Sunday, 11 September 2011

नवतत्त्व प्रकरण प्रश्नोत्तरी

प्रश्न- 1 तत्त्व किसे कहते है ?

जवाब- 1 चौदह राजलोक रुप जगत में रहे हुए पदार्थों के लक्षण, भेद, स्वरुप आदि को जानना, तत्त्व कहलाता है ।



प्रश्न- 2 तत्त्व कितने और कौन कौन से होते है ?

जवाब- 2 तत्त्व नौ हैं – 1.जीव 2.अजीव 3.पुण्य 4.पाप 5.आश्रव 6.संवर 7.निर्जरा 8.बंध 9.मोक्ष ।



प्रश्न- 3 जीव तत्त्व किसे कहते है ?

जवाब- 3 जीवों के लक्षण, भेद, स्वरुप आदि को जानना जीव तत्त्व है ।



प्रश्न- 4 जीव किसे कहते है ?

जवाब- 4 जो शुभाशुभ कर्मो का कर्ता-हर्ता तथा भोक्ता हो, जो सुख-दुःख रुप ज्ञान के उपयोग वाला हो, जो चैतन्य-लक्षण से युक्त हो, जो प्राणों को धारण करता हो, वह जीव कहलाता है ।





प्रश्न- 5 प्राण किसे कहते है ?

जवाब- 5 " प्राणिति जीवति अनेनेति प्राणः " अर्थात् जिसके द्वारा जीव में जीवत्व है, इसकी प्रतीति होती है, वह प्राण कहलाता है ।



प्रश्न- 6 अजीव किसे कहते है ?

जवाब- 6 जीव से विपरीत लक्षण वाला अजीव कहलाता है । जो चैतन्य लक्षण रहित जड स्वभावी हो, सुख-दुःख का अनुभव न करे, प्राणों को धारण न करे, वह अजीव कहलाता है ।

प्रश्न- 7 पुण्य किसे कहते है ?

जवाब- 7 जो आत्मा को पवित्र करें, जिसकी शुभ प्रकृति हो, जिसके द्वारा आमोद-प्रमोद, ऐश-आराम, सुख-साधनों की बहुलता प्राप्त हो, जिसके द्वारा जीव सुख का भोग करे, उसे पुण्य कहते है ।



प्रश्न- 8 पुण्य के कितने और कौन से प्रकार है ?

जवाब- 8 पुण्य के दो प्रकार हैः- 1पुण्यानुबंधी पुण्य 2.पापानुबंधी पुण्य ।



प्रश्न- 9 पुण्यानुबंधी पुण्य किसे कहते है ?

जवाब- 9 जिस पुण्य को भोगते हुए नया पुण्य बंधे, उसे पुण्यानुबंधी पुण्य कहते है । जैसे मेघकुमार ।



प्रश्न- 10 पापानुबंधी पुण्य किसे कहते है ?

जवाब- 10 जिस पुण्य को भोगते हुए पाप का अनुबन्ध हो, उसे पापानुबंधी पुण्य कहते है । जैसे मम्मण शेठ ।



प्रश्न- 11 पुण्य के 9 प्रकार कौन कौन से है ?

जवाब- 11 पुण्य के 9 प्रकार निम्नोक्त है ।

अन्न पुण्य - भुखे को भोजन देना ।

पान पुण्य - प्यासे की प्यास बुझाना ।

शयन पुण्य - थके हुए निराश्रित प्राणियों को आश्रय देना ।

लयन पुण्य - पाट-पाटला आदि आसन देना ।

वस्त्र पुण्य - वस्त्रादि देकर सर्दी-गर्मी से रक्षण करना ।

मन पुण्य - हृदय से सभी प्राणीयों के प्रति सुख की भावना ।

वचन पुण्य - निर्दोष-मधुर शब्दों से अन्य को सुख पहुंचाना ।

काय पुण्य - शरीर से सेवा-वैयावच्चादि करना ।

नमस्कार पुण्य - नम्रतायुक्त व्यवहार करना ।





प्रश्न- 12 पाप किसे कहते है ?

जवाब- 12 पुण्य से विपरीत स्वभाव वाला, जिसके द्वारा अशुभ कर्मो का ग्रहण हो, जिसके द्वारा जीव को दुःख, कष्ट तथा अशांति मिले, उसे पाप कहते है ।



प्रश्न- 13 पाप कितने प्रकार का है ?

