प्रश्न-1 जीव कीसे कहते है ?
जवाब-1 जो प्राणोको धारण करता है वह जीव ।
प्रश्न-2 प्राण किसे कहते है ?
जवाब-2 जिस शक्ति से जीव जीता है, उसे प्राण कहते है ।
प्रश्न-3 समस्त जीवो को कितने भागो में विभाजित किया जा सकता है ?
जवाब-3 समस्त जीवो के दो भेद है. – 1. संसारी जीव 2. मुक्त जीव ।
प्रश्न-4 संसारी जीव किसे कहते है ?
जवाब-4 वे जीव, जो कषाय और राग-द्वेष से युक्त है और उसके परिणाम स्वरुप बार-बार जन्म-मरण को प्राप्त होते है और घोर दुःख पाते है, वे संसारी जीव कहलाते है ।
प्रश्न-5 मुक्त जीव किसे कहते है ?
जवाब-5 वे जीव , जीनका राग-द्वेष समाप्त हो चुका है । कर्मबंधन ओर जन्म – मरण के चक्रव्यूह से मुक्त होकर सिद्धशिला पर बिराजमान हो चुके है, वे मुक्त जीव कहलाते है ।
प्रश्न-6 संसारी जीव के कितने भेद होते है ?
जवाब-6 संसारी जीव के प्रमुख 2 भेद है – 1. स्थावर जीव 2. त्रस जीव ।
प्रश्न-7 स्थावर जीव किसे कहते है ?
जवाब-7 वे जीव, जो सुख-दुःख एवं अनुकुल-प्रतिकुल संयोगोमें इच्छानुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं जा सकते हैं, वे स्थावर जीव कहलाते है ।
प्रश्न-8 स्थावर जीवो के कितने भेद होते है ?
जवाब-8 स्थावर जीवो के पांच भेद होते है ।
1. पृथ्वीकाय, 2. अप्काय, 3. तेउकाय, 4. वायुकाय, 5. वनस्पतिकाय ।
प्रश्न-9 स्थावर जीवोका अपर नाम क्या है ?
जवाब-9 एकेन्द्रिय ।
प्रश्न-10 पृथ्वीकायादि पंचक की व्याख्या स्पष्ट करो ?
जवाब-10 1. जिस जीव की काया पृथ्वी रुप हो, वह पृथ्वीकायिक जीव कहलाता है ।
2. जिस जीव की काया जल रुप हो, वह अप्कायिक जीव कहलाता है ।
3. जिस जीव की काया अग्नि रुप हो, वह तेउकायिक जीव कहलाता है ।
4. जिस जीव की काया वायु रुप हो, वह वाउकायिक जीव कहलाता है ।
5. जिस जीव की काया वनस्पति रुप हो,वह वनस्पतिकायिक जीव कहलाता है ।
प्रश्न-11 त्रस जीव किसे कहते है ?
जवाब-11 वे जीव, जो सुख-दुःख के प्रसंगोमें इच्छानुसार एक स्थानसे दूसरे स्थान पर जा सकते है, वे त्रस जीव कहलाते हैं ।
प्रश्न-12 त्रस जीवो के कितने भेद होते है ?
जवाब-12 त्रस जीवो के चार भेद होते है।1.द्वीन्द्रिय 2.त्रीन्द्रिय 3.चतुरिन्द्रिय4. पंचेन्द्रिय
प्रश्न-13 इन्द्रिय किसे कहते है ?
जवाब-13 जिससे जीव ज्ञान प्राप्त करता है, उसे इन्द्रिय कहते है ।
प्रश्न-14 इन्द्रियाँ कितनी हैं ?
जवाब-14 1.स्पर्शनेन्द्रिय 2.रसनेन्द्रिय 3.घ्राणेन्द्रिय 4.चक्षुरिन्द्रिय 5.श्रोतेन्द्रिय ।
प्रश्न-15 स्पर्शनेन्द्रिय किसे कहते है ?
जवाब-15 जिस इन्द्रिय से जीव उष्ण, शीत आदि स्पर्शों को अनुभव करता है, उसे स्पर्शनेन्द्रिय कहते है
प्रश्न-16 स्पर्शनेन्द्रिय के कितने विषय होते है ?
जवाब-16 स्पर्शनेन्द्रिय के आठ विषय होते है 1. मृदु 2. कर्कश 3. गुरु 4. लघु 5. स्निग्ध 6.रुक्ष 7. शीत 8. उष्ण ।
प्रश्न-17 रसनेन्द्रिय के कितने विषय होते है ?
जवाब-17 रसनेन्द्रिय के पांच विषय होते है 1.मधुर 2. आम्ल 3. कषाय 4. कटु 5. तिक्त ।
प्रश्न-18 घ्राणेन्द्रिय के कितने विषय होते है ?
जवाब-18 घ्राणेन्द्रिय के दो विषय होते है 1. सुरभि 2. दुरभि ।
प्रश्न-19 चक्षुरिन्द्रिय के कितने विषय होते है ?
जवाब-19 चक्षुरिन्द्रिय के पांच विषय होते है 1. सफेद 2. पीला 3. लाल 4. नीला 5. काला ।
प्रश्न-20 श्रोतेन्द्रिय के कितने विषय होते है ?
