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Tuesday, 6 October 2015
।। नव देवता ।।
प्रश्न 1 - नव देवता कौन-कौन से हैं?
उत्तर - 1 - अरिहंत , 2 - सिद्ध , 3 - आचार्य , 4 - उपाध्याय , 5 - साधु , 6 - जिनधर्म , 7 - जिन चैत्य एवं जिन चैत्यालय
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प्रश्न 2 - जिन धर्म किसे कहते हैं?
उत्तर - जिनेन्द्र भगवान की ध्वनि (वाणी) को जिन धर्म कहते हैं।
प्रश्न 3 - जिन आगम किसे कहते हैं?
उत्तर - भगवान की वाणी के अनुसार गणधर एवं आचार्यों के वचनों के अनुसार जिन शास्त्रों की रचना होती है। उन शास्त्रों को जिनआगम कहते हैं।
प्रश्न 4 - जिन आगम को कितने भागों में विभाजित किया गया है?
उत्तर - वैसे तो जिन आगम को ग्यारह अंगों तथा चैदह पूर्वों में विभाजित किया गया है। फिर भी चार अनुयोगों में भी जिनागम को कहा गया है।
प्रश्न 5 - जिन चैत्य किसे कहते हैं?
उत्तर - जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमा को जिन चैत्य कहते हैं।
प्रश्न 6 - जिन चैत्यालय किसे कहते हैं?
उत्तर - जिन प्रतिमा जिस स्थान पर रहती है उस स्थान को चैत्यालय कहते हैं।
प्रश्न 7 - जिन चैत्यालय के कुछ अन्य नाम बताइये।
उत्तर - घर वाचक शब्दों के आगे जिन शब्द जोड़ देने से जिन सदन चैत्यालय के नाम बन जाते हैं जैसे - जिनगृह, जिन सदन, जिन चैत्यालय, जिन मंदिर, जिन भवन, जिन गेह, जिन आलय आदि।
प्रश्न 8 - जिन चैत्यालय कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर - अकृत्रिम शास्वत जिनालय, देवकृत जिलानय एवं मानव निर्मित जिनालय इस प्रकार जिन चैत्यालय तीन प्रकार के होते हैं?
प्रश्न 9 - अकृत्रिम जिनालय कहां-कहां हैं?
उत्तर - तीनों लोकों में अकृत्रिम जिनालय हैं।
प्रश्न 10 - तीनों लोकों में कितने अकृत्रिम जिनालय माने गये हैं?
उत्तर - तीनों लोकों में आठ करोड़ छप्पन लाख सतानवे हजार चार सौ इक्यासी अकृत्रिम जिन मंदिर हैं।
प्रश्न 11 - तीनों लोकों के अकृत्रिम जिनमन्दिरों में प्रतिमाओं की संख्या कितनी है?
उत्तर - तीनों लोकों में नौ सौ पच्चीस करोड़ त्रेपनलाख सत्ताइस हजार नौ सौ अड़तालिस जिन प्रतिमायें हैं।
प्रश्न 12 - प्रत्येक अकृत्रिम जिनालय में कितनी प्रतिमायें होती हैं?
उत्तर - प्रत्येक अकृत्रिम जिनालय में एक सौ आठ जिन प्रतिमायें होती हैं।
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प्रश्न 13 - अकृत्रिम प्रतिमाओं का क्या प्रमाण है?
उत्तर - अकृत्रिम जिनालयों में पांच सौ धनुष ऊंची पद्मासन प्रतिमायें विराजमान रहती हैं।
प्रश्न 14 - पांच सौ धनुष में कितने हाथ होते हैं?
उत्तर - पांच सौ धनुष में दो हजार हाथ होते हैं।
प्रश्न 15 - अकृत्रिम जिनालयों में कौन-से भगवान की प्रतिमायें विराजमान रहती हैं?
उत्तर - अकृत्रिम जिनालयों में विराजमान प्रतिमाओं को सिद्ध संज्ञा क्यों है?
प्रश्न 16 - अकृत्रिम जिनालयों में विराजमान प्रतिमओं को सिद्ध संज्ञा क्यों है?
उत्तर - क्योंकि ये प्रतिमायें अनादि निधन शाश्वत सिद्ध हैं कभी किसी ने बनाई नहीं कभी नष्ट भी नहीं होगी। इसीलिए उन्हें सिद्ध संज्ञा है।
प्रश्न 17 - अकृत्रिम मंदिर किसे कहते हैं?
