Sunday, 11 September 2011

नवतत्त्व प्रकरण प्रश्नोत्तरी

प्रश्न- 101 साकारोपयोग के कितने भेद होते है ?
जवाब- 101 साकारोपयोग के निम्न आठ भेद है- 1.मतिज्ञान 2.श्रुतज्ञान 3.अवधिज्ञान 4.मनःपर्यवज्ञान 5.केवलज्ञान 6.मतिअज्ञान 7.श्रुतअज्ञान 8.विभंगज्ञान ।





प्रश्न- 102 निराकारोपयोग किसे कहते है ?
जवाब- 102 जिसके द्वारा वस्तु के सामान्य धर्म को जाना जाय, वह निराकारोपयोग हैं ।

प्रश्न- 103 निराकारोपयोग के कितने भेद होते है ? नाम लीखो ।
जवाब- 103 निराकारोपयोग के 4 भेद निम्नोक्त हैं – 1.चक्षुदर्शन 2.अचक्षुदर्शन 3.अवधिदर्शन 4.केवलदर्शन ।

प्रश्न- 104 चारित्र किसे कहते है ?
जवाब- 104 ज्ञानादि गुणो में रमणता प्राप्त करना अथवा आठ कर्मो को नष्ट करने के लिये यम-नियमादि शुभ आचरण का पालन करना चारित्र है ।

प्रश्न- 105 चारित्र के कितने भेद है ?
जवाब- 105 चारित्र के दो भेद है- 1.द्रव्य चारित्र 2.भाव चारित्र ।

प्रश्न- 106 द्रव्य चारित्र किसे कहते है ?
जवाब- 106 व्यवहार में समस्त अशुभ तथा हिंसाजनक क्रियाओं का त्याग द्रव्य चारित्र है ।

प्रश्न- 107 भाव चारित्र किसे कहते है ?
जवाब- 107 हिंसादिक अशुभ तथा रौद्र परिणामो से अपने मन को पीछे हटाना या संयत करना भाव चारित्र है ।

प्रश्न- 108 तप किसे कहते है ?
जवाब- 108 इच्छाओं का अभाव होना अथवा अनशनादि शुभाशुभ क्रियाओं के द्वारा आठ कर्मो का क्षय करना तप है ।

प्रश्न- 109 वीर्य किसे कहते है ?
जवाब- 109 आत्मा की शक्ति या पराक्रम को वीर्य कहते है ।



प्रश्न- 110 उपयोग किसे कहते है ?
जवाब- 110 जिसके द्वारा ज्ञान तथा दर्शन गुण की प्रवृत्ति होती है, उसे उपयोग कहते हैं ।

प्रश्न- 111 जीव के बाह्य लक्षण क्या है ?
जवाब- 111 10 प्रकारके द्रव्य प्राण जीव के बाह्य लक्षण हैं ।

प्रश्न- 112 जीव के आंतरीक लक्षण क्या हैं ?
जवाब- 112 जीव के आंतरीक लक्षण अनंतज्ञान-दर्शन-चारित्र-तप तथा वीर्य है । इन्हें भावप्राण भी कहते है ।

प्रश्न- 113 द्रव्यप्राण किसे कहते है ?
जवाब- 113 जिसके द्वारा जीव जीवित रहता हैं, उसे द्रव्य प्राण कहते हैं ।

प्रश्न- 114 द्रव्य प्राण कितने व कौन-कौन से है ?
जवाब- 114 द्रव्य प्राण 10 हैं- पांच इन्द्रिय प्राण- 1.स्पर्श 2.रस 3.घ्राण 4.चक्षु 5.श्रोत तीन बल प्राण – 6.मनोबल प्राण 7.वचनबल प्राण 8.कायबल प्राण 9.श्वासोच्छवास प्राण 10.आयुष्य प्राण ।