जवाब-20 श्रोतेन्द्रिय के तीन विषय होते है 1. जीव शब्द 2. अजीव शब्द 3.मिश्र शब्द
प्रश्न-21 एक, दो, तीन, आदि संख्या की अपेक्षा से जीवों का वर्गीकरण कीजिये ?
जवाब-21 एक अपेक्षा से – चैतन्य ( आत्मा ) की अपेक्षा से सभी जीव समान है ।
दो की अपेक्षा से – 1. त्रस 2. स्थावर ।
1.सांव्यावहारिक 2.असांव्यावहारिक ।
1.संज्ञी 2.असंज्ञी ।
1.सिद्ध 2.संसारी
तीन की अपेक्षा से – 1. पुरुष वेदी 2. स्त्री वेदी 3. नपुंसक वेदी ।
1. भव्य 2. अभव्य 3. जातीभव्य ।
चार की अपेक्षा से – 1. नारकी 2. तिर्यंच 3. मनुष्य 4. देव
पांच की अपेक्षा से – 1.एकेन्द्रिय 2.द्वीन्द्रीय 3.त्रीन्द्रीय 4.चतुरिन्द्रिय 5.पंचेन्द्रीय ।
छह की अपेक्षा से – 1. पृथ्वीकायिक 2. अप्कायिक 3. तेउकायिक 4. वाउकायिक 5. वनस्पतिकायिक 6. त्रसकायिक ।
आठ की अपेक्षा से – 1. अण्डज 2. पोतज 3. जरायुज 4. रसज 5. संस्वेदज 6. संमूर्च्छिमज 7. उद्भवज 8. उपपातज ।
नौ की अपेक्षा से – 1. पृथ्वीकायिक 2. अप्कायिक 3. तेउकायिक 4. वाउकायिक 5 वनस्पतिकायिक 6.द्वीन्द्रिय 7.त्रीन्द्रिय 8.चतुरिन्द्रिय 9.पंचेन्द्रिय ।
चौदह की अपेक्षा से – 1.अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय 2. पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय ।
3 अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय 4. पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय ।
5 अपर्याप्त द्वीन्द्रिय 6. पर्याप्त द्वीन्द्रिय ।
7 अपर्याप्त त्रीन्द्रिय 8. पर्याप्त त्रीन्द्रिय ।
9. अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय 10. पर्याप्त चतुरिन्द्रिय ।
11. अपर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय 12. पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय ।
13. अपर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय 14. पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय ।
प्रश्न-22 प्रत्येक वनस्पतिकाय के कितने भेद है ?
जवाब-22 प्रत्येक वनस्पतिकाय के फल, फुल, छाल, काष्ट, मुल, पत्ता, और बीज रुप सात भेद होते है ।
प्रश्न-23 वनस्पतिकाय के संदर्भ में विस्तार करे ?
जवाब-23 1.शब्द ग्रहण शक्ति – कंदल, कुंडल आदि वनस्पतियाँ मेघ गर्जनासे पल्लवित होती है ।
2.आश्रय ग्रहण शक्ति – बेल, लताएँ, दीवार वृक्ष आदिका सहारा लेकर वृद्धिको प्राप्त करती है ।
3.सुगंध ग्रहण शक्ति – कुछ वनस्पतियाँ सुगंध पाकर जल्दी पल्लवित होती है । 4.रस ग्रहण शक्ति – उख आदि वनस्पतियाँ भूमि से रस ग्रहण करती है ।
5.स्पर्श ग्रहण शक्ति – कुछ वनस्पतियाँ स्पर्श पाकर फैलती है एवं कुछ वनस्पतियाँ संकुचित्त होती है ।
6.निद्रा एवं जागृति – चंद्रमुखी फुल चंद्र खिलने के साथ खिलते है उसके अभाव में संकुचित हो जाते है सुर्यमुखी फुल सुर्य खिलने के साथ खिलते है सुर्यास्त के बाद सिमट जाते है ।
7.राग – पायल की रुनझुन की मधुर अवाज सुनकर रागात्मक दशामें अशोक, बकुल, कटहल, आदि वृक्षो के फुल खिल उठते है ।
8.संगीत – मधुर सुरावलीयाँ सुनकर कई वृक्षो के फुल जल्दी पल्लवित पुष्टित और सुरभित होते है ।
9.लोभ – सफेद आक, पलास, बिल्लि, आदिकी जडे भूमि में दबे हुए धनपर फैल कर रहती है ।
10.लाज - छुईमुई आदी कई वनस्पतियाँ स्पर्श पाकर लाज भय से संकुचित हो जाती है ।
11.मैथुन – अनेक वनस्पतियाँ आलिंगन, चुम्बन, कामुक हाव भाव एवं कटाक्ष से जल्दी फलीभूत होती है, पपीते आदी के वृक्ष नर और मादा साथ साथ हो तो ही पल्लवित होते हैं ।
12.क्रोध – कोकनद का वृक्ष क्रोध में हुंकार की आवाज करता है ।
13.मान – अनेक वृक्षों में अभिमान का भाव भी पाया जाता है ।
14.आहार संज्ञा – वृक्षों,पौधो को जब तक आहार पानी मिलता है तब तक जीवीत रहते है आहार पानी के अभाव में सूखकर मर जाते है ।
15.शाकाहारी, मांसाहारी – वनस्पतिकायिक जीवों में कुछ वनस्पतियाँ पानी, खाद आदि का आहार करती हैं और कुछ वनस्पतियाँ मनुष्य, जलचर, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय के मांस, रुधिर का भक्षण करती है । सनड्रयू और वीनस फ्लाइट्रेप आदि वनस्पतियाँ संपातिम ( उडने वाले ) जीवो का भक्षण करती हैं ।