उत्तर - जो मन्दिर अनादि काल से बने हुए हैं अनंत काल तक रहेंगे कभी किसी ने उन्हें बनाया नहीं उन्हें अकृत्रिम जिनालय कहते हैं।
प्रश्न 18 - अधो लोक में अकृत्रिम जिन मंदिरों की संख्या सताइये।
उत्तर - अधो लोक में सात करोड़ बहत्तर लाख जिन मंदिर हैं जो भवनवासी देवों के हैं।
प्रश्न 19 - पाताल (अधोलोक) में जिन प्रतिमाओं की संख्या बताइये।
उत्तर - अधो लोक में आठा अरब तैंतीस करोड़ छियत्तर लाख जिन बिम्ब विराजमान हैं।
प्रश्न 20 - मध्यलोक में कितने अकृत्रिम जिनालय हैं?
उत्तर - मध्यलोक में चार सौ अट्ठावन अकृत्रिम जिनालय है।
प्रश्न 21 - मध्यलोक में ये जिनालय कहां तक फैले हुए हैं?
उत्तर - मध्यलोक में ये चार सौ अट्ठावन जिनालय तेरह द्वीपों तक फैले हुए हैं।
प्रश्न 22 - जम्बूद्वीप में कितने अकृत्रिम जिनालय हैं।
उत्तर - जम्बूद्वीप में अट्ठत्तर अकृत्रिम जिनालय हैं।
प्रश्न 23 - जम्बूद्वीप में अठत्तर जिनालय किस प्रकार हैं?
उत्तर - जम्बूद्वीप में अठत्तर जिनालययों की गणना निम्न प्रकार है- सुमेरू पर्वत के 16, गजदन्तों के 4, जम्बूशाल्मलि वृक्ष के 2, वक्षार पर्वतों के 16, विजयार्ध पर्वतों के 34, तथाा छः कुलाचलों के 6 इस प्रकार जम्बूद्वीप में कुल 78 जिनालय होते हैं।
प्रश्न 24 - घातकी खंड में कुल कितने जिनालय होते हैं?
उत्तर - घात की खंड में कुल 158 जिनालय होते हैं।
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प्रश्न 25 - घात की खंड में 158 जिनालय किस प्रकार हैं?
उत्तर - घातकी खंड में 2 मेरू हैं विजय मेरू एवं अचल मेरू एक मेरू सम्बंधित 78 जिनालय होते हैं; अतः दो मेरूओं के 156 जिनालय हुए तथा दो जिनालय इष्वाकार पर्वतों के होते हैं।
प्रश्न 26 - पुष्करवर द्वीप में कितने जिनालय हैं?
उत्तर - तीसरे पुष्करार्ध द्वीप में भी घातकी खंड द्वीप के समान 158 अकृत्रिम जिनालय हैं।
प्रश्न 27 - मानषोत्तर पर्व पर कितने जिनालय होते हैं?
उत्तर - मानषोत्तर पर्व की चारों दिशाओं में एक-एक जिनालय कुल चार जिनालय हैं।
प्रश्न 28 - नंदीश्वर द्वीप में कितने अकृत्रिम जिनालय होते हैं?
उत्तर - नंदीश्वर द्वीप की चारों दिशाओं 13, 13 के हिसाब से 13 गुण 4 = कुल बावन जिनालय होते हैं।
प्रश्न 29 - नंदीश्वर द्वीप के जिनालयों की गणना किस प्रकार की जाती है?
उत्तर - नंदीश्वर द्वीप की एक दिशा के जिनालयों की गणना इस प्रकार है। 1 अंजन गिरी, 4 रतिकर एवं 8 दधि मुख पर्वतों पर प्रत्येक पर एक-एक जिन मंदिर विराजमान है। इस प्रकार 1 दिशा में 13 जिनालय हैं। इसी प्रकार पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण प्रत्येक दिशा में 13-13 जिन मंदिर हैं कुछ 52 जिन मंदिर नंदीश्वर द्वीप में हैं।
प्रश्न 30 - कुंडलगिरि पर्वत पर कितने अकृत्रिम जिनमन्दिर हैं?
उत्तर - कुंडलगिरि पर्वत पर केवल चार जिनालय हैं।
प्रश्न 31 - रूचक गिरि पर्वत पर कुल कितने जिनालय हैं?