प्रश्न- 115 प्राण तथा पर्याप्ति में क्या अंतर है ?
जवाब- 115 पर्याप्ति प्राणों का कारण है तथा प्राण उसका कार्य हैं ।

प्रश्न- 116 पर्याप्ति तथा प्राण का काल कितना होता है ?
जवाब- 116 पर्याप्ति का काल अन्तर्मुहूर्त का है, जबकि प्राण जीवन पर्यंत रहते है ।

प्रश्न- 117 कौन सा प्राण किस पर्याप्ति द्वारा उत्पन्न होता है ?
जवाब- 117 5 इन्द्रिय प्राण - मुख्य रुप से इन्द्रिय पर्याप्ति द्वारा ।
कायबल प्राण - मुख्य रुप से शरीर पर्याप्ति द्वारा ।
वचनबल प्राण - मुख्य रुप से भाषा पर्याप्ति द्वारा ।
मनोबल प्राण - मुख्य रुप से मनः पर्याप्ति द्वारा ।
श्वासोच्छवास प्राण - मुख्य रुप से श्वासोच्छवास पर्याप्ति द्वारा ।
आयुष्य प्राण - इस में आहारादि पर्याप्ति सहचारी-उपकारी कारण रुप है ।

प्रश्न- 118 इन्द्रिय प्राण किसे कहते है ?
जवाब- 118 इन्द्रियों के द्वारा मिलने वाली शक्ति को इन्द्रिय प्राण कहते है ।

प्रश्न- 119 योग किसे कहते है ?
जवाब- 119 मन, वचन तथा काया के व्यापार को योग कहते हैं ।

प्रश्न- 120 बल प्राण किसे कहते है ?
जवाब- 120 तीन योग से मिलने वाली शक्ति-बल को बलप्राण कहते है ।

प्रश्न- 121 बल प्राण से क्या अभिप्राय हैं ?
जवाब- 121 मनोबल प्राण – विचार करने की शक्ति ।
वचनबल प्राण – बोलने की शक्ति ।
कायबल प्राण – शरीर की शक्ति ।

प्रश्न- 122 श्वासोच्छवास प्राण किसे कहते है ?
जवाब- 122 श्वासोच्छवास वर्गणा के पुद्गलों को शरीर में ग्रहण करने और बाहर निकालने की शक्ति को श्वासोच्छवास प्राण कहते है ।

प्रश्न- 123 आयुष्य प्राण किसे कहते है ?
जवाब- 123 जिसके संयोग से एक शरीर में अमुक समय तक जीव रहता है तथा जिसके वियोग से जीव (आत्मा) उस शरीर में से निकल जाय, उसे आयुष्य प्राण कहते है ।

प्रश्न- 124 आयुष्य प्राण के कितने भेद है ?
जवाब- 124 आयुष्य प्राण के दो भेद है- 1.द्रव्य आयुष्य 2.काल आयुष्य ।
अन्य अपेक्षा से – 1.अपवर्तनीय 2.अनपवर्तनीय ।



प्रश्न- 125 द्रव्य आयुष्य किसे कहते है ?
जवाब- 125 आयुष्य कर्म के पुद्गल द्रव्य आयुष्य है ।
प्रश्न- 126 काल आयुष्य किसे कहते है ?
जवाब- 126 उन पुद्गलों द्वारा जीव जितने समय तक अमुक एक भव में स्थित रहता है, उसका नाम काल आयुष्य है ।

प्रश्न- 127 अपवर्तनीय आयुष्य किसे कहते है ?
जवाब- 127 आयुष्य कर्म के बंधे हुए पुद्गल किसी निमित्त अथवा शस्त्रादि के आघात आदि को प्राप्त कर शीघ्र क्षीण हो जाय अर्थात् अकाल मृत्यु की प्राप्ति होना, अपवर्तनीय आयुष्य है ।