16.आकर्षण – कई वनस्पतियाँ फैल कर पास में गुजरते हुए मनुष्य, तिर्यंच आदि को अपने कसे हुए शिंकजेमें फंसा देती है ।
17.माया – कई लताएँ अपने फलों को पत्तों के नीचे दबाकर रखती हैं और फल रहित होनेका दिखावा करती हैं ।
18.जन्म – वनस्पतिकाय बोने पर जन्म को प्राप्त करती है वर्षाकाल में चारो तरफ वनस्पति उग आती है ।
19.मृत्यु – वनस्पतियाँ हिमपाल, शीत एवं उष्ण की अधिकता, आहार पानी की कमी, रोग, भय, अन्य जीवो के प्रहार, आयुष्य समाप्ति पर मृत्यु को प्राप्त करती हैं ।
20.वृद्धि – वनस्पति वृद्धि को भी प्राप्त करती है बीज धीरे-धीरे वृद्धि को प्राप्त होता है वटवृक्ष का स्वरुप धारण करने में कई वर्ष व्यतीत हो जाते है ।
21.रोग – अन्य जीवों की भाँति वनस्पति भी रोगग्रस्त होती है । पानी, हवा, धूप, आहार आदि की अल्पता-अधिकता कारण रोग होते है और पुनःस्वयं औषधोपचार प्राप्त कर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर लेती है ।
प्रश्न-24.निगोद के जीवो के कितने प्रकार है ?
जवाब-24.निगोद के जीवो के दो भेद है 1.व्यवहार राशि वाले 2. अव्यवहार राशि वाले
प्रश्न-25.व्यवहार राशि के जीव किसे कहते है ?
जवाब-25.जिन जीवात्माओं ने निगोद को छोडकर एक बार भी बादर पर्याय प्राप्त की हो वे व्यवहार राशि के जीव कहलाते हैं ।
प्रश्न-26. अव्यवहार राशि के जीव किसे कहते है ?
जवाब-26.वे जीव, जो अनन्तकाल-अनादिकाल से निगोद में ही स्थित है, एक बार भी बादरकायिक स्थिति को प्राप्त नही किया है वे अव्यवहार राशि के जीव किसे कहलाते है।
प्रश्न-27.किसके प्रभाव से अव्यवहार राशि का जीव व्यवहार राशि में आता है ?
जवाब-27.जब एक जीवात्मा सकल कर्मों का क्षय करके सिद्ध पद को प्राप्त करता है तब एक जीवात्मा अव्यवहार राशि में से व्यवहार राशि में आता हैं ।
प्रश्न-28.निगोद के जीवो की काय स्थिति कितने प्रकार की होती हैं ?
जवाब-28.निगोद के जीवो की काय स्थिति तीन प्रकार की होती है
1.अनादि अनन्त - वे जीव, जो अनादिकाल से निगोद में ही स्थित है, और निगोद में से बहार कभी निकलेंगे भी नहीं । जातिभव्य जीवो की स्थिति अनादि अनन्तकाल की होती हैं ।
2.अनादि सांत - वे जीव, जो अनादिकाल से निगोद में ही स्थित है, निगोद में से बहार निकले नही है, परंतु भवितव्यता के अनुसार कभी न कभी जरूर बहार निकलेंगे। इसमें भव्य और अभव्य दोनो प्रकार के जीव होते है ।
3.सादि सांत – वे जीव, जो एक बार त्रस पर्याय को प्राप्त हो चुके हैं परन्तु कर्म बंधन करके पुनः निगोद में चले गये है, एक बार त्रस पर्याय प्राप्त कर चुके है अतः उनकी सादि स्थिति है और वे कभी न कभी मोक्ष में जायेंगे अतः सान्त स्थिति है । भव्य जीव ही इस स्थिति को प्राप्त करते हैं ।
प्रश्न-29. सूक्ष्म निगोद के जीव कितने प्रकार के होते हैं ?
जवाब-29.दो प्रकार के 1.सांव्यवहारिक निगोद 2.असांव्यवहारिक निगोद ।
प्रश्न-30.सांव्यवहारिक सूक्ष्म निगोद किसे कहते है ?
जवाब-30. एक जीव जब समस्त कर्मों का क्षय करके मोक्ष को प्राप्त करता है तब एक जीव अव्यवहार राशि से व्यवहार राशि में आता हैं । वह जीव मृत्यु पाकर पुनः सूक्ष्म निगोद में उत्पन्न हो जाये तो वह सांव्यवहारिक जीव कहलाता है ।
प्रश्न-31.असांव्यवहारिक सूक्ष्म निगोद किसे कहते है ?
जवाब-31.वे जीव, जो अव्यवहार राशि से व्यवहार राशि में नहीं आये है, अनादिकाल से सूक्ष्म निगोद में ही हैं उन्हें असांव्यहारिक जीव कहते हैं ।
प्रश्न-32.निगोद के जीवों के भव बताईये ?
जवाब-32.निगोद के जीव –
1. एक श्वासोच्छ्वास में साढे सत्रह भव करते हैं ।
2. एक मुर्हूत्त में 65,536 भव करते हैं ।
3. एक दिन में 19,66,080 भव करते हैं ।
4. एक मास में 5,89,82,400 भव करते हैं ।
5. एक वर्ष में 70,77,88,700 भव करते हैं।
प्रश्न-33.बादर जीव से क्या अभिप्राय है ?
