगाहना कितनी है ?
जवाब- 546 जघन्य अवगाहना से कुछ अधिक तथा उत्कृष्ट अवगाहना से कुछ कम सब मध्यम अवगाहना कहलाती है ।
प्रश्न- 547 सिद्धों को शरीर नहीं होता है फिर अवगाहना कैसी ?
जवाब- 547 शरीर तो नहीं है परंतु चरम शरीर के आत्मप्रदेश का घन दो तिहाई भाग जितना होता है । जघन्य दो हाथ तथा उत्कृष्ट 500 धनुष की अवगाहना वाले मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं । इसलिए उनके दो तिहाई भाग जितनी जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना होती है ।
प्रश्न- 548 सिद्धयमान कितनी ऊंचाई वाले सिद्ध होते है ?
जवाब- 548 जघन्य सात हाथ और पांच सौ घनुष की ऊंचाई वाले जीव सिद्ध होते हैं । जघन्य अवगाहना तीर्थंकरो की 7 हाथ, सामान्य केवलियों की दो हाथ की होती है ।
प्रश्न- 549 सिद्ध क्षेत्र कैसा है ?
जवाब- 549 ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी (सिद्धशीला) पैंतालीस लाख योजन की लम्बी-चौडी और एक करोड, बयालीस लाख, तीस हजार दो सौ गुण पचास योजन से कुछ अधिक परिधिवाली है । वह ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी बहुमध्य देशभाग में आठ योजन जितने क्षेत्र में आठ योजन मोटी है । इसके बाद थोडी थोडी कम होती हुई सबसे अंतिम छोंरो पर मक्खीं की पांख से भी पतली है । उस छोर की मोटाई अंगुल के असंख्येय भाग जितनी है ।
प्रश्न- 550 इतने ही क्षेत्र में सिद्ध होने का क्या कारण ?
जवाब- 550 मनुष्य क्षेत्र (ढाई द्वीप) 45 लाख योजन का है । ढाई द्वीप में से कोई जगह एसी नहीं, जहाँ अनन्त सिद्ध न हुए हो । जिस स्थान से मोक्षगामी जीव शरीर से मुक्त होते हैं, उनके बराबर सीधी लकीर में एक समय मात्र में जीव उपर लोकाग्र में पहुंचकर सदाकाल के लिये स्थिर हो जाते हैं ।
प्रश्न- 551 इतने छोटे क्षेत्र में एनंत सिद्ध कैसे समा जाते है ?
जवाब- 551 जहाँ एक सिद्ध हो, वहाँ अनंत सिद्ध रह सकते है क्योंकि आत्मा अरुपी होने के कारण बाधा नहीं आती । जैसे एक कमरे में एक दिपक का प्रकाश भी समा सकता है और सौ दिपक का प्रकाश भा समा सकता है ।
प्रश्न- 552 किस आयुष्य वाला जीव सिद्ध होता है ?
जवाब- 552 जघन्य आठ वर्ष तथा उत्कृष्ट कोटि पूर्व के आयुष्य में जीव सिद्धत्व को उपलब्ध हो सकता है । इससे कम-ज्यादा आयुष्य वाले जीव सिद्ध नहीं हो सकते ।
प्रश्न- 553 सिद्ध जीव संसारी जीवों की अपेक्षा कितने हैं ?
जवाब- 553 सिद्ध के जीव समस्त संसारी जीवों के अनन्तवें भाग जितने ही हैं ।
प्रश्न- 554 एक निगोदमें कितने कितने जीव होते है ?
जवाब- 554 एक निगोदमें अनंत जीव होते है । 1.संज्ञी मनुष्य संख्यात 2.असंज्ञी मनुष्य असंख्याता 3.नारकी असंख्याता 4.देवता असंख्याता 5.पंचेन्द्रिय निर्यंच असंख्याता 6.बेइन्द्रिय जीव असंख्याता 7.तेइन्द्रिय जीव असंख्याता 8.चउरिन्द्रिय जीव असंख्याता 9.पृथ्वीकाय असंख्यात 10.अप्काय असंख्यात 11.तेउकाय असंख्यात 12.वायुकाय असंख्यात 13.प्रत्येक वनस्पतिकाय असंख्यात । इन समस्त जीवों को इकट्ठा कर जोडने पर उससे भी सिद्ध के जीव अनंतगुणा है । सुई के अग्रभाग पर रहे हुए छोटे से छोटे कण में उससे भी अनंतगुणा अधिक जीव है । यह विचारणा बादर निगोद जीवों की अपेक्षा से है ।
प्रश्न- 555 जगत में निगोद के गोले कितने है ?
जवाब- 555 निगोद के असंख्य गोले है । एक-एक गोले में असंख्य निगोद है तथा एक-एक निगोद में अनन्त-अनन्त जीव है ।
प्रश्न- 556 अब तक मोक्ष में कितने जीव गये है ?
जवाब- 556 एक निगोद का अनन्तवाँ भाग ही मोक्ष में गया है ।
प्रश्न- 557 सूक्ष्म निगोद के जीवों को कितनी –वेदना होती है ?
जवाब- 557 सूक्ष्म निगोदमें रहे हुए जीव प्रति समय अनंत-अनंत वेदना भोगते हैं । उसे एक द्रष्टान्त से इस प्रकार समझ सकते हैं कि सातवी नरक का उत्कृष्ट आयुष्य 33 सागरोपम है । उसमें जितने समय (असंख्यात) होते हैं, उतनी ही बार कोई जीव सातवीं नरक में 33 सागरोपम की आयुष्यवाला नारकी रुप में उत्पन्न हो । वह सब दुःख इकट्ठा करे, उससे भी अनंतगुणा दुःख और वेदना एक समय में एक निगोद के जीव को होती है ।
प्रश्न- 558 जीवादि नवतत्वों को जानने का क्या फल है ?
जवाब- 558 जीवादि नवतत्वों का स्वरुप समझने वाले जीव को सम्यक्त्व प्राप्त होता है ।
प्रश्न- 559 सम्यक्त्व प्राप्त होने का क्या फल है ?
जवाब- 559 जिन जीवों ने अंतर्मुहूर्त मात्र भी सम्यक्त्व का स्पर्श कर लिया है, उनका संसारमें परिभ्रमण केवल अर्द्धपुद्गल परावर्तनकाल जितना ही शेष रहता है । अर्थात् अर्द्धपुद्गल परावर्तनकाल के अन्दर ही वह जीव अवश्यमेव सिद्धत्व को प्राप्त कर लेता है ।
प्रश्न- 560 पुद्गल परावर्तनकाल किसे कहते हैं ?
जवाब- 560 अनन्त उत्सर्पिणी तथा अनन्त अवसर्पिणी बीत जाने पर एक पुद्गल परावर्ततन काल होता है ।
प्रश्न- 561 नवतत्व जानने का सार क्या है ?
जवाब- 561 भव्य जीव इसका स्वाध्याय करके, जिनेश्वर प्ररुपित तत्व पर श्रद्धान करके विशुद्ध चारित्र पालन द्वारा मोक्ष को प्राप्त करें, यही नवतत्व के पठन-पाठन का सार है ।
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