प्रश्न- 128 अनपवर्तनीय आयुष्य किसे कहते है ?
जवाब- 128 बंधे हुए आयुष्य में किसी प्रकार का परिवर्तन संभव न हो, जितना बांधा हो, उतना अवश्यमेव भोगना पडे, उसे अनपवर्तनीय आयुष्य कहते है ।

प्रश्न- 129 द्रव्य तथा काल आयुष्य को भोगे बिना क्या जीव की मृत्यु संभव है ?
जवाब- 129 इन दोनो में से जीव ने द्रव्य आयुष्य यदि अपवर्तनीय बांधा है तो द्रव्य आयुष्य अवश्य भोगता है परंतु काल आयुष्य पूर्ण करता है अथवा नहीं भी करता है । अपूर्ण काल में मृत्यु संभव है, पर द्रव्य आयुष्य तो पूर्ण भोगना ही पडता है । और यदि द्रव्य आयुष्य अनपवर्तनीय बांधा है तो द्रव्य और काल, दोनों आयुष्य अवश्य भोगता है ।
प्रश्न- 130 अकाल मृत्यु होने पर द्रव्य आयुष्य को पूर्ण भोगना कैसे संभव है ?
जवाब- 130 द्रव्य आयुष्य के पुद्गल चूंकि अपवर्तनीय अर्थात् अकस्मात् किसी आघात से शीघ्र क्षय के स्वभाव वाले होने से अंतिम समय में एक ही साथ भोग लिये जाते है ।
प्रश्न- 131 अनपवर्तनीय आयुष्य किन-किन जीवों को प्राप्त होता है ?
जवाब- 131 4 प्रकार के जीवों को अनपवर्तनीय आयुष्य की प्राप्ति होती है –
1. उपपात जन्म वाले – समस्त देव तथा नारकी जीव ।
2. चरम शरीरी – अंतिम शरीरी अर्थात् उसी भव में मोक्ष जाने वाले, आगे संसार में जन्म नहीं लेने वाले ।
3. उत्तम पुरुष – अर्थात् त्रेषठशलाका पुरुष (24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 वासुदेव, 9 बलदेव तथा 9 प्रतिवासुदेव)
4. असंख्येयवर्षायुषी – असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले युगलिक तिर्यंच तथा युगलिक मनुष्य । शेष जीवों के अपवर्तनीय और अनपवर्तनीय , दोनों प्रकार के आयुष्य होते है ।

प्रश्न- 132 एकेन्द्रिय तथी द्वीन्द्रिय जीवों के क्रमशः एक तथा दो ही इन्द्रियाँ (स्पर्श, रस) होने से श्वासोच्छवास लेना कैसे संभव है ?
जवाब- 132 तीन तथा उससे अधिक इन्द्रिय वाले जीवों को जो श्वासोच्छवास नासिका (घ्राणेन्द्रिय) द्वारा ग्रहण होता है, वह दिखाई देने वाला बाह्य श्वासोच्छवास है परंतु इसका ग्रहण, प्रयत्न तथा परिणमन तो सर्व आत्मप्रदेशों से होता है । इसे आभ्यंतर श्वासोच्छवास भी कहते है । जिन एकेन्द्रिय तथा द्वीन्द्रिय जीवों के नासिका नहीं है, वे सर्व शरीर प्रदेशों से श्वासोच्छवास के योग्य पुद्गल ग्रहण कर परिणमन कर विसर्जित करते हैं । इन जीवों का श्वासोच्छवास अव्यक्त है, जबकी नासिकावाले जीवों का श्वासोच्छवास व्यक्त-अव्यक्त दोनों प्रकार का होता है ।

प्रश्न- 133 अपर्याप्त जीवों के कितने प्राण होते है ?
जवाब- 133 अपर्याप्त को उत्कृष्ट से 7 तथा जघन्य से तीन प्राण होते हैं ।

प्रश्न- 134 जीव तत्व को जानने का उदेश्य क्या है ?
जवाब- 134 जीव तत्व ज्ञेय है अर्थात् जानने योग्य है क्योंकि जीवतत्व को जाने बिना नव तत्वो में हेय, ज्ञेय व उपादेय कौन हैं, उसकी प्रतीति नहीं हो सकती ।