उत्तर - रूचकगिरि पर भी केवल चार जिनालय हैं।
प्रश्न 32 - मध्यलोक के चार सौ अट्ठावन जिन मंदिरों की गणना कराइये।
उत्तर - जम्बूद्वीप में 78, पूर्व धातकी द्वीप में 78, पश्चिम धातकी द्वीप में 78, इष्वाकार के 2, पूर्व पुष्करार्ध के 78, पश्चिम पुष्करार्ध के 78, इष्वाकार के 2, मानषोत्तर पर्वत के 4, नंदीश्वर द्वीप के 52, कुंडलगिरि के 4, रूचक गिरी के 4, कुल 458 जिन मंदिर।
प्रश्न 33 - मेरू पर्वत किसे कहते हैं?
उत्तर - जो पर्वत मध्य में विराजमान रहते हैं उन्हें मेरू पर्वत कहते हैं।
प्रश्न 34 - मेरू पर्वतों की विशेषता बताइये।
उत्तर - मेरू पर्वतों की सर्वोच्च पांडुक वन में जो अर्ध चन्द्रकार पांडुक शिालायें हैं उन पर पांच पांच ऐरावत एवं एक सौ साठ विदेह क्षेत्रों में जन्में तीर्थंकरों का जन्माभिषेक देवों द्वारा होता है।
प्रश्न 35 - मेरू पर्वत कितने हैं?
उत्तर - मेरू पर्वत पांच हैं।
प्रश्न 36 - कौन-सा मेरू पर्वत कहां कहां स्थित है?
उत्तर - सुदर्शन मेरू पर्वत जम्बूद्वीप में, विजय मेरू पर्वत पूर्वी धातकी द्वीप में, अचल मेरू पश्चिम धातकी द्वीप में, मन्दर मेरू पूर्वी पुष्करार्धद्वीप में, एवं विद्युन्माली मेरू पश्चिम पुष्करार्ध द्वीप में स्थित है।
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प्रश्न 37 - एक मेरू से सम्बंधित कितने जिनालय होते हैं?
उत्तर - एक मेरू से सम्बन्धित 78 जिनालय होते हैं।
प्रश्न 38 - ढाई द्वीप में कितने जिनालय हैं।
उत्तर - ढाई द्वीप में 398 जिनालय हैं।
प्रश्न 39 - अधोलोक में असुर कुमार देवों के कितने जिनालय हैं?
उत्तर - अधोलोक में असुर कुमार देवों के चैसठ लाख जिनालय हैं।
प्रश्न 40 - नाग कुमाार देवों के जिनालयों की संख्या बताइये।
उत्तर - नाग कुमार देवों के 84 लाख जिनालय हैं।
प्रश्न 41 - सुपर्ण कुमार देवों के जिनायों की संख्या बताइये।
उत्तर - सुपर्ण कुमार देवों के 72 लाख जिनालय हैं।
प्रश्न 42 - द्वीप कुमार देवें के यहां कितने जिनालय हैं?
उत्तर - द्वीप कुमार देवों के यहां 76 लाख जिनालय हैं।
प्रश्न 43 - उदधि कुमार देवों के यहां कितने जिनालय हैं?
उत्तर - उदधि कुमार देवचों के यहां 76 लाख जिनालय हैं।
प्रश्न 44 - स्तनित कुमार देवों के यहां कितने जिनालय हैं?
उत्तर - स्तनित कुमार देवों के यहां 76 लाख जिलालय हैं।
प्रश्न 45 - विद्युत कुमार देवों के यहां कितने जिनालय है?
उत्तर - विद्युत कुमार देवों के यहां 76 लाख जिनालय हैं।
प्रश्न 46 - दिक् कुमार देवों के यहां कितने जिनालय हैं?
उत्तर - दिक् कुमार के यहां 76 लाख जिनालय हैं।
प्रश्न 47 - अग्नि कुमार देवों के यहां कितने जिनालय हैं?
उत्तर - अग्नि कुमार देवों के यहां 76 लाख जिनालय है।
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प्रश्न 48 - वायु कुमार देवों के यहां के जिनालयों की संख्या बताइये।
उत्तर - वायु कुमार देवों के यहां 93 लाख जिनालय हैं।
प्रश्न 49 - ज्योतिषी देव कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर - ज्योतिषी देव पांच प्रकार के होते हैं।
प्रश्न 50 - ज्योतिषी देवों के पांच प्रकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर - सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र एवं तारे ये पांच प्रकार हैं।
प्रश्न 51 - ज्योतिषी देवों के कितने विमान हैं?