जवाब- 13 पाप 2 प्रकार का हैः- 1.पापानुबंधी पाप 2.पुण्यानुबंधी पाप ।



प्रश्न- 14 पापानुबंधी पाप किसे कहते है ?

जवाब- 14 जिस पाप कर्म को भोगते हुए नये पापकर्म का अनुबंध हो, उसे पापानुबंधी पाप कहते है । जैसे विपन्न-दुःखी, कसाई इस भव में पाप कार्य से दुःख भोग रहे हैं और रौद्र तथा क्रूर कर्मो द्वारा वे नये पाप कर्म का उपार्जन कर रहे है, इसे पापानुबंधी पाप कहा जाता है ।



प्रश्न- 15 पुण्यानुबंधी पाप किसे कहते है ?

जवाब- 15 जिस पाप कर्म को भोगते हुए पुण्य का बंध हो, वह पुण्यानुबंधी पाप है । जैसे जीव दरिद्रता आदि दुःखो को भोगता हुआ मन में समता रखे कि यह मेरे ही पाप कर्म का परिणाम है । इस प्रकार की विचारधारा वाला जीव पाप कर्म को भोगता हुआ भी नये पुण्य का उपार्जन करता है । जैसे पूणिया श्रावक ।



प्रश्न- 16 आश्रव किसे कहते है ?

जवाब- 16 जीव की शुभाशुभ योग प्रवृत्ति से आकृष्ट होकर कर्मवर्गणा का आना अर्थात् जीवरुपी तालाब में पुण्य-पाप रुपी कर्म –जल का आगमन आश्रव कहलाता है ।



प्रश्न- 17 संवर किसे कहते है ?

जवाब- 17 जीव में आते हुए कर्मो को व्रत-प्रत्याख्यान आदि के द्वारा रोकना, अर्थात् जीव रुपी तालाब में आश्रव रुपी नालों से कर्म रुपी पानी के आगमन को त्याग-प्रत्याख्यान रुपी पाल (दिवार) द्वारा रोकना, संवर कहलाता है ।









प्रश्न- 18 निर्जरा किसे कहते है ?

जवाब- 18 आत्मा के साथ बंधे हुए कर्मो का देशतः क्षय होना या अलग होना निर्जरा कहलाता है ।



प्रश्न- 19 निर्जरा के अन्य भेद कौनसे है ?

जवाब- 19 निर्जरा के अन्य 2 भेद हैः- 1,सकाम निर्जरा 2.अकाम निर्जरा ।



प्रश्न- 20 सकाम निर्जरा किसे कहते है ?

जवाब- 20 आत्मिक गुणों को पैदा करने के लक्ष्य से जिस धर्मानुष्ठान का आचरण-सेवन किया जाय अर्थात् अविरत सम्यग्द्रष्टि जीव, देशविरत श्रावक तथा सर्वविरत मुनि महात्मा, जिन्होंने सर्वज्ञोक्त तत्त्व को जाना है और उसके परिणाम स्वरुप जो धर्माचरण किया है, उनके द्वारा होने वाली निर्जरा सकाम निर्जरा है ।



प्रश्न- 21 अकाम निर्जरा किसे कहते है ?

जवाब- 21 सर्वज्ञ कथित तत्त्वज्ञान के प्रति अल्पांश रुप से भी अप्रतीति वाले जीव-अज्ञानी तपस्वियों की अज्ञानभरी कष्टदायी क्रियाएँ तथा पृथ्वी, वनस्पति आदि पंच स्थावरकाय जो सर्दी-गर्मी को सहन करते हैं, उन सबसे जो निर्जरा होती है, वह अकाम निर्जरा कहलाती है ।





प्रश्न- 22 बंध किसे कहते है ?

जवाब- 22 जीव के साथ नीर-क्षीरवत् कर्म वर्गणाएँ संबद्ध हो, उसे बंध कहते है ।



प्रश्न- 23 मोक्ष किसे कहते है ?

जवाब- 23 ज्ञानावरणीयादि अष्ट कर्मो का आत्मा से सर्वथा नष्ट हो जाना, मोक्ष कहलाता है ।



प्रश्न- 24 नवतत्त्वों का वर्णन कौनसे आगम में हैं ?

