Sunday, 11 September 2011

नवतत्त्व प्रकरण प्रश्नोत्तरी

प्रश्न- 301 पारिग्रहिकी क्रिया किसे कहते है ?

जवाब- 301 परिग्रह से लगने वाली क्रिया पारिग्रहिकी है ।



प्रश्न- 302 माया प्रत्ययिकी क्रिया किसे कहते है ? इसके भेद लीखो ?

जवाब- 302 छल-प्रपंच करके दूसरों को ठगना माया प्रतिययिकी क्रिया है । स्वयं में कपट होते हुए भी शुद्ध भाव दिखाना स्वभाव वंचन तथा झूठी साक्षी, झूठा लेख लिखना परभाव वंचन माया प्रत्ययिकी क्रिया है ।



प्रश्न- 303 मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी क्रिया किसे कहते है ?

जवाब- 303 जिनेश्वर प्ररुपित तत्व के प्रति अश्रद्धान तथा विपरीत मार्ग के प्रति श्रद्धान करनें से लगने वाली मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी क्रिया है ।



प्रश्न- 304 अप्रत्याख्यानिकी क्रिया किसे कहते है ?

जवाब- 304 हेय वस्तु का त्याग प्रत्याख्यान नहीं करने से लगने वाली क्रिया अप्रत्याख्यानिकी है ।



प्रश्न- 305 द्रष्टिकी क्रिया किसे कहते है ?

जवाब- 305 जीव तथा अजीव को रागादि से देखना द्रष्टिकी क्रिया है ।



प्रश्न- 306 स्पृष्टिकी क्रिया किसे कहते है ?

जवाब- 306 जीव तथा अजीव को रागादि से स्पर्श करना स्पृष्टिकी क्रिया है अथवा रागादि भाव से प्रश्न करना प्राश्निकी क्रिया है ।



प्रश्न- 307 प्रातित्यकी क्रिया किसे कहते है ?

जवाब- 307 जीव तथा अजीव वस्तु (बाह्य वस्तु) के निमित्त से राग-द्वेष करन् पर जो क्रिया लगति है, उसे प्रातित्यकी क्रिया कहते है ।



प्रश्न- 308 सामंतोपनिपातिकी क्रिया किसे कहते है ?

जवाब- 308 अपने वैभव, ऐश्वर्य आदि की लोगों द्वारा की जाती प्रशंसा को सुनकर प्रसन्न होना अथवा घी, तेल आदि के पात्र खुले रहन् पर उसमें संपातिम जीवों का गिरकर विनाश होना, सामंतोपनिपातिकी क्रिया है ।



प्रश्न- 309 नैशस्त्रिकी क्रिया किसे कहते है ?

जवाब- 309 राजा आदि की आज्ञा से यंत्रो द्वारा कुँए, तालाब आदि का पानी निकाल कर बाहर फेंकने से, स्वार्थवश योग्य शिष्य या पुत्र को बाहर निकाल देने से, शुद्ध एषनीय भिक्षा होने पर भी निष्कारण परठ देने से जो तथा राजादि की आज्ञा से शस्त्रादि बनवाने पर जो क्रिया लगती है, उसे नैशस्त्रिकी क्रिया कहते है ।



प्रश्न- 310 स्वहस्तिकी क्रिया किसे कहते है ?

जवाब- 310 किसी भी जीव को अपने हाथ में लेकर फेंकने, पटकने, ताडना करने या मारने से जो क्रिया लगती है, उसे स्वहस्तिकी क्रिया कहते है ।



प्रश्न- 311 आज्ञापनिकी क्रिया किसे कहते है ?

जवाब- 311 जीव को आज्ञा करके उससे जीव (व्यक्ति)- अजीव(वस्तु) मंगवाना आज्ञापनिकी क्रिया है ।



प्रश्न- 312 वैदारणिकी क्रिया किसे कहते है ?

जवाब- 312 जीव तथा अजीव का विदारण (चिरना-फाडना) करने से या वितारण (वंचना-ठगाई) करने से लगने वाली क्रिया वैदारणिकी है ।



प्रश्न- 313 अनाभोगिकि क्रिया किसे कहते है ?

जवाब- 313 अनुपयोग (अजयणा-अविवेक) पूर्वक चलने-फिरने से तथा चीजों को रखने-उठाने से लगने वाली क्रिया अनाभोगिकी है ।



प्रश्न- 314 अनवकांक्षप्रत्ययिकी क्रिया किसे कहते है ?