प्रश्न- 135 अजीव किसे कहते है ?
जवाब- 135 जो चैतन्य रहित हो, जो सुख-दुःख के अनुभव से रहित हो, जड हो, उसे अजीव कहते है ।

प्रश्न- 136 अजीव के भेद तथा उपभेद कितने है ?
जवाब- 136 अजीव के मुख्य भेद 5 तथा कुल भेद 14 है ।



प्रश्न- 137 अजीव के 5 भेद कौन कौन से है ?
जवाब- 137 1.धर्मास्तिकाय 2.अधर्मास्तिकाय 3.आकाशास्तिकाय 4.पुद्गलास्तिकाय 5.काल ।
प्रश्न- 138 अजीव के 14 उपभेद कौन कौन से है ?
जवाब- 138 अजीव के 14 उपभेद निम्नप्रकार है –
धर्मास्तिकाय के तीन भेद - स्कंध, देश, प्रदेश ।
अधर्मास्तिकाय के तीन भेद - स्कंध, देश, प्रदेश ।
आकाशास्तिकाय के तीन भेद - स्कंध, देश, प्रदेश ।
पुद्गलास्तिकाय के चार भेद - स्कंध, देश, प्रदेश, परमाणु ।
काल का एक भेद, इस प्रकार अजीव के कुल 14 भेद होते है ।



प्रश्न- 139 धर्मास्तिकाय किसे कहते है ?
जवाब- 139 जीव एवं पुद्गलों की गति में सहायक बनने वाले द्रव्य को धर्मास्तिकाय कहते है ।
प्रश्न- 140 अधर्मास्तिकाय किसे कहते है ?
जवाब- 140 जीव तथा पुद्गल को स्थिर करने में सहयोग करने वाला द्रव्य अधर्मास्तिकाय कहलाता है ।
प्रश्न- 141 आकाशास्तिकाय किसे कहते है ?
जवाब- 141 जीव तथा पुद्गलों को अवकाश (स्थान) देने वाला द्रव्य आकाशास्तिकाय कहलाता है ।
प्रश्न- 142 पुद्गलास्तिकाय किसे कहते है ?
जवाब- 142 जो प्रतिसमय पूरण एवं गलन स्वभाव वाला है, उसे पुद्गलास्तिकाय कहते है ।
प्रश्न- 143 काल किसे कहते है ?
जवाब- 143 वस्तुओं के परिणमन अर्थात् परिवर्तन में सहकारी रुप शक्ति को काल कहते है । अथवा जो नवीन वस्तु को पुरानी तथा पुरानी को नष्ट करे, वह काल ।



प्रश्न- 144 अस्तिकाय किसे कहते है ?
जवाब- 144 अस्ति – छोटे से छोटा अविभाज्य अंश, जिसके दो टुकडे न हो सके ऐसा अविभागी प्रदेश । काय अर्थात् समूह । अस्तिकाय – प्रदेशों के समूह को अस्तिकाय कहते है ।
प्रश्न- 145 षट्द्रव्य में कितने द्रव्य अस्तिकाय कहलाता है ?
जवाब- 145 1.धर्मास्तिकाय 2.अधर्मास्तिकाय 3.आकाशास्तिकाय 4.जीवास्तिकाय 5.पुद्गलास्तिकाय ये पांचो द्रव्य प्रदेशों के समूह होने से अस्तिकाय कहलाते है ।
प्रश्न- 146 काल को अस्तिकाय क्यों नहीं कहा गया है ?
जवाब- 146 काल केवल वर्तमान में एक समय रुप ही होता है । उसके स्कंध, देश, प्रदेश नहीं होते हैं, क्योंकी वह अखण्ड द्रव्य रुप है । इसलिये उसके साथ अस्तिकाय शब्द नहीं जोडा जाता ।