जवाब-33.जिस एक जीव का एक शरीर हो अथवा अनेक जीवों के शरीर एकत्र हो, उन्हें चर्मचक्षुओं से अथवा किसी यंत्र के द्वारा देखा जा सके, वे बादर जीव कहलाते है। ये जीव शस्त्र से कट जाते हैं, इनका छेदन-भेदन होता है, अग्नि जला सकती है एवं पानी बहा सकता हैं । इनकी गति में रुकावट होती है और दूसरो की गति में रुकावट का कारण भी बनते हैं ।
प्रश्न-34 सूक्ष्म जीव से क्या अभिप्राय है ?
जवाब-34 जिन जीवो का एक शरीर अथवा अनेक शरीर इकट्ठे होने पर भी चर्मचक्षु अथवा यंत्र के द्वारा दिखाई नहीं देते है, वे सूक्ष्म जीव कहलाते हैं । ये जीव संपूर्ण चौदह राजलोक में व्याप्त है । ये मनुष्य, तिर्यंच के हलन-चलन से, शस्त्र, अग्नि, जलादि से मृत्यु को प्राप्त नहीं होते हैं ।
प्रश्न-35 सूक्ष्म जीवों का अस्तित्व कहाँ तक है ?
जवाब-35 जिस प्रकार अंजन की डिब्बी में अंजन भरा हुआ रहता है, उसी प्रकार संपूर्ण चौदह राजलोक में सूक्ष्म जीव ठुंस-ठुंस के भरे हुए हैं । सुई की नोंक जितना भाग भी खाली नही हैं । सुई की नोंक जितने स्थान में असंख्य श्रेणियाँ होती हैं । एक-एक गोलक में असंख्य औदारिक शरीर होते हैं और एक एक शरीर में अनन्त-अनन्त जीव होते हैं ।
प्रश्न-36 किन-किन प्रसंगो में त्रसनाडी के बहार भी त्रसकायिक जीवों का अस्तित्व विद्यमान होता हैं ?
जवाब-36 1. जब कोइ तीर्थंकर भगवंत या केवली भगवंत समुद्घात् करते हैं तब उनके आत्म प्रदेश सम्पूर्ण चौदह राजलोक में व्याप्त हो जाते हैं । उस वक्त त्रस नाडी के बहार भी त्रस जीव की विद्यमानता होती हैं ।
2. जिस त्रस जीवने त्रस नाडी के बाहर स्थावर नामकर्म का बंध कर लीया है, वह जीव जब मारणान्तिक समुद्घात करता है तब उसके आत्मप्रदेश त्रस नाडी के बाहर भी व्याप्त होने से त्रस नाडी के बाहर उसका अस्तित्व होता हैं ।
प्रश्न-37 पर्याप्ता जीव किसे कहते है ?
जवाब-37 जो जीव स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण कर चुका है, वह पर्याप्ता जीव कहलाता है । जैसे एकेन्द्रिय जीव चार पर्याप्तियाँ पूर्ण करने के पश्चात् पर्याप्ता कहलाता है ।
प्रश्न-38 अपर्याप्ता जीव किसे कहते है ?
जवाब-38 स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण करने से पूर्व जीव अपर्याप्ता कहलाता है । जैसे एकेन्द्रिय जीव चार पर्याप्तियाँ पूर्ण करने से पूर्व अपर्याप्ता कहलाता हैं ।
प्रश्न-39 पर्याप्ता जीवों के कितने भेद होते है ?
जवाब-39 दो भेदः- 1. करण पर्याप्ता 2. लब्धि पर्याप्ता.
प्रश्न-40 अपर्याप्ता जीवों के कितने भेद होते है ?
जवाब-40 दो भेदः- 1. करण अपर्याप्ता 2. लब्धि अपर्याप्ता.
प्रश्न-41 करण पर्याप्ता किसे कहते है ?
जवाब-41 जिस जीवने स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण कर ली है, वह करण पर्याप्ता कहलाता है ।
प्रश्न-42 लब्धि पर्याप्त किसे कहते है ?
जवाब-42 जिस जीवने स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण कर ली है या भविष्य में स्वयोग्य पर्याप्तियाँ अवश्यमेव पूर्ण करेगा, वह लब्धि पर्याप्ता कहलाता है ।
प्रश्न-43 करण अपर्याप्ता किसे कहते है ?
जवाब-43 जिस जीवने स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण नहीं की है, वह करण अपर्याप्ता कहलाता है ।
प्रश्न-44 लब्धि अपर्याप्ता किसे कहते है ?
जवाब-44 जिस जीवने स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण नहीं की है और पूर्ण करने से पहले ही मर जायेगा, उसे लब्धि अपर्याप्ता कहते है ।
प्रश्न-45 पर्याप्ति किसे कहते है ?
जवाब-45 जिस शक्ति के द्वारा जीव आहार ग्रहण करके उसे रस में परिणमित करता है, रस को शरीर एवं इन्द्रियों में रुपान्तरित करता है, एवं श्वासोच्छवास, भाषा और मन योग्य पुद्गल वर्गणाओं को ग्रहण कर श्वासोच्छवास, भाषा और मन रुप बनाता है, जीव की उस शक्ति को पर्याप्ति कहते है ।
प्रश्न-46 पर्याप्तियाँ कितनी होती है ?