जवाब- 24 स्थानांग सूत्र के 9 वें स्थान में नवतत्त्वों का वर्णन है ।





प्रश्न- 25 नवतत्त्वों में कौन-कौन से तत्त्व हेय-ज्ञेय तथा उपादेय है ?

जवाब- 25 1. हेय – पाप, आश्रव, बन्ध, पुण्य ।

2. ज्ञेय – जीव, अजीव ।

3. उपादेय – पुण्य, संवर, निर्जरा तथा मोक्ष ।



प्रश्न- 26 हेय-ज्ञेय तथा उपादेय से क्या तात्पर्य है ?

जवाब- 26 हेय – त्याग करने योग्य ।

ज्ञेय – जानने योग्य ।

उपादेय – ग्रहण करने योग्य या स्वीकार करने योग्य ।



प्रश्न- 27 पुण्य तत्त्व को हेय तथा उपादेय, दोनों में क्यों उल्लिखित किया गया है ?

जवाब- 27 जब तक जीवात्मा मोक्ष में नहीं पहुँचता है, तब तक पुण्य उपादेय अर्थात् ग्रहण करने योग्य है क्योंकि पंचेन्द्रिय जाति, मनुष्य जीवन, श्रेष्ठ कुल, स्वस्थ शरीर, विचक्षण बुद्धि, जिनधर्म, सुदेव तथा सुगुरु इन की पुण्य के परिणाम स्वरुप ही प्राप्ति होती है ।

अगर पुण्य नहीं होगा तो इन सबकी प्राप्ति नहीं होगी और इनके अभाव में संयम व मोक्ष की आराधना कैसे होगी ? अतः व्यवहार नय से पुण्य उपादेय है । ज्योंही मंजिल प्राप्त होती है, सीढियाँ स्वतः छूट जाती है, इसी प्रकार जीव पुण्य से समस्त अनुकूलताओं के प्राप्त होने पर मोक्षमार्ग पर गतिशील हो जाता है, तब पुण्य सोने की बेडी रुप होने से हेय अर्थात् त्याग करने योग्य है ।



प्रश्न- 28 आश्रव तत्त्व को हेय क्यों कहा गया ?

जवाब- 28 आत्मा के अंदर अनवरत रुप से शुभाशुभ कर्मो का आगमन होने से आत्मिक गुण आवृत्त होते जाते हैं, जिससे जीव को स्वयं के स्वरुप का भान नहीं रहता, अतः आश्रव तत्त्व हेय है ।



प्रश्न- 29 संवर तत्त्व उपादेय क्यों है ?

जवाब- 29 आते हुए कर्मो को रोकने से आत्मा के गुण अनावृत्त होते हैं, जिससे जीव का निजस्वरुप प्रकट होने लगता है, अतः संवर तत्त्व उपादेय है ।



प्रश्न- 30 निर्जरा तत्त्व की उपादेयता क्यों है ?

जवाब- 30 पुराने बंधे हुए कर्मो को आत्मा से विलग निर्जरा तत्त्व द्वारा किया जाता है । जैसे-जैसे कर्मो की निर्जरा होती है, वैसे-वैसे आत्म स्वरुप प्रकट होता जाता है, इसलिये निर्जरा तत्त्व उपादेय है ।









प्रश्न- 31 मोक्ष तत्त्व उपादेय क्यों है ?

जवाब- 31 कर्मो का संपूर्ण क्षय होना मोक्ष है । जब मोक्ष प्राप्त होता है, तो जीव अपने संपूर्ण शुद्ध स्वरुप को प्राप्त हो जाता है । उसमें किसी भी प्रकार का कर्म विकार रुप मल नहीं रहता । इस अमल-निर्मल तथा संपूर्ण आत्मदशा को प्राप्त होने का नाम ही मोक्ष है । अतः मोक्ष तत्त्व चरम एवं परमश्रेष्ठ होने से उपादेय है ।





प्रश्न- 32 नवतत्त्वों के कुल कितने भेद हैं ?

जवाब- 32 नवतत्त्वों के कुल 276 भेद इस प्रकार हैं – जीव-14, अजीव-14, पुण्य-42, पाप-82, आश्रव-42, संवर-57, निर्जरा-12, बंध-4, मोक्ष-9 ।



प्रश्न- 33 संसारी जीवों के विभिन्न अपेक्षाओं से कौन कौन से भेद होते है ?