प्रश्न- 147 स्कंध किसे कहते है ?
जवाब- 147 परमाणुओं के समुह को स्कंध कहते है अथवा अनेक प्रदेश वाले एक पूरे द्रव्य को स्कंध कहते है । जैसे – अनेक दानों से बना हुआ मोतीचुर का अखण्ड लड्डू ।
प्रश्न- 148 देश किसे कहते है ?
जवाब- 148 अनेक प्रदेशों वाले एक द्रव्य के स्कंध में रहे हुए एक भाग को देश कहते है । जैसे अनेक कणों वाले मोतीचूर के लड्डू का एक भाग ।
प्रश्न- 149 प्रदेश किसे कहते है ?
जवाब- 149 स्कंध या देश से मिले हुए अविभाज्य अंश को अथवा अनेक प्रदेशों वाले द्रव्य के स्कंध में रहे हुए अविभाज्य भाग को प्रदेश कहते है । जैसे अनेक कणों वाले मोतीचूर के लड्डू को एक अविभाज्य कण ।
प्रश्न- 150 परमाणु किसे कहते है ?
जवाब- 150 स्कंध या देश से पृथक हुए निर्विभाज्य सूक्ष्मतम अंश को, जिसके दो टुकडे नहीं हो शके, उसे परमाणु कहते है । जैसे – लड्डू से पृथक हुआ निर्विभाज्य कण परमाणु है ।
प्रश्न- 151 प्रदेश तथा परमाणु में क्या अंतर है ?
जवाब- 151 अणु जब स्कंध से जुडा रहे तो प्रदेश कहलाता है और पृथक हो जाय तब परमाणु कहलाता है ।
प्रश्न- 152 प्रदेश बडा होता है या परमाणु ?
जवाब- 152 दोनों ही समान क्षेत्र को घेरने वाले होने से एक समान है ।
प्रश्न- 153 धर्मास्तिकाय – अधर्मास्तिकाय – आकाशास्तिकाय इन तीनों के परमाणु रुप भेद क्यों नहीं होता ?
जवाब- 153 धर्मास्तिकायादि के समस्त प्रदेश स्कंध के साथ जुडे हुए ही रहते हैं क्योंकी ये तीनों अखण्ड द्रव्य है । इनका प्रदेश कभी भी द्रव्य से अलग नहीं होता । जो स्कंध से अलग पडता है, वही प्रदेश परमाणु कहा जाता हैं ।

प्रश्न- 154 गुण किसे कहते है ?
जवाब- 154 अविच्छिन्न रुप से द्रव्य में रहने वाला गुण है । द्रव्य का जो सहभावी धर्म अर्थात् द्रव्य के आश्रित रहने वाले पदार्थ को गुण कहते है । जैसे आत्मा का गुण चेतना, ज्ञान । सोने का गुण पीतत्व आदि ।

प्रश्न- 155 पर्याय किसे कहते है ?
जवाब- 155 द्रव्य की जो भिन्न-भिन्न अवस्थाएँ होती है, उसे पर्याय कहते है । जैसे आत्मा की मनुष्यत्व, देवत्व तथा सोने की हार, कंगन आदि विभिन्न दशाएँ पर्याय हैं ।
प्रश्न- 156 उत्पाद किसे कहते है ?
जवाब- 156 उत्पन्न होना उत्पाद है ।

प्रश्न- 157 व्यय किसे कहते है ?
जवाब- 157 नष्ट होना व्यय है ।

प्रश्न- 158 ध्रौव्य किसे कहते है ?
जवाब- 158 स्थिर रहना अथवा अपने स्वरुप को सुरक्षित रखना ध्रौव्य है ।



प्रश्न- 159 आकाशास्तिकाय के कितने भेद है ?
जवाब- 159 आकाशास्तिकाय के दो भेद हैं – 1.लोकाकाश 2.अलोकाकाश ।