जवाब- 314 स्व-पर के हिताहित का विचार नहीं करते हुए तथा इस लोक व परलोक की परवाह न करते हुए जो क्रिया की जाती है,उसे अनवकांक्षप्रत्ययिकी क्रिया कहते है।



प्रश्न- 315 प्रायोगिकी क्रिया किसे कहते है ?

जवाब- 315 मन-वचन-काया के अशुभ-सावद्य व्यापार से लगने वाली क्रिया को प्रायोगिकी क्रिया है ।



प्रश्न- 316 सामुदानिकी क्रिया किसे कहते है ?

जवाब- 316 जिस पाप कर्म के द्वारा समुदाय रुप में आठों कर्मों का बंध हो तथा सामुदायिक रुप से अनेक जीवों के एक साथ कर्मबंध हो, उसे सामुदानिकी क्रिया कहते है ।



प्रश्न- 317 प्रैमिकी क्रिया किसे कहते है ?

जवाब- 317 स्वयं प्रेम या राग करना अथवा दूसरे को प्रेम पैदा हो ऐसा बोलना, प्रैमिकी क्रिया है ।



प्रश्न- 318 द्वैषिकी क्रिया किसे कहते है ?

जवाब- 318 स्वयं द्वेष करना तथा दूसरे को द्वेष पैदा हो ऐसी क्रिया करना, द्वैषिकी क्रिया है ।



प्रश्न- 319 ईर्यापथिकी क्रिया किसे कहते है ?

जवाब- 319 कर्मबंध के 5 हेतुओं में से केवल योग रुप एक ही हेतु द्वारा बन्ध होता है, वह ईर्यापथिकी क्रिया है । यह 11वें, 12वें, 13वें गुणस्थानक में रहे हुए वीतरागी आत्मा की ही होती है ।



प्रश्न- 320 आश्रव तत्व जानने का उद्देश्य लिखो ?

जवाब- 320 आश्रव यानि कर्मो का आना । आश्रव के 42 भेदों का ज्ञान कर स्व-स्वभाव में आने के लिए इनका त्याग करें, परंतु गृहस्थावस्था में पुण्याश्रव भव-अटवी से पार उतारने में सहायभूत हो सकता है, अतः इस का उपयोगपूर्वक स्वीकार कर आत्मस्वरुप की प्राप्ति करना, इस तत्व को जानने का उद्देश्य है ।



प्रश्न- 321 संवर किसे कहते है ?

जवाब- 321 आश्रव का निरोध ही संवर है । अर्थात् जिन क्रियाओं से आते हुए कर्म रुक बंद हो जाये, वह क्रिया संवर कहलाती है ।



प्रश्न- 322 संवर के 20 भेद कौन कौन से है ?

जवाब- 322 1.सम्यक्त्व संवरः- सुदेव, सुगुरु, सुधर्म पर श्रद्धा रखना ।

2.व्रत संवरः- पच्चक्खाण करना ।

3.अप्रमाद संवरः- 5 प्रकार का प्रमाद नहीं करना ।

4.अकषाय संवरः- 25 कषायों का सेवन नहीं करना ।

5.योग संवरः- मन, वचन, काया की शुभप्रवृत्ति ।

6.दया संवरः- जीवों की हिंसा नहीं करना ।

7.सत्य संवरः- झूठ नहीं बोलना ।

8.अचौर्य संवरः- चोरी नहीं करना ।

9.शील संवरः- ब्रह्मचर्य का सेवन करना ।

10.अपरिग्रह संवरः- परिग्रह नहीं करना ।

11.श्रोत्रेन्द्रिय संवरः- कान को वश में रखना ।

12.चक्षुरिन्द्रिय संवरः- आँख को वश में रखना ।

13.घ्राणेन्द्रिय संवरः- नाक को वश में रखना ।

14.रसनेन्द्रिय संवरः- जीभ को वश में रखना ।

15.स्पर्शेन्द्रिय संवरः- शरीर को वश में रखना ।

16.मन संवरः- मन को वश में रखना ।

17.वचन संवरः- वचन को वश में रखना ।

18.काय संवरः- काया को वश में रखना ।

19.भंडोपकरण संवरः- वस्त्र-पात्र आदि उपकरण जयणा से रखना ।

20.सुसंग संवरः- खराब संगति से दूर रहना ।



प्रश्न- 323 सुदेव, सुगुरु और सुधर्म पर आस्था रखने से कौनसा संवर होता है ?