जवाब- 33 संसारी जीवों के विभिन्न अपेक्षाओं से 6 प्रकार के भेद नवतत्त्व में उल्लिखित है ।



प्रश्न- 34 छह प्रकार के भेदों को स्पष्ट कीजिए ?

जवाब- 34 1. समस्त जीवों का मति व श्रुतज्ञान का अनन्तवां भाग प्रकट होने से समस्त जीव चैतन्यलक्षण से युक्त है । इस चेतना लक्षण द्वारा सभी जीव एक प्रकार के है ।

2. संसारी जीवों के त्रस तथा स्थावर ये दो भेद होने से जीव 2 प्रकार के है । त्रस व स्थावर इन दो भेदों में सभी संसारी जीवों का समावेश हो जाता है ।

3. वेद की अपेक्षा से समस्त संसारी जीव 3 प्रकार के है । कोइ जीव पुरुष वेद वाला है, कोइ स्त्रीवेद वाला है, कोइ नपुंसकवेद वाला है । इन तीनो वेद में समस्त संसारी जीव समाविष्ट हो जाते हैं ।

4. चार गतियों की अपेक्षा से संसारी जीव के 4 प्रकार के है । नरक. तिर्यंच, मनुष्य तथा देव इन चार गतियों से अलग किसी जीव का अस्तित्व नहीं हैं ।

5. इन्द्रियों की अपेक्षा से संसारी जीवों के 5 भेद हैं । एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय इन पांच भेदों में संसार की समस्त जीव राशी समाविष्ट है ।

6. षट्काय की अपेक्षा से संसारी जीवों के 6 प्रकार हैं । पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय इन षट्काय में समस्त संसारी जीव समाहित हो जाते है ।



प्रश्न- 35 इन्द्रियों के विषय किसे कहते है ?

जवाब- 35 पांच इन्द्रियों के माध्यम से आत्मा के अनुभव में आने वाले पुद्गल के स्वरुप को इन्द्रियों का विषय कहते है ।



प्रश्न- 36 इन्द्रिय के कितने भेद है ?

जवाब- 36 सामान्य रुप से इन्द्रिय के दो भेद है- 1.द्रव्येन्द्रिय 2.भावेन्द्रिय ।



प्रश्न- 37 द्रव्येन्द्रिय किसे कहते है ?

जवाब- 37 नाक, कान आदि इन्द्रियों की बाहरी तथा भीतरी पौद्गलिक संरचना को द्रव्येन्द्रिय कहते है ।



प्रश्न- 38 द्रव्येन्द्रिय के कितने भेद है ?

जवाब- 38 दो – 1. निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय 2. उपकरण द्रव्येन्द्रिय ।



प्रश्न- 39 निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय किसे कहते है ?

जवाब- 39 इन्द्रिय की रचना-विशेष को निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय कहते है ।



प्रश्न- 40 निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय के कितने भेद है ?

जवाब- 40 दो भेद है- 1.बाह्य निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय 2.आभ्यंतर निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय ।



प्रश्न- 41 बाह्य निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय किसे कहते है ?

जवाब- 41 इन्द्रियों के बाह्य भिन्न-भिन्न आकार को बाह्य निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय कहते है ।

प्रश्न- 42 आभ्यंतर निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय किसे कहते है ?

जवाब- 42 उत्सेधांगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और प्रतिनियत चक्षु आदि इन्द्रियों के आकार रुप से अवस्थित शुद्ध आत्म प्रदेशों की रचना को आभ्यंतर निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय कहते है ।

प्रश्न- 43 उपकरण द्रव्येन्द्रिय किसे कहते है ?

जवाब- 43 आभ्यंतर निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय के भीतर अपने अपने विषय को ग्रहण करने में समर्थ पौद्गलिक शक्ति को उपकरण द्रव्येन्द्रिय कहते है ।



प्रश्न- 44 उपकरण द्रव्येन्द्रिय के कितने भेद है ?

जवाब- 44 दो- 1. बाह्य उपकरण द्रव्येन्द्रिय 2. आभ्यंतर उपकरण द्रव्येन्द्रिय ।



प्रश्न- 45 बाह्य उपकरण द्रव्येन्द्रिय किसे कहते है ?