जवाब-46 पर्याप्तियाँ 6 होती हैः- 1. आहार 2. शरीर 3. इन्द्रिय 4. श्वासोच्छवास
5. भाषा 6. मन
प्रश्न-47 एकेन्द्रिय जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती हैं ?
जवाब-47 4 पर्याप्तियाँ -1. आहार 2. शरीर 3. इन्द्रिय 4. श्वासोच्छवास पर्याप्ति ।
प्रश्न-48 द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती है ?
जवाब-48 5 पर्याप्तियाँ -1. आहार 2. शरीर 3. इन्द्रिय 4. श्वासोच्छवास 5.भाषा पर्याप्ति।
प्रश्न-49 संज्ञी पंचेन्द्रिय मनुष्य, देवता, नारकी और तिर्यंच जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती है ?
जवाब-49 6 पर्याप्तियाँ - 1. आहार 2. शरीर 3. इन्द्रिय 4. श्वासोच्छवास
5. भाषा 6. मन पर्याप्ति ।
प्रश्न-50 असंज्ञी पंचेन्द्रिय मनुष्य एवं तिर्यंच के कितनी पर्याप्तियाँ होती है ?
जवाब-50 मन पर्याप्ति के अतिरिक्त पांच पर्याप्तियाँ होती है ।
प्रश्न-51 कौन-कौन से जीव पर्याप्त अपर्याप्त होते है ?
जवाब-51 एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, देव, नारकी, गर्भज-संमूर्च्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंच एवं गर्भज मनुष्य पर्याप्ता और अपर्याप्त दोनों होते हैं परन्तु संमूर्च्छिम मनुष्य नियमतः अपर्याप्त ही होते हैं ।
प्रश्न-52 प्राण और पर्याप्ति में क्या अंतर है ?
जवाब-52 जिस शक्ति से जीव जीता है, उसे प्राण कहते है । जिस शक्ति से जीव आहार ग्रहण कर क्रमशः रस,शरीर और इन्द्रिय रुप में परिणत करता है एवं श्वासोच्छवास, भाषा, मन योग्य पुद्गल ग्रहण कर उन्हें उस रुप में परिवर्तित करता है, उसे पर्याप्ति कहते है ।
प्रश्न-53 संज्ञी और असंज्ञी में क्या अन्तर है ?
जवाब-53 मन वाले जीव को संज्ञी कहते है । मन रहित जीव को असंज्ञी कहते है ।
प्रश्न-54 जीव की उत्पत्ति के प्रमुख कितने भेद है ?
जवाब-54 तीन भेदः- 1. गर्भज 2. संमूर्च्छिम 3. औपपातिक.
प्रश्न-55 गर्भज जीव किसे कहते है ?
जवाब-55 वे जीव, जो माता-पिता (नर एवं नारी) के संयोगसे उत्पन्न होते हैं, वे गर्भज कहलाते हैं ।
प्रश्न-56 संमूर्च्छिम जीव किसे कहते है ?
जवाब-56 वे जीव, जो माता-पिता के संयोग के बिना अन्य बाह्य संयोग प्राप्त होने पर उत्पत्ति स्थान में स्थित औदारिक पुद्गलों को शरीर में परिणत करके उत्पन्न होते हैं, उनको संमूर्च्छिम जीव कहा जाता हैं ।
प्रश्न-57 गर्भज जीवों के कितने प्रकार है ?
जवाब-57 तीन प्रकारः- 1. जरायुज 2. अण्डज 3. पोतज.
प्रश्न-58 जरायुज गर्भज किसे कहते है ?
जवाब-58 वे जीव, जो रक्त और मांस से युक्त जाल के आवरण में लिपटे हुए पैदा होते हैं, वे जरायुज गर्भज कहलाते हैं । जैसे मनुष्य, गाय, भैंस, बकरी आदि ।
प्रश्न-59 अण्डज गर्भज किसे कहते है ?
जवाब-59 वे जीव, जो अण्डों से पेदा होते हैं, वे अण्डज गर्भज कहलाते हैं । जैसे सांप, तोता, कबूतर, मूर्गी आदि ।
प्रश्न-60 पोतज गर्भज किसे कहते है ?
जवाब-60 वे जीव, जो बिना किसी आवरण से पेदा होता हैं । वे पोतज गर्भज कहलाते हैं । जैसे हाथी, शशक, नेवला, चूहा आदि ।
प्रश्न-61 औपपातिक जन्म किसे कहते है ?
जवाब-61 देवशय्या पर दिव्य वस्त्रों से आच्छादित स्थान उपपात कहलाता है । उस उपपात स्थान पर स्थित वैक्रिय पुद्गलों को ग्रहण करके शरीरमें परिवर्तित करना औपपातिक जन्म कहलाता है । इस प्रकार का जन्म देवताओं का होता है । नारकी जीव चौडे मुँह वाली कुंभी में स्थित वैक्रिय पुद्गलों को शरीर रुप में परिणत करके जन्म लेते हैं ।
प्रश्न-62 किन-किन जीवों का गर्भज जन्म होता है ?
जवाब-62 1.पंचेन्द्रिय तिर्यंच 2.पंचेन्द्रिय मनुष्य ।
प्रश्न- 63 किन-किन जीवों का संमूर्च्छिम जन्म होता है ?