जवाब- 323 सुदेव, ,गुगुरु और सुधर्म पर श्रद्धा रखने से सम्यक्त्व (समकित) संवर की आराधना होती है ।



प्रश्न- 324 व्रत, नियम, त्याग, प्रत्याख्यान ग्रहण करना कौनसा संवर है ?

जवाब- 324 व्रत, नियम, त्याग, प्रत्याख्यान ग्रहण करना दूसरा व्रत संवर है ।



प्रश्न- 325 क्रोध नहीं करने से क्या होता है ?

जवाब- 325 क्रोध नहीं करने से अकषाय रुप संवर की आराधना होती है ।



प्रश्न- 326 मन पसंद मिष्ठान्न का त्याग, स्वाद के लिए ऊपर से नमक लेने का त्याग करने से कौनसे संवर की आराधना होती है ?

जवाब- 326 उपरोक्तानुसार त्याग करने से रसनेन्द्रिय को वश में रखने रुप संवर की आराधना होती है ।





प्रश्न- 327 पुस्तक, आसन आदि वस्तुओं को यतना पूर्वक लेने और रखने से कौनसे संवर की आराधना होती है ?

जवाब- 327 पुस्तक, आसन आदि वस्तुओं को यतना पूर्वक लेने और रखने में संवर के उन्नीसवें भेद की आराधना होती है ।



प्रश्न- 328 संवर के मुख्य कितने भेद होते है ?

जवाब- 328 पांच – 1.सम्यक्त्व 2.विरति 3.अप्रमाद 4.अकषाय 5.शुभयोग ।



प्रश्न- 329 सम्यक्त्व किसे कहते है ?

जवाब- 329 सुदेव-सुगुरु-सुधर्म पर या जीवादि नव तत्वों पर द्रढ श्रद्धान सम्यक्त्व है ।



प्रश्न- 330 सम्यक्त्व कैसे जाना जाता है ?

जवाब- 330 पांच लिंगो अथवा लक्षणो से सम्यक्त्व जाना जाता है ।



प्रश्न- 331 सम्यक्त्व के पांच लक्षण कौन से है ?

जवाब- 331 1.शम 2.संवेग 3.निर्वेद 4.अनुकंपा 5.आस्तिक्य ।



प्रश्न- 332 शम किसे कहते है ?

जवाब- 332 मिथ्यात्व का शमन करना, शत्रु-मित्र पर समभाव रखना, शम है ।



प्रश्न- 333 संवेग किसे कहते है ?

जवाब- 333 धर्म में रुचि, वैराग्यभाव व मोक्ष की अभिलाषा संवेग है ।



प्रश्न- 334 निर्वेद किसे कहते है ?

जवाब- 334 भोग व संसार में अरुचि रखना, संसार को कैदखाना समझना, आरंभ परिग्रह से निवृत होना, निर्वेद है ।



प्रश्न- 335 अनुकंपा किसे कहते है ?

जवाब- 335 दुःखी जीवों पर दया करना, उनके दुःख को दूर करने का प्रयास करना अनुकंपा है ।







प्रश्न- 336 आस्तिक्य किसे कहते है ?

जवाब- 336 धर्म, पुण्य, पाप, आत्मा, लोक, परलोक, स्वर्ग-नरक में आस्था रखना अर्थात् उनके अस्तित्व को स्वीकारना, आस्तिक्य है ।



प्रश्न- 337 विरति किसे कहते है ?

जवाब- 337 प्रणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, रात्रिभोजन आदि पाप क्रियाओं का देशतः या सर्वतः त्याग करना, विरति कहलाता है ।



प्रश्न- 338 विरति के कितने भेद है ?

जवाब- 338 दो – 1.देशविरति 2.सर्वविरति ।



प्रश्न- 339 देशविरति किसे कहते है ?

जवाब- 339 अपनी शक्ति के अनुसार व्रत पच्चक्खाण करना, अथवा देशतः (आंशिक) अशुभाश्रवों का त्याग करना, देशविरति कहलाता है ।



प्रश्न- 340 सर्वविरति किसे कहते है ?

जवाब- 340 सभी पापो का सर्वथा त्याग करना सर्वविरति कहलाता है ।



प्रश्न- 341 अप्रमाद किसे कहते है ?

जवाब- 341 पांचो प्रमाद छोडना अप्रमाद है । अप्रमाद से प्रमादरुप आश्रव द्वार बंद हो जाते है ।



प्रश्न- 342 अकषाय किसे कहते है ?

