Monday, 24 March 2014

अनेकांतवाद

जैन धर्म के अनुसार भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से देखे जाने के कारण प्रत्येक ज्ञान भी भिन्न-भिन्न हो सकता है। ज्ञान की यह विभिन्नता सात प्रकार की हो सकती है- है नहीं है है और नहीं है कहा नहीं जा सकता है किन्तु कहा नहीं जा सकता नहीं है और कहा नहीं जा सकता है, नहीं है और कहा नहीं जा सकता। इसे ही जैन धर्म में स्याद्वाद या अनेकांतवाद कहा जाता है। अनेकात्मवाद जैन धर्म आत्मा में विश्वास करता है। उसके अनुसार भिन्न-भिन्न जीवों में आत्माएँ भी भिन्न-भिन्न होती है।

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