जवाब-63 एकेन्द्रिय (पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय) द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, अगर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यंच, अपर्याप्ता असंज्ञी मनुष्य ।
प्रश्न-64 किन-किन जीवों का औपपातिक जन्म होता हैं ?
जवाब-64 1. देवता 2. नारकी ।
प्रश्न-65 एकेन्द्रिय एवं विकलेन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति किस प्रकार होती हैं ?
जवाब-65 एकेन्द्रिय और द्वीन्द्रिय जीव उत्त्पति के योग्य संयोग मिलने पर स्वजातीय जीवों के आस पास उत्पन्न हो जाते है । त्रीन्द्रिय जीव स्वजातीय जीवों के मल आदि में एवं चतुरिन्द्रिय जीव स्वजातीय जीवों के मल, लार आदि में संयोगानुसार उत्पन्न हो जाते हैं । वहाँ स्थित औदारिक शरीर के पुद्गलों को शरीर रुप परिणत करके उत्पन्न होते हैं ।
प्रश्न-66 संमूर्च्छिम मनुष्य एवं तिर्यंचों की उत्पत्ति के चौदह अशुचि स्थान कौनसे हैं ?
जवाब-66 1.मल, 2.पेशाब, 3. कफ, 4. नाक का मल, 5. वमन 6.पित्त,7. पीब-मवाद्, 8. रूधिर, 9. वीर्य, 10. त्याग किये गये वीर्य के पुद्गल, 11. मुर्दा शरीर, 12. पुरुष-स्त्री का परस्पर संयोग, 13. मेल, 14. पसीना ।
प्रश्न-67 अवगाहना किसे कहते है ?
जवाब-67 जीव के शरीर की ऊंचाई को अवगाहना कहते हैं ।
प्रश्न-68 आयुष्य किसे कहते है ?
जवाब-68 अमुक नियत काल तक एक शरीर में जीव को रोकने वाला आयुष्य कहलाता है ।
प्रश्न-69 स्वकाय स्थिति किसे कहते है ?
जवाब-69 एक ही पर्याय में जीव जितनी बार जन्म लेता है एवं मरता है, उसे स्वकाय स्थिति कहते है ।
प्रश्न-70 प्राण कितने प्रकार के होते है ?
जवाब-70 दस प्रकार के - 1.स्पर्शनेन्द्रिय प्राण 2.रसनेन्द्रिय प्राण 3.घ्राणेन्द्रिय प्राण 4.चक्षुरिन्द्रिय प्राण 5.श्रोतेन्द्रिय प्राण 6. मन बल प्राण 7. वचन बल प्राण 8. काया बल प्राण 9.श्वासोच्छ्वास प्राण 10. आयुष्य प्राण ।
प्रश्न-71 योनि किसे कहते है ?
जवाब-71 जीव के जन्म लेने के स्थान को योनि कहते है । स्थूल शरीर बनाने के लिये उसके योग्य पुद्गलों को प्रथम बार ग्रहण करना योनि कहलाता है ।
प्रश्न-72 योनि कितनी है ?
जवाब-72 चौरासी लाख ।
प्रश्न-73 जीव अनन्त होने से उनके उत्पत्ति स्थान भी अनन्त हैं, फीर चौरासी लाख ही योनियाँ क्यों कही गयी ?
जवाब-73 जिन जिन योनि स्थानों का वर्ण, गंध, रस, स्पर्श और संस्थान समान होते हैं वह एक योनि ही कही जाती है । इन वर्णादिक पांचों की तरतमता के आधार पर जीव की कुल 84 लाख योनियाँ कही गयी हैं ।
प्रश्न-74 पृथ्वीकायीक जीवो के कितने भेद होते है ?
जवाब-74 चार भेद 1.पर्याप्त सूक्ष्म 2. पर्याप्त बादर 3. अपर्याप्त सूक्ष्म 4. अपर्याप्त बादर
प्रश्न-75 स्फटिक क्या है एवं उसका क्या उपयोग है ?
जवाब- 75 स्फटिक एक पारदर्शी (जिसके आर पार दिखाई देता है) पत्थर है । इसकी मूल्यवान प्रतिमाएँ, चश्में आदि अनेक वस्तुएँ निर्मित होती हैं ।
प्रश्न-76 जलकायिक जीवो के भेद बताओ ?
जवाब-76 नदी, सागर, तालाब, कुएँ, एवं बरसात का पानी, ओस, बर्फ, ओले, कोहरा, हरी वनस्पतियों के उपर फूटकर निकला हुआ पानी, घनोदधि, आदि जलकायिक जीवो के भेद है ।
प्रश्न-77 घनोदधि से क्या तात्पर्य है ?
जवाब-77 चौदह राजलोक में स्थित देव विमानों एवं नरक पृथिवियों के नीचे घी के समान जमा – ठसा हुआ पानी घनोदधि कहलाता है ।
प्रश्न-78 अग्निकायिक जीवो के उदाहरण दीजिये ?
जवाब-78 अंगारा, ज्वाला, मुर्मर, उल्कापात, अशनि, आकाश से गिरने वाले अग्नि कण, बिजली इत्यादि अग्निकायिक जीवों के भेद है ।
प्रश्न-79 समुद्र में लगने वाली आग को क्या कहते है ?
