HAVE YOU EVER THOUGHT ? Who Are You ? A Doctor ? An Engineer ? A Businessman ? A Leader ? A Teacher ? A Husband ? A Wife ? A Son ? A Daughter are you one, or so many ? these are temporary roles of life who are you playing all these roles ? think again ...... who are you in reality ? A body ? A intellect ? A mind ? A breath ? you are interpreting the world through these mediums then who are you seeing through these mediums. THINK AGAIN & AGAIN.
Sunday, 1 March 2015
उपाध्याय विनयविजयजी ने अपने गेय काव्य 'शांत सुधारस भावना" में संसार के स्वरूप का चित्रांकन करते हुए लिखा है-
रंगस्थानं पुद्गलानां नटानां, नानारूपैर्नृत्यतामात्मनां च.
कालोद्योगस्वस्वभावादिभावै: कर्मातोद्यैर्नर्तितानां नियत्या.
यह लोक एक रंगमंच है. इसमें जीव और पुद्गल रूपी नट अनेक रूपों में नृत्य कर रहे हैं. काल, पुरुषार्थ, स्वभाव आदि भाव, कर्म रूप वाद्य तथा नियति ये सब नाचने में उनको सहयोग कर रहे हैं. इस वास्तविक रंगमंच को छोड़कर मनुष्य कृत्रिम नाटक देखने की व्यवस्था जुटाता है. सम्भवत: वह इस बात को भूल जाता है कि इस संसार में जन्म लेना, हंसना, रोना, सम्बंध बनाना, मरना आदि जितनी विचित्र क्रियाएं हैं, वे सब एक नाटक के छोटे-छोटे हिस्से हैं. इस स्वाभाविक नाटक से आंखमिचौनी कर टेलीविजन और वी.सी.आर. से मन बहलाना कहां की समझदारी है?
पुद्गल और जीव का संयोग संसार है. जैनदर्शन में पुद्गल शब्द बहुचर्चित है. पर व्यवहार जगत में या वैज्ञानिक क्षेत्र में इसको समझने वाले अधिक व्यक्ति नहीं हैं. वहां पुद्गल शब्द के लिए मैटर शब्द का प्रयोग होता है. मैटर क्या है? यह पूरा दृश्य जगत मैटर है. यह जगत स्कंध के रूप में हो, परमाणु के रूप में हो, या अन्य किसी रूप में. केवल दृश्य ही नहीं, श्रव्य, गेय, आस्वाद्य और सूंघने योग्य पदार्थ भी मैटर की सीमा से बाहर नहीं रह सकते.
'जब जागे तभी सबेरा से"
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