जवाब- 342 कषायों का शमन करना, समभाव रखना अकषाय है ।



प्रश्न- 343 नवतत्व में संवर के कितने भेदों का उल्लेख है ?

जवाब- 343 नवतत्व में संवर के 57 भेद इस प्रकार उल्लिखित है ।

समिति-5, गुप्ति-3, परिषह-22, यतिधर्म-10, भावना-12, चारित्र-5 ।



प्रश्न- 344 समिति किसे कहते है ?

जवाब- 344 आवश्क कार्य के लिये यतनापूर्वक सम्यक् चेष्टा या प्रवृत्ति को समिति कहते है ।

प्रश्न- 345 समिति के कितने भेद हैं ?

जवाब- 345 पांच- 1.ईर्या समिति. 2.भाषा समिति 3.एषणा समिति 4.आदान समिति 5.पारिष्ठापनिका समिति ।



प्रश्न- 346 ईर्या समिति किसे कहते है ?

जवाब- 346 ईर्या अर्थात् मार्ग में उपयोग पूर्वक चलना । ज्ञान, दर्शन, चारित्र के निमित्त से मार्ग में युगमात्र (3 1/2 हाथ) भूमि को एकाग्र चित्त से देखते हुए और सजीव मार्ग का त्याग करते हुए यतनापूर्वक गमनागमन करना, ईर्या समिति है ।



प्रश्न- 347 भाषा समिति किसे कहते है ?

जवाब- 347 आवश्यकता होने पर सत्य, हित, मित, प्रिय, निर्दोष और असंदिग्ध भाषा बोलना, भाषा समिति है ।



प्रश्न- 348 एषणा समिति किसे कहते हे ?

जवाब- 348 सिद्धन्त में कही गयी विघि के अनुसार दोष रहित आहार-पानी आदि ग्रहण करना एषणा समिति है । यह समिति मुख्य रुप से साधु के तथा गौण रुप से पौषधव्रधारी श्रावक के होती है ।



प्रश्न- 349 गवेषणा किसे कहते है ?

जवाब- 349 गवेषणा का अर्थ है – खोजना, ढूंढना । श्रमण वृत्ति के अनुसार 16 उत्पादना दोषों से रहित निर्दोष आहार खोजना, गवेषणा कहलाता है ।



प्रश्न- 350 आहार के कितने दोष है ?

जवाब- 350 सैंतालीस – 16 उद्गम (गृहस्थ के द्वारा लगने वाले दोष), 16 उत्पादना – (साधु से लगने वाले दोष), 10 एषणा (साधु तथा दाता दोनों की ओर से लगने वाले दोष), 5 मांडली (आहार करते समय) ।



प्रश्न- 351 आदान समिति किसे कहते है ?

जवाब- 351 वस्त्र, पात्र, आसन, शच्या, संस्तारक आदि संयम के उपकरण तथा ज्ञानोपकरणों को उपयोगपूर्वक प्रमार्जना करके उठाना और रखना आदान समिति है । इसका अपर नाम आदान-भंड-मत्त-निक्षेपणा समिति है । आदान अर्थात् ग्रहण करना । भंड- मत्त – पात्र-मात्रक आदि को जयाणापूर्वक । निक्षेपणा – रखना ।



प्रश्न- 352 पारिष्ठापनिका समिति किसे कहते है ?

जवाब- 352 परिष्ठापना (त्याग करना) के 10 दोषों का त्याग करते हुए लघुनीति, बडीनीति, थूंक, कफ, अशुद्धआहार, निरुपयोगी उपकरणों का विधि तथा जयणापूर्वक त्याग करना पारिष्ठापनिका समिति है । इसका दूसरा नाम उच्चार प्रस्त्रवण खेल जल्ल सिंघाण पारिष्ठापनिका समिति हैं ।

उच्चार – बडीनीत (मल)

प्रस्त्रवण – मूत्र

खेल – श्लेष्म (कफ)

जल्ल – शरीर का मैल

सिंघाण – नाक का मैल

पारिष्ठापनिका – परठना, उत्सर्ग करना या त्याग करना ।



प्रश्न- 353 गुप्ति किसे कहते हैं ?