जवाब- 45 इन्द्रिय की आभ्यंतर आकृति विशेष को बाह्य उपकरण द्रव्येन्द्रिय कहते है ।



प्रश्न- 46 आभ्यंतर उपकरण द्रव्येन्द्रिय किसे कहते है ?

जवाब- 46 इन्द्रिय की आभ्यंतर आकृति में रही हुई विषय ग्रहण करने की शक्ति को आभ्यंतर उपकरण द्रव्येन्द्रिय कहते है ।



प्रश्न- 47 आभ्यंतर निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय तथा उपकरण द्रव्येन्द्रिय में क्या भेद है ?

जवाब- 47 आभ्यंतर निर्वृत्ति है आकार और उपकरण है उसके भीतर विद्यमान अपने अपने विषयों को ग्रहण करने वाली पौद्गलिक शक्ति । वात-पित आदि से उपकरण द्रव्येन्द्रिय नष्ट हो जाय तो आभ्यंतर द्रव्येन्द्रिय होने पर भी विषयों का ग्रहण नहीं होता । जैसे बाह्य निर्वृत्ति है तलवार, आभ्यंतर निर्वृत्ति है तलवार की धार और उपकरण है तलवार की छेदन भेदन की शक्ति ।



प्रश्न- 48 भावेन्द्रिय किसे कहते है ?

जवाब- 48 आत्मा के परिणाम विशेष (जानने की योग्यता और प्रवृत्ति)- ज्ञान शक्ति को भावेन्द्रिय कहते है ।



प्रश्न- 49 भावेन्द्रिय के भेद कितने है ?

जवाब- 49 भावेन्द्रिय के 2 भेद है – 1. लब्घि तथा 2. उपयोग ।







प्रश्न- 50 लब्धि भावेन्द्रिय किसे कहते है ?

जवाब- 50 ज्ञानावरणीय तथा दर्शनावरणीय कर्म का क्षयोपशम होने पर स्पर्शादि विषयों को जानने की शक्ति को लब्धि भावेन्द्रिय कहते है ।



प्रश्न- 51 उपयोग भावेन्द्रिय किसे कहते है ?

जवाब- 51 ज्ञानावरणीय तथा दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम से प्राप्त शक्ति की प्रवृत्ति को उपयोग भावेन्द्रिय कहते है ।



प्रश्न- 52 लब्धि व उपयोग में क्या अंतर है ?

जवाब- 52 चेतना की योग्यता लब्धि है और चेतना का व्यापार उपयोग है । लब्धि भावेन्द्रिय से जीवात्मा में आत्म स्वरुप का उतना प्रकट होना, जिससे वह स्पर्श-गन्ध-रुप-रसादि को जान सके । इस योग्यता के प्राप्त होने पर भी यह आवश्यक नहीं कि हम निरंतर उस विषय का ज्ञान करते रहे । जिस समय जिस इन्द्रिय को उपयोग में लाया जाता है, उस समय उसके द्वारा ज्ञान कर सकते हैं । यह उपयोग भावेन्द्रिय है । उदाहरणार्थ – दूरबीन खरीदने की शक्ति यह लब्घि है और दूर स्थित पदार्थों को देखना उपयोग है ।



प्रश्न- 53 पांच इन्द्रियों का अभ्यंतर आकार कैसा है ?

जवाब- 53 बाह्य आकार तो कान, नाक, आंख, जीभ, शरीर का अपना-अपना है । अभ्यन्तर आकार श्रोत्रेन्द्रिय का कदम्ब के फूल जैसा, चक्षुरिन्द्रिय का मसूर की दाल जैसा, घ्राणेन्द्रिय का अतिमुक्त पुष्प की चन्दि्रका जैसा, रसनेन्द्रिय का खुरपे जैसा, स्पर्शनेन्द्रिय का शरीर के जैसा आकार होता है ।



प्रश्न- 54 अपर्याप्ता किसे कहते है ?

जवाब- 54 जिस जीव के जितनी पर्याप्तियाँ होती हैं, उनको पूर्ण किये बिना ही जो मृत्यु को प्राप्त हो जाते है, वे जीव अपर्याप्ता कहलाते हैं ।



प्रश्न- 55 पर्याप्ता किसे कहते है ?

जवाब- 55 जिन जीवों के जितनी पर्याप्तियाँ होती है, उन स्वयोग्य पर्याप्तियाँ को पूर्ण कर मरने वाले जीव पर्याप्ता कहलाते हैं ।



प्रश्न- 56 अपर्याप्ता जीवों के कितने भेद होते है ?