जवाब-79 वडवानल ।
प्रश्न-80 दावानल किसे कहते हैं ?
जवाब-80 बांस आदि के आपस में टकराने घिसने से उत्पन्न होने वाली आग दावानल कहलाती है ।
प्रश्न-81 वायुकायिक जीवों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कीजिये ?
जवाब-81 उद्भ्रामक, उत्कलिका, मंडलाकार, आंधी, शुद्ध, गुंजवायु, घनवात, तनवात, इत्यादि वायुकायिक जीवों के भेद है ।
प्रश्न-82 उद्भ्रामक और उत्कलिका वायु में क्या भेद है ?
जवाब-82 ऊँचाई की तरफ बहने वाली वायु उद्भ्रामक कहलाती है जबकि नीचे की ओर प्रवाहित होने वाली वायु उत्कलिका कहलाती है ।
प्रश्न- 83 मंडलाकार वायु एवं गूंजवायु को स्पष्ट करो? जवाब-83 वह वायु, जो गोल-गोल घूमती हुई बहती है, मंडलाकार(गोलाकार)वायु कहलाती है । वह वायु, जो गूंजती हुई बहती है, गूंजवायु कहलाती हैं ।
प्रश्न-84 उद्भ्रामक वायु का दुसरा क्या नाम है ?
जवाब-84 संवर्तक वायु ।
प्रश्न-85 घनवात – तनवात से क्या आशय है ?
जवाब-85 घनवात का अर्थ गाढी वायु है और तनवात का अर्थ पतली वायु है । चौदह राजलोक में देवविमानो एवं नरक पृथिवियों के नीचे जो घनोदधि स्थित है, उसके नीचे घनवात एवं तनवात स्थित है ।
प्रश्न-86 अप्काय जीवो के कितने भेद होते है ?
जवाब-86 चार भेदः- पर्याप्ता सूक्ष्म एवं बादर, अपर्याप्ता सूक्ष्म एवं बादर ।
प्रश्न-87 तेउकाय जीवो के कितने भेद होते है ?
जवाब-87 चार भेदः- पर्याप्ता सूक्ष्म एवं बादर, अपर्याप्ता सूक्ष्म एवं बादर ।
प्रश्न-88 वायुकाय जीवो के कितने भेद होते है ?
जवाब-88 चार भेदः- पर्याप्ता सूक्ष्म एवं बादर, अपर्याप्ता सूक्ष्म एवं बादर ।
प्रश्न-89 वनस्पतिकाय जीवो के कितने भेद होते है ?
जवाब-89 वनस्पतिकाय के छह भेद होते है, जिनमें से चार भेद साधारण वनस्पतिकाय के होते है – पर्याप्ता सूक्ष्म एवं बादर, अपर्याप्ता सूक्ष्म एवं बादर और दो भेद प्रत्येक वनस्पतिकाय के होते है – पर्याप्ता बादर और अपर्याप्ता बादर ।
प्रश्न-90 किस वैज्ञानिक ने पानी की एक बूंद में 36450 त्रस जीव यंत्र के द्वारा प्रामाणित किये ?
जवाब-90 केप्टन स्कोर्सबी ने ।
प्रश्न-91 वनस्पतिकाय में सर्वप्रथम किसने यंत्र की सहायता से जीव सिद्धि की ?
जवाब-91 डाँ. जगदीशचन्द्र बसु ।
प्रश्न-92 एकेन्द्रिय जीवों की स्वकाय स्थिति कितनी होती हैं ?
जवाब-92 पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वाउकाय और प्रत्येक वनस्पतिकाय के जीवों की स्वकाय स्थिति असंख्य उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी होती हैं जब की साधारण वनस्पतिकाय के जीवों की स्वकायस्थिति अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी होती है ।
प्रश्न-93 एकेन्द्रिय जीवोंकी अवगाहना कितनी होती है ?
जवाब-93
| एकेन्द्रिय प्राणी | जघन्य अवगाहना | उत्कृष्ट अवगाहना |
1 | पृथ्वीकाय सूक्ष्म-बादर | अंगुलका असंख्यातवां भाग | अंगुलका असंख्यातवां भाग |
2 | अप्काय सूक्ष्म-बादर | अंगुलका असंख्यातवां भाग | अंगुलका असंख्यातवां भाग |
3 | तेउकाय सूक्ष्म-बादर | अंगुलका असंख्यातवां भाग | अंगुलका असंख्यातवां भाग |
4 | वाउकाय सूक्ष्म-बादर | अंगुलका असंख्यातवां भाग | अंगुलका असंख्यातवां भाग |
5 | साधारण वनस्पतिकाय सूक्ष्म-बादर | अंगुलका असंख्यातवां भाग | अंगुलका असंख्यातवां भाग |
6 | प्रत्येक वनस्पतिकाय सूक्ष्म-बादर | अंगुलका असंख्यातवां भाग | एक हजार योजन से कुछ अधिक |
प्रश्न- 94 एकेन्द्रिय जीवों का जघन्य-उत्कृष्ट आयुष्य बताईए ?