उत्तर - प्रतयेक ज्योतिषी देवों के असंख्यात विमान हैं।
प्रश्न 52 - ज्योतिषी देवों के विमान कहां-कहां स्थित हैं?
उत्तर - मध्यलोक में असंख्यात द्वीप समुद्र हैं उन असंख्यात द्वीप समुद्रों के ऊपर 790 योजन की ऊंचाई से लेकर 900 योजन की ऊंचाई तक ज्योतिषी देवों के विमान हैं।
प्रश्न 53 - ज्योतिषी देवों के विमानों की विशेषता बताइये।
उत्तर - ढाई द्वीपों तक ज्योतिषी विमान पांच मेरूओं की परिक्रमा करते हैं, जिससे दिन-रात होते हैं, ढाई द्वीप के बाहर ये विमान चलते नहीं हैं स्थिर हैं।
प्रश्न 54 - इन विमानों को ज्योतिषी क्यों कहते हैं?
उत्तर - ये विमान सूर्य और चन्द्रमा आदि चमकते हैं जिनसे प्रकाश निकलता है इसीलिए इन्हें ज्योतिषी संज्ञा है।
प्रश्न 55 - ज्येातिषी देवों के यहां कितने अकृत्रिम जिनायल हैं?
उत्तर - प्रत्येक ज्योतिषी देवों के असंख्यात द्वीपों में ऊपर स्थित असंख्यातों विमानों में असंख्यात जिनालय हैं।
प्रश्न 56 - ढाई द्वीप में कितने चन्द्र विमान में कितने जिनालय हैं?
उत्तर - ढाई द्वीप में 132 चन्द्र विमान में 132 जिनालय हैं।
प्रश्न 57 - ढाई द्वीप में सूर्य विमान में कितने जिनालय हैं?
उत्तर - ढाई द्वीप 132 सूर्य विमान में स्थित 132 जिनालय हैं।
प्रश्न 58 - ढाई द्वीप में ग्रह विमानों में स्थित जिनालयों की संख्या बताइये।
उत्तर - ढाई द्वीपों में एक-एक चन्द्र विमान के 88 ग्रह विमान होते हैं। इस प्र्रकार 132 गुण 88 = 11616 ग्रह विमानों में इतने ही जिनालय हैं।
प्रश्न 59 - ढाई द्वीपों में नक्षत्र विमानों में स्थित जिनालयों की संख्या बताइये।
उत्तर - ढाई द्वीपों में एक चन्द्र विमान के 28 नक्षत्र माने जाते हैं। इस प्रकार कुल 3696 नक्षत्र विमानों में इतने ही जिनालय हैं।
प्रश्न 60 - ढाई द्वीपों में प्रकीर्णक विमानों में स्थित जिनालयों की संख्या बताइये।
उत्तर - ढाई द्वीपों में एक-एक चन्द्र विमान के 66975 प्रर्कीणक विमान हैं। अतः 132 का गुणा करने पर 8840700 प्रकीर्णक विमान में इतने ही जिनालय हैं।
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प्रश्न 61 - व्यंतर देव कितने प्रकार के हैं?
उत्तर - व्यंतर देव आठ प्रकार के हैं।
प्रश्न 62 - व्यंतर देव की आठ जातियों के नाम बताइये।
उत्तर - किन्नर, किंपुरूष, महोरग, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, भूत एवं पिशास।
प्रश्न 63 - व्यंतर देवों के यहां कितने जिनालय हैं?
उत्तर - प्रत्येक प्रकार के व्यंतर देवों के यहां असंख्यात जिनालय हैं।
प्रश्न 64 - उध्र्व लोक में जिनालयों की संख्या बताइये।
उत्तर - उध्र्वलोक में वैमानिक देवों के यहां चैरासी लाख सत्तानवे हजार तेइस जिनालय हैं।
प्रश्न 65 - सौधर्म ऐशान कल्प विमान में कितने जिनालय हैं?
उत्तर - सौधर्म ऐशान कल्प में साठ लाख जिनालय हैं।
प्रश्न 66 - सानत्कुमर माहेन्द्र कल्प में कितने जिनालय हैं?