जवाब- 56 अपर्याप्ता जीवों के 2 भेद होते है- 1.लब्धि अपर्याप्ता 2.करण अपर्याप्ता ।



प्रश्न- 57 पर्याप्ता जीवों के कितने भेद होते है ?

जवाब- 57 पर्याप्ता जीवों के 2 भेद होते है- 1.लब्धि पर्याप्ता 2.करण पर्याप्ता ।



प्रश्न- 58 लब्धि अपर्याप्ता किसे कहते है ?

जवाब- 58 जो जीव स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण किये बिना ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं, वे जीव लब्धि अपर्याप्ता कहलाते है ।



प्रश्न- 59 करण अपर्याप्ता किसे कहते है ?

जवाब- 59 जीस जीवने स्वयोग्य पर्याप्तियाँ वर्तमान में पूर्ण नही की है, वह जीव करण अपर्याप्ता कहलाते है ।



प्रश्न- 60 लब्धि पर्याप्ता किसे कहते है ?

जवाब- 60 स्वयोग्य पर्याप्तियों को पूर्ण करके मरने वाला जीव लब्धि पर्याप्ता कहलाता है ।



प्रश्न- 61 करण पर्याप्ता किसे कहते है ?

जवाब- 61 जिन जीवों ने स्वयोग्य पर्याप्तियों को पूर्ण कर ली है, वह जीव करण पर्याप्ता कहलाता है ।



प्रश्न- 62 लब्धि अपर्याप्ता जीव का काल कितना होता है ?

जवाब- 62 लब्धि अपर्याप्ता का काल जघन्य तथा उत्कृष्ट से एक अंतर्मुहूर्त का होता है ।



प्रश्न- 63 लब्धि पर्याप्ता जीव का काल कितना होता है ?

जवाब- 63 जीव के पूर्व भव का आयुष्य पूर्ण करने के पश्चात् प्रथम समय से स्वयं के उस भव तक जितना आयुष्य है, उतना काल लब्धि पर्याप्ता का होता है ।





प्रश्न- 64 करण पर्याप्ता जीव का काल कितना होता है ?

जवाब- 64 जीव के स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण करने के बाद स्वयं का जितना आयुष्य है, उतना पूर्ण करने तक का काल करण पर्याप्ता का काल कहलाता है ।



प्रश्न- 65 करण अपर्याप्ता जीव का काल कितना होता है ?

जवाब- 65 जो काल लब्धि पर्याप्ता जीवों का है, उस में अपर्याप्त अवस्था वाला एक अंतर्मुहूर्त का काल करण अपर्याप्ता जीवों का काल कहलाता है ।



प्रश्न- 66 प्रत्येक जीव नियमतः कितनी पर्याप्ति पूर्ण करने के बाद मरण को प्राप्त होता है ?

जवाब- 66 प्रत्येक जीव कम से कम तीन पर्याप्तियाँ पूर्ण करने के बाद ही मृत्यु को प्राप्त होता है । क्योंकी तीन पर्याप्तियाँ पूर्ण किये बिना जीव के परभव का आयुष्य नही बंधता है । जब तक आयुष्य बंध नही होता तब तक जीव मरण को भी प्राप्त नहीं होता । प्रत्येक अपर्याप्त जीव प्रथम 3 पर्याप्तियाँ तथा पर्याप्त जीव स्वयोग्य चार-पांच अथवा छह पर्याप्तियाँ पूर्ण करने के बाद ही मरता है ।



प्रश्न- 67 पर्याप्ति किसे कहते है ?

जवाब- 67 पर्याप्ति अर्थात् विशेष शक्ति-सामर्थ्य । जीवन जीने के लिये उपयोगी पुद्गलों को ग्रहण कर उनका परिणमन करने की आत्मा की शक्ति विशेष को पर्याप्ति कहते है ।



प्रश्न- 68 पर्याप्तियाँ कितनी और कौन-कौन सी हैं ?

जवाब- 68 पर्याप्तियाँ छह हैं- 1.आहार पर्याप्ति 2.शरीर पर्याप्ति 3.इन्द्रिय पर्याप्ति 4.श्वासोच्छवास पर्याप्ति. 5.भाषा पर्याप्ति 6.मनः पर्याप्ति ।



प्रश्न- 69 आहार पर्याप्ति किसे कहते है ?