जवाब- 353 " गुप्यते रक्ष्यते त्रायते वा गुप्तिः " गोपन या रक्षण करे, वह गुप्ति है । संसार में संसरण करते प्राणी की जो रक्षा करे, वह गुप्ति है । अथवा मन, वाणी तथा शरीर को हिंसा आदि सर्व अशुभ प्रवृत्तियों से निग्रह (वश) करके रखना, सम्यक् प्रकार से उपयोग पूर्वक निवृत्ति रखना गुप्ति है ।



प्रश्न- 354 मनोगुप्ति किसे कहते है ?

जवाब- 354 आर्तध्यान, रौद्रध्यान, संरम्भ, समारंभ तथा आरंभ संबंधी संकल्प न करना, शुभाशुभ योगों को रोककर योगनिरोध अवस्था को प्राप्त करना मनोगुप्ति है ।



प्रश्न- 355 वचनगुप्ति किसे कहते है ?

जवाब- 355 वचन के अशुभ व्यापार अर्थात् संरम्भ-समाररंभ तथा आरंभ संबंधी वचन का त्याग करना, विकथा नहीं करना, मौन रहना वचन गुप्ति है ।









प्रश्न- 356 भाषा समिति और वचनगुप्ति में क्या अन्तर है ?

जवाब- 356 भाषा समिति निरवद्य वचन बोलने रुप एक ही प्रकार की है जबकी वचनगुप्ति सर्वथा वचन निरोध व निरवद्य (निर्दोष) वचन बोलने रुप दो प्रकार की है ।



प्रश्न- 357 कायगुप्ति किसे कहते है ?

जवाब- 357 खडा होना, उठना, बैठना, सोना आदि कायिक प्रवृत्ति न करना अर्थात् काया को सावद्य प्रवृत्ति से रोकना तथा निरवद्य प्रवृत्ति में जोडना कायगुप्ति है ।



प्रश्न- 358 समिति तथा गुप्ति में क्या अंतर है ?

जवाब- 358 समिति में सत्क्रिया का प्रवर्तन मुख्य है और गुप्ति में असत्क्रिया का निषेध मुख्य है ।



प्रश्न- 359 अष्टप्रवचनमाता किसे और क्यों कहा गया है ?

जवाब- 359 5 समिति तथा 3 गुप्ति, ये आठ प्रवचन माता कही जाती है । इन आठों से ही संवर धर्म रुपी पुत्र का पालनपोषण होता है । इसलिये इन्हें प्रवचनमाता कहा गया है ।



प्रश्न- 360 परिषह किसे कहते है ?

जवाब- 360 'परिषह' शब्द परि+सह के संयोग से बना है । अर्थात् परिसमन्तात् – सब तरफ से, सम्यक् प्रकार से, सह-सहना, समभावपूर्वक सहन करना परिषह कहलाता है ।



प्रश्न- 361 क्षुधा परिसह किसे कहते है ?

जवाब- 361 संयम की मर्यादा के अनुसार भिक्षा न मिलने पर भूख को समभाव पूर्वक सहन करना परंतु सावद्य या अशुद्ध आहार ग्रहण न करना व आर्तध्यान भी नहीं करना, क्षुधा परिषह कहलाता है ।



प्रश्न- 362 पिपासा परिसह किसे कहते है ?

जवाब- 362 जब तक निर्दोष – अचित्त जल न मिले तब तक प्यास सहन करना पर सचित्त अथवा सचित्त – अचित्त मिश्रित जल नहीं पीना, पिपासा परीषह कहलाता है ।



प्रश्न- 363 शीत परिषह किसे कहते है ?

जवाब- 363 अतिशय ठंड पडने से अंगोपांग अकड जाने पर भी अपने पास जो मर्यादित एवं परिमित वस्त्र हो, उन्हीं से निर्वाह करना एवं आग आदि से ताप न लेना, शीत परिषह है ।



प्रश्न- 364 उष्ण परिषह किसे कहते है ?

जवाब- 364 गर्मी के मौसम में तपी हुई शिला, रेत आदि पर पदत्राण के बिना चलना, भीषण गर्मी में भी स्नान-विलेपन की इच्छा न करना, मरणान्त कष्ट आने पर भी छत्र-छत्री की छाया, वस्त्रादि अथवा पंखे की हवा न लेना, उष्ण परिषह है ।



प्रश्न- 365 दंश परिषह किसे कहते है ?

जवाब- 365 वर्षाकाल में डांस, मच्छर, खटमल आदि का उपद्रव होने पर भी धुएँ, औषध आदि का प्रयोग न करना, न उन जीवों पर द्वेष करना बल्कि उनके डंक की वेदना को समभावपूर्वक सहन करना, दंश परिषह कहलाता है ।



प्रश्न- 366 अचेल परिषह किसे कहते है ?