प्रश्न- 160 लोकाकाश किसे कहते है ?
जवाब- 160 जिस में धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, जीवादि द्रव्य रहते हैं, उसे लोकाकाश कहते है ।

प्रश्न- 161 अलोकाकाश किसे कहते है ?
जवाब- 161 जिस में आकाश के अतिरिक्त किसी भी द्रव्य का अस्तित्व न हो, उसे अलोकाकाश कहते है ।

प्रश्न- 162 लोकाकाश तथा अलोकाकाश का परिमाण क्या है ?
जवाब- 162 लोकाकाश का परिमाण चौदह राजलोक है । इसके अतिरिक्त अनन्त अलोकाकाश है ।

प्रश्न- 163 धर्मास्तिकाय की हमारे जीवन में क्या उपयोगिता है ?
जवाब- 163 अगर धर्मास्तिकाय का अभाव हो जाय तो जीव और पुद्गल की गति ही अव्यवस्थित हो जाये । धर्मास्तिकाय के द्वारा ही जीवों के आगमन, गमन, उन्मेष, मनोयोग, वचनयोग तथा काययोग में प्रवृत्ति होती है ।

प्रश्न- 164 अधर्मास्तिकाय की हमारे जीवन में क्या उपयोगिता है ?
जवाब- 164 अगर अधर्मास्तिकाय नही होता तो जीव का खडे रहना, बैठना, मन को एकाग्र करना, मौन करना, निस्पंद होना, करवट बदलना आदि जितने भी स्थिर भाव है, वे संभव नहीं हो पाते । आदमी सदैव चलता ही रहता । गति ही करता रहता । अधर्मास्तिकाय के कारण ही स्थिति संभव है ।

प्रश्न- 165 आकाशास्तिकाय की क्या उपयोगिता है ?
जवाब- 165 आकाश द्रव्य समस्त द्रव्यों का आधार है, बाकी सब द्रव्य आधेय है । आधार रुप आकाश का यदि अभाव हो जाय तो कोइ पदार्थ टिक नहीं सकता । घडे में पानी इसलिये ठहरता है कि उसमें आश्रय देने का गुण विद्यमान है । इसी प्रकार समस्त पदार्थों को आश्रय देने वाला आकाश ही है ।
प्रश्न- 166 काल की हमारे जीवन में क्या उपयोगिता है ?
जवाब- 166 काल की उपयोगिता स्वयं सिद्ध है, क्योंकि उसके बिना कोई भी कार्यक्रम निर्धारित नहीं हो सकता । छोटे से लेकर बडे कार्य में काल की सहायता अपेक्षित है । प्रत्येक पदार्थ काल के आश्रित है । उसके कारण सृष्टि का सौंदर्य तथा संतुलन है । पदार्थो में, चाहे वे सजीव हो या निर्जीव, जो भी परिवर्तन होता है, वह काल के कारण ही संभव है ।

प्रश्न- 167 पुद्गलास्तिकाय की हमारे जीवन में क्या उपयोगिता है ?
जवाब- 167 पुद्गल हमारे अत्यंत निकट के उपकारी है । संसारी जीव पुद्गल के अभाव में रह ही नहीं सकता । उसकी आवश्यकता पुद्गल के द्वारा ही सम्पन्न होती है । हमारा शरीर पुद्गल की देन है । भाषा, मन, प्राण, अपान आदि सब पुद्गल के ही उपकार हैं ।

प्रश्न- 168 पुद्गल द्रव्य के लक्षण कौन-कौन से है ?
जवाब- 168 शब्द, अन्धकार, उद्योत, प्रभा, छाया, आतप, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श ये पुद्गल के लक्षण हैं ।

प्रश्न- 169 उद्योत किसे कहते है ?
जवाब- 169 शीतल वस्तु का शीतल प्रकाश उद्योत कहलाता है । चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, तारा आदि ज्योतिष विमानों का, चन्द्रकान्त आदि रत्नों का तथा जुगनु आदि जीवों का प्रकाश उद्योत है ।