जवाब- 69 जीव जिस शक्ति के द्वारा आहार के पुद्गलों को ग्रहण कर खल-रस रुप में परिणत करता है । उसे आहार पर्याप्ति कहते है । इसका काल एक समय का ही है ।





प्रश्न- 70 शरीर पर्याप्ति किसे कहते है ?

जवाब- 70 रस रुप आहार के पुद्गलों को जिस शक्ति द्वारा जीव सप्त धातुओं के रुप में परिणमित करता है, उसे शरीर पर्याप्ति कहते है । इसका काल औदारिक तथा वैक्रिय शरीर वाले जीवों के असंख्यात समय वाले अंतर्मुहूर्त का होता है ।



प्रश्न- 71 इन्द्रिय पर्याप्ति किसे कहते है ?

जवाब- 71 जीव जिस शक्ति के द्वारा धातुरुप में परिणत हुए आहार को इन्द्रिय रुप में परिणमित करता है, उसे इन्द्रिय पर्याप्ति कहते है ।



प्रश्न- 72 इन्द्रिय पर्याप्ति का काल कितना है ?

जवाब- 72 वैक्रिय शरीर वाले जीवों को एक समय का तथा औदारिक शरीर वाले जीवों को असंख्यात समय वाले अंतर्मुहूर्त का काल होता है ।



प्रश्न- 73 श्वासोच्छवास पर्याप्ति किसे कहते है ?

जवाब- 73 जिस शक्ति के द्वारा जीव श्वासोच्छवास योग्य पुद्गल वर्गणाओं को ग्रहण करके उन्हें शवासोच्छवास के रुप में परिणमन कर विसर्जन करता है, उसे श्वासोच्छवास पर्याप्ति कहते है ।



प्रश्न- 74 श्वासोच्छवास पर्याप्ति का काल कितना है ?

जवाब- 74 औदारिक शरीर वाले जीवों को एक अंतर्मुहूर्त की तथा वैक्रिय शरीर वाले जीवों को एक समय की श्वासोच्छवास पर्याप्ति होती है ।



प्रश्न- 75 भाषा पर्याप्ति किसे कहते है ?

जवाब- 75 जीव जिस शक्ति के द्वारा भाषा योग्य पुद्गल वर्गणाओं को ग्रहण करके, भाषा रुप में परिणमन कर विसर्जित करता है, उसे भाषा पर्याप्ति कहते है ।



प्रश्न- 76 भाषा पर्याप्ति का काल कितना है ?

जवाब- 76 औदारिक शरीर वाले जीवों को एक अंतर्मुहूर्त का तथा वैक्रिय शरीर वाले जीवों को एक समय का काल शास्त्र में वर्णित है ।





प्रश्न- 77 मनःपर्याप्ति किसे कहते है ?

जवाब- 77 जीव जिस शक्ति के द्वारा मनोवर्गणा के पुद्गलों को ग्रहण कर मन के रुप में परिणत कर विसर्जन करता है, उसे मनः पर्याप्ति कहते है ।



प्रश्न- 78 मनः पर्याप्ति का काल कितना है ?

जवाब- 78 औदारिक शरीर वाले जीवों को एक अंतर्मुहूर्त का तथा वैक्रिय शरीर वाले जीवों को एक समय का काल मनोपर्याप्ति का होता है ।



प्रश्न- 79 एकेन्द्रिय जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती है ?

जवाब- 79 एकेन्द्रिय जीवों के चार पर्याप्तियाँ होती हैं – 1. आहार 2. शरीर 3. इन्द्रिय 4. श्वसोच्छवास ।



प्रश्न- 80 विकलेन्द्रिय जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती है ?

जवाब- 80 विकलेन्द्रिय जीवों के पाँच पर्याप्तियाँ होती हैं – 1. आहार 2. शरीर 3. इन्द्रिय 4. श्वासोच्छवास 5. भाषा ।



प्रश्न- 81 विकलेन्द्रिय किसे कहते है ?

जवाब- 81 जो त्रसकाय की श्रेणी में आते है, तथा जिन्हें विकल अर्थात् एक से अधिक व पांच से न्यून इन्द्रियाँ प्राप्त हुई हैं, ऐसे द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीवों को सामूहिक रुप में विकलेन्द्रिय कहते है ।



प्रश्न- 82 असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती है ?