जवाब- 366 अपने पास रहे हुए अल्प तथा जीर्ण-शीर्ण वस्त्रों में संयम निर्वाह करना, बहुमूल्य वस्त्रादि लेने की इच्छा न करना, अत्यल्प मिले तो भी दीनता का विचार न करना, अचेल परीषह है ।



प्रश्न- 367 अरति परिषह किसे कहते है ?

जवाब- 367 मन के अनुकूल साधनों के न मिलने पर आकुल-व्याकुल न होना, उदास न होना, संयम पालन में अरुचि पैदा न होना, धर्म क्रिया को करते हुए उल्लासभाव रहना, अरति परिषह है ।



प्रश्न- 368 स्त्री परिषह किसे कहते है ?

जवाब- 368 स्त्रियों को संयम मार्ग में विघ्न का कारण समझकर सराग द्रष्टि से न देखना, उनके अंग-उपांग, कटाक्ष, हाव-भाव पर ध्यान न देना, विकार भरी द्रष्टि से न देखना, ब्रह्मचर्य में द्रढ रहना, स्त्री परिषह हैं ।







प्रश्न- 369 चर्या परिषह किसे कहते है ?

जवाब- 369 चर्या अर्थात् चलना, विहार करना । चलने में जो श्रान्ति- थकावट होती है तथा विहार के समस्त कष्टों को समभावपूर्वक सहन करना तथा मासकल्प की मर्यादानुसार विहार करना, चर्या परिषह है ।



प्रश्न- 370 निषद्या परिषह किसे कहते है ?

जवाब- 370 श्मशान, शून्य गृह, गुफा आदि में ध्यान अवश्था में मनुष्य – पशु – देव द्वारा किसी भी प्रकार का अनुकूल अथवा प्रतिकूल उपसर्ग आने पर उससे बचने के लिये उस स्थान को छडकर न जाना बल्कि उन उपसर्गों को द्रढतापूर्वक सहन करना, निषद्या परिसह है ।



प्रश्न- 371 शच्या परिषह किसे कहते हैं ?

जवाब- 371 सोने के लिये उंची-नीची, कठोर जमीन मिलने पर भी मन में किसी प्रकार का द्वेष भाव न लाकर सहजतापूर्वक स्वीकार कर लेना, शच्या परिसह है ।



प्रश्न- 372 आक्रोश परिषह किसे कहते हैं ?

जवाब- 372 कोइ अज्ञानी गाली दे, कटुवचन कहे, तिरस्कार या अपमान करें तब भी उससे द्वेष न करना, आक्रोश परिषह हैं ।



प्रश्न- 373 वध परिषह किसे कहते हैं ?

जवाब- 373 कोइ अज्ञानी पुरुष साधु को डंडे से, लाठी या चाबुक से मारे-पीटे अथवा हत्या भी कर दे तब भी मन में किञ्चित रोष न लाना, वध परिषह हैं ।



प्रश्न- 374 याचना परिषह किसे कहते है ?

जवाब- 374 साधु कोई भी वस्तु मांगे बिना ग्रहण नहीं करता । उसकी प्राप्ति के लिये 'में राजा हूँ, धनाढ्य हूँ' इत्यादि मान एवं अहं का त्याग करके घर-घर से भिक्षा मांगकर लाना, याचना करते समय अपमान व लज्जा आदि को जीतना, याचना परिषह है ।









प्रश्न- 375 अलाभ परिषह किसे कहते है ?

जवाब- 375 मान तथा लज्जा का त्याग कर घर घर भिक्षा मांगने पर भी न मिले तो लाभान्तराय कर्म का उदय जानकर शान्त रहना, दुःखी अथवा उत्तेजित न होना, अलाभ परिषह है ।



प्रश्न- 376 रोग परिषह किसे कहे है ?

जवाब- 376 शरीर में ज्वर आदि रोग आने पर 'शरीर व्याधियों का घर है' ऐसा मानकर चिकित्सा न कराना, रोगावस्था में भी मन को शान्त तथा स्वस्थ रखना रोग परिषह है ।



प्रश्न- 377 तृण स्पर्श परिषह किसे कहते है ?

जवाब- 377 दर्भ, घास आदि पर सोने से घास के तृणों के कठोर स्पर्श के चुभने से अथवा खुजली आदि होने पर भी उद्विग्न न होना, तृणस्पर्श परिषह है ।



प्रश्न- 378 मल परिषह किसे कहते है ?