प्रश्न- 170 प्रभा किसे कहते है ?
जवाब- 170 चन्द्रादि के प्रकाश में से तथा सूर्य के प्रकाश में से जो दूसरा किरण रहित उपप्रकाश पडता है, वह प्रभा है ।

प्रश्न- 171 छाया किसे कहते है ?
जवाब- 171 दर्पण अथवा प्रकाश में पडने वाला प्रतिबिंब छाया कहलाती है ।



प्रश्न- 172 आतप किसे कहते है ?
जवाब- 172 शीत वस्तु का उष्ण प्रकाश आतप कहलाता है ।

प्रश्न- 173 एक मुहूर्त में कितनी आवलिकाएँ होती हैं ?
जवाब- 173 एक मुहूर्त में एक करोड, सडसठ लाख, सत्तहत्तर हजार, दो सौ सोलह से (कुछ) अधिक आवलिकाएँ होती है ।

प्रश्न- 174 समय किसे कहते है ?
जवाब- 174 काल का अत्यंत सूक्ष्म अंश, जिसका केवली के ज्ञान में भी विभाग न हो सके, उसे समय कहते है ।

प्रश्न- 175 समय की सूक्ष्मता को समझाने के लिये उदाहरण दीजिये ?
जवाब- 175 आंख मींच कर खोलने में असंख्यात समय व्यतीत हो जाते है । उन असंख्यात समयों की एक आवलिका होती है । समय की सूक्ष्मता को इस उदाहरण द्वारा भी समझ सकते है, जैसे – अति जीर्ण वस्त्र को त्वरा से फाडने पर एक तंतु से दूसरे तंतु को फटने में जो समय लगता है, वह भी असंख्य समय प्रमाण है ।

प्रश्न- 176 पक्ष किसे कहते है ?
जवाब- 176 पन्द्रह दिनों का एक पक्ष होता है ।

प्रश्न- 177 पक्ष कितने प्रकार के होते है ?
जवाब- 177 पक्ष दो प्रकार के होते है – 1.कृष्ण पक्ष 2.शुक्ल पक्ष ।



प्रश्न- 178 मास किसे कहते है ?
जवाब- 178 2 पक्ष का अथवा 30 अहोरात्र का एक मास होता है ।

प्रश्न- 179 अहोरात्र किसे कहते है ?
जवाब- 179 दिन और रात को अहोरात्र कहते है ।



प्रश्न- 180 एक अहोरात्र में कितनी घडी होती है ?
जवाब- 180 एक अहोरात्र में साठ घडी (24 घंटे या 30 मुहूर्त) होती है ।

प्रश्न- 181 एक घडी का परिमाण कितना होता है ?
जवाब- 181 एक घडी का परिमाण 24 मिनिट होता है ।

प्रश्न- 182 एक मुहूर्त में कितनी घडी होती है ?
जवाब- 182 एक मुहूर्त में दो घडी होती है ।

प्रश्न- 183 एक वर्ष में कितने मास होते है ?
जवाब- 183 एक वर्ष में 12 मास होते है ।

प्रश्न- 184 एक वर्ष में कितनी ऋतुएँ होती हैं ?
जवाब- 184 एक वर्ष में छह ऋतुएँ होती हैं – 1.हेमंत 2.शिशिर 3.वसंत 4.ग्रीष्म 5.वर्षा 6.शरद ।

प्रश्न- 185 एक ऋतु में कितने मास होते है ?
जवाब- 185 एक ऋतु में दो मास होते है ।

प्रश्न- 186 एक अयन कितनी ऋतु का होता है ?
जवाब- 186 तीन ऋतु अर्थात् छह माह का एक अयन (दक्षिणायन या उत्तरायण) होता है ।