जवाब-94
| एकेन्द्रिय | जघन्य | उत्कृष्ट |
1 | पर्याप्ता-अपर्याप्ता सूक्ष्म पृथ्वीकाय | अन्तर्मुहूर्त | अन्तर्मुहूर्त |
2 | पर्याप्ता-अपर्याप्ता सूक्ष्म अप्काय | अन्तर्मुहूर्त | अन्तर्मुहूर्त |
3 | पर्याप्ता-अपर्याप्ता सूक्ष्म तेउकाय | अन्तर्मुहूर्त | अन्तर्मुहूर्त |
4 | पर्याप्ता-अपर्याप्ता सूक्ष्म वाउकाय | अन्तर्मुहूर्त | अन्तर्मुहूर्त |
5 | पर्याप्ता-अपर्याप्ता सूक्ष्म साधारण वनस्पतिकाय | अन्तर्मुहूर्त | अन्तर्मुहूर्त |
6 | अपर्याप्ता बादर पृथ्वीकाय | अन्तर्मुहूर्त | अन्तर्मुहूर्त |
7 | अपर्याप्ता बादर अप्काय | अन्तर्मुहूर्त | अन्तर्मुहूर्त | |
8 | अपर्याप्ता बादर तेउकाय | अन्तर्मुहूर्त | अन्तर्मुहूर्त | |
9 | अपर्याप्ता बादर वाउकाय | अन्तर्मुहूर्त | अन्तर्मुहूर्त | |
10 | अपर्याप्ता बादर साधारण वनस्पतिकाय | अन्तर्मुहूर्त | अन्तर्मुहूर्त | |
11 | अपर्याप्ता बादर प्रत्येक वनस्पतिकाय | अन्तर्मुहूर्त | अन्तर्मुहूर्त | |
12 | पर्याप्ता बादर साधारण वनस्पतिकाय | अन्तर्मुहूर्त | अन्तर्मुहूर्त | |
13 | पर्याप्ता बादर पृथ्वीकाय | अन्तर्मुहूर्त | 22,000वर्ष | |
14 | पर्याप्ता बादर अप्काय | अन्तर्मुहूर्त | 7,000 वर्ष | |
15 | पर्याप्ता बादर तेउकाय | अन्तर्मुहूर्त | 3 दिवस | |
16 | पर्याप्ता बादर वाउकाय | अन्तर्मुहूर्त | 3,000 वर्ष | |
17 | पर्याप्ता बादर प्रत्येक वनस्पतिकाय | अन्तर्मुहूर्त | 10,000वर्ष | |
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प्रश्न- 95 पृथ्वीकायिक जीवों के विभिन्न भेदों की आयु बताओ ?
जवाब-95 पृथ्वीकायिक जीवों के विभिन्न भेदों की उत्कृष्ट आयु निम्नलिखित हैं-
1 | पीली मिट्टी की | 600 वर्ष |
2 | सफेद मिट्टी की | 700 वर्ष |
3 | लाल मिट्टी की | 900 वर्ष |
4 | काली मिट्टी की | 1,000 वर्ष |
5 | हरी मिट्टी की | 1,000 वर्ष |
6 | कोमल पृथ्वी की | 1,000 वर्ष |
7 | खारी मिट्टी की | 11,000 वर्ष |
8 | नमक की | 12,000 वर्ष |
9 | ताम्बे की | 13,000 वर्ष |
10 | लोहे की | 14,000 वर्ष |
11 | शीशे की | 14,000 वर्ष |
12 | रुपा की | 15,000 वर्ष |
13 | सोने की | 16,000 वर्ष |
14 | हरताल की | 16,000 वर्ष |
15 | मणसील की | 16,000 वर्ष |
16 | हिंगुल की | 17,000 वर्ष |
17 | कंकर की | 18,000 वर्ष |
18 | भूखरां पत्थरों की | 19,000 वर्ष |
19 | कालमीढ पत्थरों की | 20,000 वर्ष |
20 | आरसपहाण पत्थरों की | 21,000 वर्ष |
21 | हीरा, माणिक, मोती की | 22,000 वर्ष |
प्रश्न- 96 स्थावर (एकेन्द्रिय) जीवों के शरीर का आकार कैसा होता है ?
जवाब-96 पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वाउकाय और वनस्पतिकाय के जीवों के शरीर का आकार क्रमशः मसूर, बुलबुले, सुईओं का समूह, ध्वजा एवं विविध प्रकारका होता है।
प्रश्न- 97 एकेन्द्रिय जीवों में कितने प्राण होते है ?
जवाब- 97 चार प्राणः-1.स्पर्शनेन्द्रिय 2.काय बल प्राण 3.श्वासोच्छवास 4.आयुष्य ।
प्रश्न- 98 एकेन्द्रिय जीव किस किस गुणठाणे में होते हैं ?
जवाब- 98 अपर्याप्त पृथ्वीकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय के जीवों में पहला एवं दूसरा गुणठाणा पाया जाता हैं । तेउकाय एवं वाउकाय के जीवों में मात्र पहला गुणठाणा ही पाया जाता है ।
प्रश्न- 99 एकेन्द्रिय जीव संज्ञी होते हैं या एसंज्ञी ?
जवाब- 99 एकेन्द्रिय जीव असंज्ञी ही होते है ।
प्रश्न- 100 एकेन्द्रिय जीवों की कितनी योनियाँ होती है ?
जवाब- 100 पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय और वाउकाय की सात-सात लाख योनियाँ होती है । प्रत्येक वनस्पतिकाय एवं साधारण वनस्पतिकाय की क्रमशः दस लाख एवं चौदह लाख योनियाँ होती है । कुल मिलाकर बावन लाख योनियाँ एकेन्द्रिय जीवों की होती है |
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