उत्तर - सानत्कुमार में बारह लाख माहेन्द्र में आठ लाख कुल बीस लाख जिनालय हैं।
प्रश्न 67 - ब्रह्म ब्रह्मोत्तर स्वर्ग में कितने शाश्वत जिनालय हैं।
उत्तर - ब्रह्मत्तर स्वर्ग में चार लाख जिनालय हैं।
प्रश्न 68 - लांतव कापिष्ठ स्वर्ग में कितने जिनगृह हैं?
उत्तर - लांतव कापिष्ठ स्वर्ग में पचास हजार जिनगृह हैं।
प्रश्न 69 - शुक्र महाशुक्र स्वर्ग में कितने जिनमंदिर हैं?
उत्तर - शुक्र महाशुक्र स्वर्ग में चालीस हजार जिनमन्दिर हैं।
प्रश्न 70 - शतार सहस्त्रार स्वर्ग में जिनालयों की संख्या बताइये।
उत्तर - इन दो स्वर्गों में छः हजार जिनालय हैं।
प्रश्न 71 - आनत प्राणत आरण अच्युत चार स्वर्गों में जिन मन्दिरों की संख्या बताइये।
उत्तर - इन चार स्वर्गों में 700 जिनालय हैं।
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प्रश्न 72 - नव ग्रैवेयकों में जिनमन्दिरों की संख्या कितनी है?
उत्तर - नव ग्रैवयकों में तीन सौ नौ जिनमंदिर हैं।
प्रश्न 73 - नव अनुदिशों में कितने जिनमंदिर हैं?
उत्तर - नव अनुदिशाों में केवल नौ जिनमंदिर हैं।
प्रश्न 74 - पांच अनुत्तर विमानों में कितने जिनालय हैं?
उत्तर - पांच अनुत्तर विमानों में केवल पांच जिनमंदिर हैं।
प्रश्न 75 - नव देवताओं में से अधोलोक में कितने देवता होते हैं?
उत्तर - अध्रोलोक में भवनवासी देवों के भवनों में केवल दो ही देवता जिनचैतय तथा जिन चैत्यालय होते हैं।
प्रश्न 76 - उध्र्वलोक में कितने दवता होेते हैं?
उत्तर - उध्र्वलोक में भी केवल जिन चैतय तथा जिन चैत्यालय ये दो देवता होते हैं।
प्रश्न 77 - मध्य लोक में कितने देवता होते हैं?
उत्तर - मध्य लोक में ढाई द्वीपों तक नवदेवता होते हैं ढाई द्वीप से बाहर-तेरह द्वीपों तक केवल दो जिन चैत्य, जिन चैत्यालय दो ही देवता होते हैं।
प्रश्न 78 - ढाई द्वीपों में नवदेवता कहां-कहां हैं?
उत्तर - ढाई द्वीप की 170 कर्म भूमियों में, पांच भरत, पांच ऐरावत तथा 160 विदेह की कर्मभूमियों में पूरे नवदेवता होते हैं।
प्रश्न 79 - विदेह एवं भ्रत ऐरावत के नवदेवों में क्या अंतर है?
उत्तर - विदेह क्षेत्रों में सदा चतुर्थकाल (कर्मकाल) प्रवर्तमान रहने से वहां नवदेवता सदा रहते हैं। पांच भरत, पांच ऐरावत क्षेत्रों में षट्काल परावर्तन होने से क्रमशः कर्मकाल आने से ही नवदेवता पूरे रहते हैं बाकी समयों में नहीं।
प्रश्न 80 - भरत ऐरावत क्षेत्रों चतुर्थकाल को छोड़कर शेष समयों में कितने देवता रहते हैं।
उत्तर - बाकी समयों में एक से तीन तक देवताओं का अभाव रहता है। पांचवें से छठे तक आचार्य, उपाध्याय साधु जिनागम, जिन चैत्य, चैत्यालय ये छः देवता रहते हैं।
प्रश्न 81 - वर्तमान समय में अपने भरत क्षेत्र में नव देवताओं में से कितने है?
उत्तर - इस भरत क्षेत्र में भी वर्तमान में
1 - आचार्य
2 - उपाध्याय
3 - साधु
4 - जिनधर्म
5 - जिनागम
6 - जिनचैत्य एवं
चैत्यालय ये सात हैं।?
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