जवाब- 82 मनः पर्याप्ति के अतिरिक्त पांच पर्याप्तियाँ होती है ।



प्रश्न- 83 असंज्ञी किसे कहते है ?

जवाब- 83 जो जीव मन रहित होते हैं अर्थात् जिनके मनः पर्याप्ति नहीं होती, वे जीव असंज्ञी कहलाते है ।



प्रश्न- 84 संज्ञी किसे कहते है ?

जवाब- 84 जिनके दीर्घकालिकी संज्ञा हो अर्थात् जो मन सहित हो, वे जीव संज्ञी कहलाते है ।

प्रश्न- 85 संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती है ?

जवाब- 85 संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के छहों पर्याप्तियाँ होती है ।



प्रश्न- 86 कौन-कौन से जीव असंज्ञी कहलाते है ?

जवाब- 86 एकेन्द्रिय,(पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय) द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा संमूर्च्छिम पंचेन्द्रिय जीव असंज्ञी कहलाते हैं ।



प्रश्न- 87 जीव का जन्म कितने प्रकार से होता है ?

जवाब- 87 जीव का जन्म तीन प्रकार से होता है –1.संमूर्च्छन,2.गर्भज 3.उपपात ।





प्रश्न- 88 कौन से जीव संमुर्च्छिम कहलाते है ?

जवाब- 88 जो माता-पिता के संयोग बिना अन्य बाह्य संयोग से उत्पन्न होते हैं, वे संमूर्च्छिम कहलाते है ।



प्रश्न- 89 कौन से जीव गर्भज कहलाते है ?

जवाब- 89 जो माता-पिता का संयोग होने पर गर्भ से उत्पन्न होते हैं, वे जीव गर्भज कहलाते है ।



प्रश्न- 90 उपपात जन्म किसे कहते है ?

जवाब- 90 जो जीव उत्पत्ति स्थान में रहे हुए वैक्रिय पुद्गलों को सर्वप्रथम ग्रहण करके उत्पन्न होते हैं, उनका जन्म उपपात कहलाता हैं ।



प्रश्न- 91 कौन कौन से जीवों का संमूर्च्छन जन्म होता है ?

जवाब- 91 1.एकेन्द्रिय (पृथ्वी आदि 5 स्थावर काय), 2.विकलेन्द्रिय तथा 3.असंज्ञी पंचेन्द्रिय ।



प्रश्न- 92 कौन कौन से जीव गर्भज जन्म की श्रेणी में होते है ?

जवाब- 92 संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच तथा संज्ञी पंचेन्द्रिय मनुष्य ।





प्रश्न- 93 किनका उपपात जन्म होता है ?

जवाब- 93 देवों तथा नारकी जीवों का उपपात जन्म ही होता है ।



प्रश्न- 94 जीव के लक्षण कितने व कौन कौन से है ?

जवाब- 94 जीव के लक्षण 6 है – 1.ज्ञान 2.दर्शन 3.चारित्र 4.तप 5.वीर्य 6.उपयोग ।



प्रश्न- 95 लक्षण किसे कहते है ?

जवाब- 95 पदार्थ के असाधारण धर्म को लक्षण कहते है ।



प्रश्न- 96 असाधारण धर्म किसे कहते है ?

जवाब- 96 जो गुण उसी वस्तु में संपूर्ण रुप से रहता हो और उससे बाहर अन्य किसी में न पाया जाता हो, उसे असाधारण धर्म कहते है ।



प्रश्न- 97 ज्ञान किसे कहते है ?

जवाब- 97 जिसके द्वारा वस्तु को जाना जाता है, वह ज्ञान कहलाता है ।



प्रश्न- 98 दर्शन किसे कहते है ?

जवाब- 98 वस्तु के सामान्य धर्म को जानने की शक्ति को दर्शन कहते हैं ।



प्रश्न- 99 वस्तु में कितने प्रकार के धर्म है ?

जवाब- 99 वस्तु में दो प्रकार के धर्म है – 1. सामान्य धर्म 2. विशेष धर्म ।



प्रश्न- 100 साकारोपयोग किसे कहते हैं ?

जवाब- 100 जिसके द्वारा विशेष धर्म का बोध हो, वह ज्ञान साकारोपयोग है ।

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