प्रश्न- 187 एक युग कितने वर्ष का होता है ?
जवाब- 187 एक युग पांच वर्ष का होता है ।

प्रश्न- 188 एक वर्ष कितने अयन का होता है ?
जवाब- 188 एक वर्ष दो अयन का होता है ।

प्रश्न- 189 कितने वर्ष का एक पूर्वांग होता है ?
जवाब- 189 84 लाख वर्ष का एक पूर्वांग होता है ।
प्रश्न- 190 एक पूर्व में कितने पूर्वांग अथवा कितने वर्ष होते हैं ?
जवाब- 190 एक पूर्व 84 लाख पूर्वांग अथवा सत्तर लाख छप्पन्न हजार करोड वर्ष होते हैं ।

प्रश्न- 191 पल्योपम कितने वर्षो का होता है ?
जवाब- 191 असंख्यात वर्षो का एक पल्योपम होता है ।

प्रश्न- 192 पल्योपम की व्याख्या किजिए ?
जवाब- 192 उत्सेधांगुल के माप से एक योजन (चार कोष) लंबा, चौडा, गहरा, एक कुआं, जिसको सात दिन की उम्र वाले युगलिक बालक के एक एक केश के असंख्य असंख्य टुकडों से इस तरह ठसा-ठस भर दिया जाय कि उसके उपर से चक्रवर्ती की विशाल सेना पसार हो जाय तब भी उसके ठसपण में किंचित् मात्र भी फर्क न आये । उस कूप में से प्रति समय में एक-एक केश का टुकडा निकाले । इस प्रकार करते हुए जब केश राशि से पूरा कुआं खाली हो जाय, उतने समय की अवधि अथवा परिमाण को बादर उद्धार पल्योपम कहते है ।

प्रश्न- 193 कितने पल्योपम का एक सागरोपम होता है ?
जवाब- 193 10 कोडाकोडी पल्योपम का एक सागरोपम होता है ।

प्रश्न- 194 कोडाकोडी किसे कहते है ?
जवाब- 194 करोड को करोड से गुणा करने पर जो संख्या आती है, उसे कोडाकोडी कहते है ।

प्रश्न- 195 कितने सागरोपम की एक उत्सर्पिणी अथवा अवसर्पिणी होती है ?
जवाब- 195 दस कोडाकोडी सागरोपम की एक उत्सर्पिणी अथवा अवसर्पिणी होती है ।

प्रश्न- 196 कालचक्र किसे कहते है ?
जवाब- 196 एक उत्सर्पिणी तथा एक अवसर्पिणी काल का एक कालचक्र होता है ।

प्रश्न- 197 एक कालचक्र कितने सागरोपम का होता है ?
जवाब- 197 एक कालचक्र 20 कोडाकोडी सागरोपम का होता है ।
प्रश्न- 198 एक पुद्गल परावर्तन काल किसे कहते है ?
जवाब- 198 अनंत कालचक्र का एक पुद्गल परावर्तन काल होता है ।

प्रश्न- 199 पुद्गल परावर्तन काल के कितने भेद है ?
जवाब- 199 पुद्गल परावर्तन काल के 8 भेद हैं – 1.द्रव्य पुद्गल परावर्त 2.क्षेत्र पुद्गल परावर्त 3.काल पुद्गल परावर्त 4.भाव पुद्गल परावर्त 5.इन चारों के सूक्ष्म तथा बादर ये दो-दो भेद होने से कुल 8 भेद होते है ।

प्रश्न- 200 बादर द्रव्य पुद्गल परावर्त काल किसे कहते है ?
जवाब- 200 औदारिक-वैक्रिय-तैजस-भाषा-श्वासोच्छवास-मन तथा कार्मण, इन सात पुद्गल वर्गणाओं के माध्यम से जीव को जगत के सभी पुद्गलों का उपभोग कर छोडने में जितना समय व्यतित होता है,उसे बादर द्रव्य पुद्गल परावर्तकाल कहते है ।

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