HAVE YOU EVER THOUGHT ? Who Are You ? A Doctor ? An Engineer ? A Businessman ? A Leader ? A Teacher ? A Husband ? A Wife ? A Son ? A Daughter are you one, or so many ? these are temporary roles of life who are you playing all these roles ? think again ...... who are you in reality ? A body ? A intellect ? A mind ? A breath ? you are interpreting the world through these mediums then who are you seeing through these mediums. THINK AGAIN & AGAIN.
Wednesday, 19 March 2014
सत्य का खोजी भ्रान्त धारणाओं का शिकार न बने :-
हम और हमारा समाज बहुत सारी भ्रान्त धारणाओं का शिकार बने हुए हैं
चारित्र का ठेका किसी समुदाय विशेष का नहीं है.
‘हम नहीं होंगे तो’ संस्कृति, संस्कार, सभ्यता, धर्म, शासन, साधु-संस्था, समाज, सदाचार, सन्मार्ग, चारित्र, दूसरे लोगों का सम्यक्त्व, युवाओं का चरित्र वगैरह रसातल जाएंगे इस भ्रमणा में से जल्दी बाहर आएं. एक बढ़िया कहावत है कि “हमारे बिना दुनिया नहीं चलेगी ऐसा मानने वाले लोगों से हजारों कब्रिस्तान भरे पड़े हैं.”
अपने आपको, अपने आप, परम सुविहित घोषित करने वाले समुदाय में भी शिथिल और अति शिथिल साधु हो सकते हैं. इससे विपरीत जिन्हें शिथिल साधुओं के गुट का लेबल लगा दिया गया हो उसमें भी चारित्रधर साधु हो सकते है.
किसी एक समुदाय में (ही) चारित्र है, दूसरे में नहीं इस भ्रमणा को जल्द से जल्द दिल से निकाल दें.
मैला या उजला कपड़ा किसी के चारित्र का प्रमाणपत्र नहीं बन सकता. मैला मन या उजला मन ही उसके चारित्र का प्रमाणपत्र है. और किसी का मन मैला है या नहीं उसका प्रमाणपत्र देने की जल्दबाजी कभी न करें. क्यों कि बारह साल तक साथ में रहने वाले परम विनयी (नकली) शिष्य को उस जमाने के तीव्र मेधावी आचार्य भी नहीं पहचान पाए थे तो हमारा तो क्या हिसाब है.
चारित्र का दिखावा करने में नहीं, चारित्र की शिथिलता के स्वीकार में बड़े पराक्रम की जरूरत होती है. दिखावा महज एक धोखा है. शिथिलता के स्वीकार में प्रतिष्ठा दांव पर लगानी पड़ती है. बड़े बड़े शिथिल आचार्य अपनी प्रतिष्ठा को सुरक्षित बनाए रखने के लिए जीवनभर उत्तम चारित्र का मुखौटा पहन कर और उत्तम चारित्र का ढिंढोरा पीटकर भोले लोगों को उल्लू बनाने में सफल रहे थे और रहते हैं.
किसी के चारित्र की ऊंची छाप होने से कुछ साबित नहीं होता. चारित्र छाप का नहीं, आचरण का मोहताज होता है.
जो साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका जैसे दीखते हैं वैसे ही होंगे यह मानने का कोई कारण नहीं है. साधुवेषधारी अभव्य बड़ा ही ऊंचा साधु दीखता है, मगर होता नहीं है.
बड़ा व्याख्यानकार बड़ा ज्ञानी होगा ऐसा मानना भोलापन है. ज्ञान के साथ साथ व्याख्यान की शक्ति भी हो तो सोने में सुहागा जरूर मान सकते हैं, बाकी व्याख्यान एक कला है. कभी कभी बड़ा ज्ञानी एक शब्द का भी प्रवचन नहीं कर सकता. मगर इसका मतलब ये नहीं कि वह किसी जोरदार व्याख्यानकर्ता से कम है.
बड़ा व्याख्यानकार बड़ा चारित्रशील होगा ऐसा मानना भी भोलापन ही है. वह चारित्रशील न भी हो. कई उदाहरण हैं जिससे पता चलता है कि उत्तम चारित्र वाले साधु पांच मिनट का प्रवचन भी नहीं कर सकते. प्रवचनशक्ति से किसी के चारित्र का माप निकालना जल्दबाजी होगी.
जहां बहोत सारे लोगों की भीड़ रहती हो वह बड़ा ही उत्तम साधु होगा यह भी नहीं कह सकते, उससे विपरीत जहां कोई नहीं आता है वह छोटा या साधारण साधु होगा ऐसा भी नहीं मान सकते. भीड़भाड़ पुन्योदय की निशानी हो सकती है. अच्छाई की नहीं. भीड़ से कुछ साबित नहीं होता.
जिसका शिष्य-परिवार बड़ा होगा वह बहोत ही ऊंचा चारित्रशील होगा यह मानना तो सबसे बड़ा भोलापन है ! शिष्य-संपदा पुन्य की निशानी है, उत्तम चारित्र की नहीं. सूरिपुरंदर श्री हरिभद्रसूरि महाराज का शिष्य-परिवार नहीं था फिर भी सेंकड़ों शिष्य़ों वाले आचार्य उनके मुकाबले कुछ नहीं थे. हरिभद्रसूरि महाराज का नाम आज भी जनजन के मनमन में गूंज रहा है और बड़े परिवार वालों के नाम का अतापता तक नहीं है.
यहां और भी कड़ियां जोड़ी जा सकतीं हैं. परंतु इतनी काफी हैं, क्यों कि कहने का मकसद इतना ही है कि हम और हमारा समाज बहुत सारी भ्रान्त धारणाओं का शिकार बने हुए हैं. उन धारणाओं से मुक्त हो कर अपनी विचारशीलता का विकास करें इसी से ज्ञानप्राप्ति के द्वार खुलते हैं. जब किसीसे प्रभावित हुए बिना देखने की दृष्टि विकसित होगी तभी हम सत्य के अन्वेषण की दिशा में कदम बढ़ा पाएंगे.
— लेखक : मुनि मित्रानंदसागर, अमदावाद
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