जवाब- 378 साधु के लिये स्नान श्रुंगार का कारण है और श्रुंगार विषय का कारण रुप है, अतः शरीर पर स्वेद-पसीने के कारण मैलादि जमने पर दुर्गंध आती हो तब भी उसे दूर करने के लिये स्नानादि की इच्छा न करना, मल परिसह है ।



प्रश्न- 379 सत्कार परिषह किसे कहते है ?

जवाब- 379 समायिक, धार्मिक, राष्ट्रिय सत्कार प्राप्त होने पर भी मनमें हर्ष तथा गर्व न करना, सत्कार परीसह है ।



प्रश्न- 380 प्रज्ञा परिषह किसे कहते है ?

जवाब- 380 बहुश्रुत गीतार्थ होने पर बहुत से लोग प्रश्न पूछते हैं, तो कोई विवाद भी करते हैं । इससे खिन्न होकर ज्ञान को दुःखदायक और अज्ञान को सुखदायक नहीं मानकर समभाव से लोगों की शंका व जिज्ञासाओं को समाहित करना, प्रज्ञा परिषह है ।









प्रश्न- 381 अज्ञान परिसह किसे कहते है ?

जवाब- 381 ज्ञान प्राप्ति के लिये अथक प्रयास, तपस्या तथा ज्ञानाभ्यास करने पर भी ज्ञान की प्राप्ति न होने पर अपने आप को पुण्यहीन, निर्भाग मनाकर खिन्न न होना अपितु ज्ञनावरणीय कर्म का उदय समझकर चित्त को शांत रखना, अज्ञान परिसह है ।



प्रश्न- 382 सम्यक्त्व परिसह किसे कहते है ?

जवाब- 382 नाना प्रकार के प्रलोभन अथवा अनेक कष्ट व उपसर्ग आने पर भी अन्य पाखंडियों के आडम्बर पर मोहित न होकर सर्वज्ञ प्रणित धर्म तत्व पर अटल श्रद्धा रखना, शास्त्रीय सूक्ष्म



प्रश्न- 383 अनुकूल परिषह किसे कहते है ?

जवाब- 383 जिसे आत्मा को सुखका अनुभव हो, वे अनुकूल परीसह कहलाते हैं । स्त्री, प्रज्ञा तथा सत्कार ये तीन अनुकूस परिषह हैं ।



प्रश्न- 384 प्रतिकूल परिषह किसे कहते है ?

जवाब- 384 जिससे आत्मा को दुःख या कष्ट का अनुभव हो, वे प्रतिकुल परिसह है । अनुकूल तीन परिषहों को छोडकर बाकीके 19 परिषह प्रतिकूल है ।



प्रश्न- 385 यतिधर्म किसे कहते है ?

जवाब- 385 यति अर्थात् साधु । साधु के द्वारा पालन किया जानेवाला धर्म यतिधर्म है अथवा मोक्ष मार्ग में जो यत्न करे, वह यति है । उसका धर्म यति धर्म है ।



प्रश्न- 386 यति धर्म के कितने भेद है ?

जवाब- 386 दस- 1.क्षमा 2.मार्दव 3.आर्जव 4.मुक्ति 5.तप 6.संयम 7.सत्य 8.शौच. 9.आकिंचन्य 10.ब्रह्मचर्य ।



प्रश्न- 387 क्षमाधर्म से क्या तात्पर्य है ?

जवाब- 387 प्राणीमात्र के प्रति मैत्री भाव का सम्बन्ध रखते हुए किसी पर क्रोध न करना, शक्ति के होने पर भी उसका उपयोग न करना क्षमाधर्म हैं ।



प्रश्न- 388 मार्दव धर्म किसे कहते हैं ?

जवाब- 388 नम्रता रखना अथवा मान का त्याग करना । जाति, कुल, रुप, ऐश्वर्य, तप, ज्ञान, लाभ और बल, इन आठों मद में से किसी भी प्रकारका मद न करना, मार्दव धर्म कहलाता है ।



प्रश्न- 389 आर्जव धर्म किसे कहते है ?

जवाब- 389 आर्जव अर्थात् सरलता। कपट रहित होना, या माया, दम्भ, ठगी आदि का सर्वथा त्याग करना, आर्जव धर्म है ।



प्रश्न- 390 मुक्ति धर्म किसे कहते है ?

