Sunday, 1 March 2015

जैन धर्म की उदारता :- 1. किसी भी आत्मा में मोक्ष की तीव्र अभिलाषा उत्पन्न होने पर वह एक दिन अवश्यमेव मोक्ष में पहुँचेगी। 2. इस प्रकार की भावना पैदा होने के लिए वह जैन ही हो ऐसी कोई बात नहीं। जैन धर्म का दुश्मन होने पर भी अगर उसमें मोक्षेच्छा तीव्रता से उत्पन्न हो गई तो अंत में वह मोक्ष में जायेगा। 3. जिस भव में (जिस शरीर में) वह मोक्ष में जानेवाला हो उस भव में उसको जैन कुल में ही जन्म लेना चाहिए यह आग्रह भी नहीं है। 4. जिस शरीर से निकलकर वह मोक्ष में जानेवाला है उस शरीर में उन्होने जैनधर्म का कोई बड़ा गुनाह किया हो उसका विरोधी बना हो ऐसा भी संभवित है। 5. जैनधर्म को माननेवाला ही स्वर्ग में जायेगा और अन्य सब नरक में जायेंगे ऐसी जैनधर्म की मान्यता नहीं है। 6. जैन माता-पिता का पुत्र हो फिर भी उसका अयोग्य आचरण हो तो वह नरक में जायेगा और जैनकुल में नहीं जन्मा हुआ कोई जैन धर्म का पालन तो क्या पर जैन धर्म के नाम से परिचित न होने पर भी स्वर्ग में जा सकता है। 7. पर इतना तो सुनिश्चित है कि रागद्वेष से मुक्त बना हुआ कोई भी ‘जिन’ कहलाता है और उनका बतलाया हुआ धर्म ही ‘जैनधर्म’ है।

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