HAVE YOU EVER THOUGHT ? Who Are You ? A Doctor ? An Engineer ? A Businessman ? A Leader ? A Teacher ? A Husband ? A Wife ? A Son ? A Daughter are you one, or so many ? these are temporary roles of life who are you playing all these roles ? think again ...... who are you in reality ? A body ? A intellect ? A mind ? A breath ? you are interpreting the world through these mediums then who are you seeing through these mediums. THINK AGAIN & AGAIN.
Tuesday, 18 November 2014
ध्यान -आप सब के साथ अपना तजुर्बा शेयर करना चाहूँगा-
आप सब के साथ अपना तजुर्बा शेयर करना चाहूँगा-
ध्यान
एक विषय में चित्त वृत्ति को रोकना ध्यान है,जो की उत्तम संहनन वाले जीव को अंतर्मूर्हत तक हो सकता है!आर्त और रौद्र ध्यान संसार के कारण तथा धर्म और शुक्ल ध्यान मोक्ष के हेतु है,इस प्रकार ध्यान के चार भेद है! पीड़ा से उत्पन्न हुआ आर्त और क्रूरता से उत्पन्न हुआ रौद्र ध्यान है!संसार और भोगो से विरक्त होने के लिए या विरक्त होने पर उस भाव की स्थिरता के लिए जो ध्यान किया जाता है वह धर्म ध्यान है!शुक्ल ध्यान किसी भी जीव को उत्तम सहनं के अभाव मे पंचम काल में होना असंभव है! आर्त और रौद्र ध्यान दोनों ही त्याज्य है क्योकि ये नरक और तिर्यंच गति के बांध के कारण है!
अत:पंचम काल में धर्मध्यान ही ध्येय है उसके आज्ञा,अपाय,विपाक और संस्थान चार भेद है!इनकी विचारणा के निमित्त, मन को एकाग्र करना धर्म ध्यान है! धर्मध्यान के दस भेद -
अपाय विचय,उपाय विचय,विपाक विचय,विराग विचय,लोक विचय,भाव विचय,जीव विचय,आज्ञा विचय,संस्थान विचय और संसार विचय है!
संस्थान विचय ध्यान के स्वामी मुख्यत मुनि है कितु गौण रूप से असंयत सम्यग्दृष्टि और देशविरत भी है!अर्थात यथा शक्ति श्रावकों को भी धर्मध्यान का अभ्यास करना अति उत्तम है!
संस्थान विचय ध्यान के भेद- पिंडस्थ,पदस्थ,रूपस्थ और रूपातित चार है !
पिंडस्थ ध्यान में पांच धारणाएं -पार्थिवी,आग्नेयी,श्वसना,वारूणी और तत्वरूपवती हैं जिनसे संयमीमुनि और ज्ञानी कर्मों रूपी सागर को काटते हैं।
पार्थिवी धारणा-
इसके लिए आप,मध्यलोक में स्वयंभूरमण सागर पर्यन्त तिर्यग्लोक मे,कोलाहल रहित शांत क्षीरसागर का ध्यान करे! इस सागर के मध्य में सुन्दर स्वर्ण जैसी कांति वाले और जम्बूद्वीप के विस्तार के सामान,एक लाख योजन विस्तार वाले,मेरु सदृश्य,पीली कणिका के एक हज़ार पंखुड़ियों वाले कमल का ध्यान करे! इस के ऊपर,श्वेतवर्ण के सिंहासन पर आप स्वयं विराजमन हो,अपनी आत्मा के शांत स्वरुप का चिंतवन करे पुन:चितवन करे की आप आपकी आत्मा,अष्ट कर्मों के नाश करने में उद्यम शील है !
आग्नेयी धारणा-आप अपनी नाभि मे,एक सोलह ऊँचे ऊँचे पत्तों वाले कमल का चिंतवन करे। इन पत्तों पर क्रम से अ आ,इ ,ई,,उ,ऊ,ऋ,ऋृ,ऌ,ॡ, ए,ऐ,ओ,औ,अं,अः अक्षर बुद्धि की कलम से लिखे! कमल की कर्णिका पर 'ह्रीं' महामंत्र विराजमान है! पुन: ह्रदय में आठ पंखुड़ीयों का अधोमुख कमल का ध्यान करे,जिसकी पंखुड़ियों पर ज्ञानावर्णीय,दर्शनावर्णीय,वेदनीय,मोहनीय ,आयु,नाम,गोत्र और अन्तराय कर्म स्थित है!अब नाभि पर स्थित कमल की कणिका पर"ह्रीं" से अग्नि की लौ निकलती हुई ऊपर की और अग्रसर करती है और बढ़ते बढ़ते आठ पंखुड़ी वाले कमल को जला रही है! कमल को जलाते हुए अग्नि बाहर फैलते हुए,बाद में त्रिकोण अग्नि बन जाती है,जो की ज्वाला समूह जलते हुए जंगल की अग्नि के सामान है !इस बाह्य अग्नि त्रिकोण पर "रं" बीजाक्षर से व्याप्त और अंत में साथिया के चिन्ह से चिन्हित है!और ऊपर मंडल में,निर्धूम सोने की कांति वाली है!यह अग्नि मंडल नाभिस्थ,उस कमल और शरीर को भस्म करके जलने के बाद,समस्त ज्वलनशील पदार्थों के अभाव में धीरे धीरे स्वयं शांत हो जाता है!
श्वस्ना धारणा -पुन:आप सोचे की आकाश में,पर्वतों को कम्पित करने वाली महावेगशाली वायु चल रही है,जिससे शरीर आदि की भस्म इधर उधर उड़ जाती है और उसके बाद,वह वायु शांत हो जाती है!
वारूणी धारणा-पुन:आप ध्यान कीजिये की बिजली,इंद्र धनुष आदि सहित बादल चारों ऒर घनघोर वर्षा कर रहे है जिस के जल से शरीर आदि की भस्म प्रक्षालित हो रही है!
तत्त्व रुपी धारणा -
तत्पश्चात,आप चिंतवन करे,की आप सप्तधातु रहित,पूर्ण चंद्रवत निर्मल सर्वज्ञ सदृश्य हो गए है,देव,सुर,असुर आपकी पूजा कर रहे है!इस प्रकार ध्यानी मोक्ष सुख को प्राप्त करता है!अंतत:आप सिद्ध शिला पर पहुँच कर अन्य सिद्धों के बीच पहुँच कर,निराकुल हो कर आप अनंत मोक्ष सुखों का अनुभव कर रहे है!
नोट- इस ध्यान का अभ्यास ,मैं स्वयम काफी समय से कर रहा हूँ,आप यदि समस्त विकल्पों से निश्चंत होकर इस प्रकार ध्यान लगायेगें तो आपका शरीर और आत्मा के पृथक-पृथक होने का भी अनुभव कुछ समय तक अभ्यास करने के बाद होगा !
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