जवाब- 390 निर्लोभता । लोभ को जीतना व पौद्गलिक पदार्थो पर आसक्ति न रखना मुक्ति धर्म है ।



प्रश्न- 391 तप धर्म किसे कहते है ?

जवाब- 391 इच्छाओं का रोध (रोकना) करना ही तप है । तप को संवर तथा निर्जरा, दोनों तत्वों के भेद में गिना गया है क्योंकि इससे संवर तथा निर्जरा, दोनों होते है ।



प्रश्न- 392 संयम धर्म किसे कहते है ?

जवाब- 392 हिंसादि अशुभ प्रवृत्तियों से निवृत्त होकर सं-सम्यक् प्रकार से, यम- पंच महाव्रतों या अणुव्रतों का पालन करना, संयम धर्म है ।



प्रश्न- 393 सत्य घर्म किसे कहते है ?

जवाब- 393 सत्य, हित, मित, निर्दोष, मधुर वचन बोलना सत्यधर्म है ।



प्रश्न- 394 शौच धर्म किसे कहते है ?

जवाब- 394 शौच अर्थात् पवित्रता । मन, वचन, काया तथा आत्मा की पवित्रता । द्रव्य तथा भाव से पवित्र रहना शौचकर्म है ।



प्रश्न- 395 आकिंचन्य धर्म किसे कहते है ?

जवाब- 395 अ अर्थात् नहीं, किंचन-कोइभी । किसी भी प्रकार का परिग्रह या ममत्व न रखना, अकिंचन धर्म है ।







प्रश्न- 396 ब्रह्मचर्य धर्म किसे कहते है ?

जवाब- 396 नववाड सहित मन, वचन, काया से पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना ब्रह्मचर्य है ।



प्रश्न- 397 ब्रह्मचर्य की नववाड कौनसी है ?

जवाब- 397 वाड से जैसे क्षेत्र का रक्षण होता है, उसी प्रकार नववाड से ब्रह्मचर्य का रक्षण होता है । उसके नौ प्रकार है –

1. संसक्त वसतित्यागः- जहाँ पर स्त्री, पशु व नपुंसक रहते हो, ऐसे स्थान का त्याग करना ।

2. स्त्रीकथा त्यागः- स्त्री के रुप, लावण्य की चर्चा न करना ।

3. जिस स्थान पर स्त्री बैठी हो, उस पर 48 मिनिट तक न बैठना ।

4. अंगोपांग निरीक्षण त्यागः- स्त्री के अंगोपांग न देखना ।

5. संलग्न दीवार त्यागः- संलग्न दीवार में जहाँ दम्पति रहते हो, ऐसे स्थान का त्याग करना ।

6. पूर्वक्रीडित भोगों का विस्मरणः– पूर्वकाल में भोगे हुए भोगों को याद न करना ।

7. प्रणीत आहार त्यागः- गरिष्ठ-मादक, घी से झरते हुआ आहार न करना ।

8. अति आहार त्यागः- प्रमाण से अधिक भोजन न करना ।

9. विभूषा त्याग – स्नान, इत्र, तैल आदि से मालिश आदि शरीर का शोभा बढानेवाली प्रवृत्तियों का त्याग करना ।



प्रश्न- 398 क्या यतिधर्म केवळ साधु द्वारा ही आचरणीय है ?

जवाब- 398 यद्यपि इसका नाम श्रमणधर्म है तथापि श्रावक भी देशविरति रुप चारित्र धर्म का पालन करता है, अतः उसके लिये एवं सभी के लिये दशविध धर्म आचरणीय है ।



प्रश्न- 399 भावना किसे कहते है ?

जवाब- 399 चित्त को स्थिर करने के लिये किसी तत्व पर पुनः पुनः चिंतन करना भावना है । अथवा भावना का सामान्य अर्थ तो मन के विचार, आत्मा के शुभाशुभ परिणाम है । इसका दूसरा नाम अनुप्रेक्षा भी है । मोक्षमार्ग के प्रति भाव की वृद्धि हो, ऐसा चिंतन करना भावना है ।



प्रश्न- 400 भावनाएँ कितनी व कौन कौन सी है ?
जवाब- 400 भावनाएँ बारह हैं – 1.अनित्य 2.अशरण 3.संसार 4.एकत्व 5.अन्यत्व 6.अशुचित्व 7.आश्रव 8.संवर 9.निर्जरा 10.लोकस्वभाव 11.बोधिदुर्लभ 12.धर्म साधक अरिहंत दुर्लभ ।

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