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Tuesday, 6 October 2015
।। श्री अरिहंत परमेष्ठी ।।
प्रश्न 1 - पंच परमेष्ठी कौन-से काल में होता है?
उत्तर - पंच परमेष्ठी, कर्मकाल जो दुःखमा नाम का चैथा काल होता है, उसमें होते हैं। हुंडावसर्पिणी काल में तीसरे काल में भी हुए हैं। आचार्य, उपाध्याय साधु ये दुःखमा नाम के पंचम काल के अंत तक भी रहते हैं।
प्रश्न 2 - कौन-से परमेष्ठी कहां रहते हैं?
उत्तर - अरिहंत, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये चार परमेष्ठी ढाई द्वीप की 170 कर्म भूमियों के आर्यखण्डों में विचरण करते हैं। सिद्ध परमेष्ठी लोक के अग्र भाग पर सिद्ध शिला पर शाश्वत विराजमान रहते हैं।
प्रश्न 3 - क्या ढाई द्वीप के बाहर भी कोई परमेष्ठी होते हैं?
उत्तर - नहीं! ढाई द्वीप के बाहर कोई भी परमेष्ठी नहीं होते हैं। अधोलोक उध्र्वलोक, मध्यलोक ढाई द्वीपों को छोड़कर वहां केवल अकृत्रिम जिनालय तथा जिनप्रतिमायें ही होती हैं।
प्रश्न 4 - अरिहंत परमेष्ठी किसे कहते हैं?
उत्तर - जिन्होंने चार घातिया कर्मों का नाश किया है, जो समवशरण में विराजमान रहकर भव्यों को मोक्षमार्ग का उपदेश देते हैं, जो, सर्वज्ञ वीतराग और हितोपदेशी हैं जो 46 मूल गणों से युग्त 18 दोष से रहित होते हैं। वे अरिहंत हैं।
प्रश्न 5 - अरिहंत के अन्य नाम क्या हैं?
उत्तर - वैसे तो अरिहंतो की इन्द्रों द्वारा 1008 नामों से पूजा की जाती है फिर भी प्रचलित नामों में उन्हें, अरिहंत, आप्त, जिनेन्द्र, जिन, जिनेश्वर, शंकर, ब्रह्मा, विधाता, अर्ध नारीश्वर भूतनाथ आदि नामों से जाना जाता है।
प्रश्न 6 - अरिहंत नाम की सार्थकता क्या है?
उत्तर - अरि अर्थात् शत्रु। जिन्होंने कर्म रूपी शत्रुओं का नाश किया है वे ही अरिहंत हैं यथा-कार्मारीन् हंतः-अरिहंत
प्रश्न 7 - अरिहंत भगवान को जिनेन्द्र क्यों कहते हैं?
उत्तर - अपनी पांचों इन्द्रीय तथा मन को जीत लेने से उन्हें जिन, जिनेश्वर जिनेन्द्र कहा जाता है।
प्रश्न 8 - अरिहंत भगवान को शंकर क्यों कहा जाता है?
उत्तर - क्योंकि ये अपने वचनामृत से भव्यों को शं अर्थात् सुख प्रदान करे हैं।
प्रश्न 9 - अरिहंत भगवान को ब्रह्मा क्यों कहा जाता है?
उत्तर - अरिहंत भगवान के समवशरण में चारों दिशाओं में मुख दिखने के कारण उन्हें ब्रह्मा कहा जाता है।
प्रश्न 10 - अरिहंत भगवान को अर्धनारीश्वर क्यों कहा जाता है?
उत्तर - अर्ध नारीश्वर का एक शाब्दिक अर्थ होता है। अर्ध न अरी तेषां ईश्वरः अर्थात् अर्ध-आधे, न-नहीं है,ं अरी-शत्रू, जिके, आधे शत्रू नहीं हैं, जिनके, ऐसे ईश्वर हुए अर्धनारीश्वर; अतः कर्म शत्रू आठ हैं, अरिहंत भगवान ने इनमें से चार घातिया कर्म शत्रूओं का नाश किया है अतः इन्हें अर्ध नारीश्वर कहते हैं।
प्रश्न 11 - अरिहंत भगवान को भूतनाथ क्यों कहते हैं?
उत्तर - भूत अर्थात् प्राणी। प्राणियों के स्वामी, नाथ होने से इन्हें भूतनाथ कहा जाता है।
प्रश्न 12 - आप्त किसे कहते हैं?
उत्तर - वीतरागी, सर्वज्ञ और हितोपदेशी ये तीन गुण जिनमें होते हैं वे आप्त कहलाते हैं।
प्रश्न 13 - मूलगुण किसे कहते हैं?
उत्तर - जो गुणों में मुख्य होते हैं वे मूल गुण हैं जैसे वृक्ष में जड़।
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प्रश्न 14 - अरिहंत भगवान के मूल गुण किसे कहते हैं?
उत्तर - अतिशय 34, प्रतिहार्य 8, अनंत चतुष्टय 4 मूलगुण हुए।
प्रश्न 15 - अरिहंत भगवान के उत्तर गुण कितने होते हैं?
उत्तर - अरिहंत भगवान के उत्तर गुण अनंत हैं।
प्रश्न 16 - घातिया कर्म किसे कहते हैं?
उत्तर - जो कर्म आत्मा के मूलगुणों का घात कहते हैं वे घातियां कर्म कहलाते हैं।
प्रश्न 17 - घातिया कर्म कितने हैं?
उत्तर - घातिया कर्म चार हैं।
प्रश्न 18 - घातिया कर्म कौन-कौन से हैं?
उत्तर - मोहनीय, ज्ञानावरणी, दर्शनवरणी और अन्तराय।
प्रश्न 19 - अरहंत का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर - अर्हंत् अर्थात् पूज्य, जो पूज्य हो गये हें वे अरहंत हैं।
प्रश्न 20 - अरिहंत भगवान में कौन-कौन से अठारह दोष नहीं है?
उत्तर - (1) जन्म, (2) जरा, (3) प्यास, (4) भूख, (5) आश्चर्य (6) पीड़ा, (7) दुख, (8) रोग (9) शोक, (10) मोह, (12) भय (13) निद्रा (14) चिंता (15) पसीना (16) राग (17)द्वेष (18) मरण।
प्रश्न 21 - जन्म किसे कहते हैं?
उत्तर - आत्मा के नवीन शरीर धारण करने को जन्म कहते हैं।
प्रश्न 22 - जरा किसे कहते हैं?
उत्तर - बुढ़ापे को जरा कहते हैं, जिससे शरीर जीर्ण होकर कमजोर हो जाता है, शरीर में झुर्रियां पड़ जाती हैं। तथा इन्द्रियां ठीक प्रकार से कार्य नहीं करती हैं।
प्रश्न 23 - प्यास किसे कहते हैं?
उत्तर - पानी पीने की इच्छा को प्यास कहते हैं।
प्रश्न 24 - भूख किसे कहते हैं?
उत्तर - आहार ग्रहण करने की इच्छा को भूख कहते हैं।
प्रश्न 25 - आश्चर्य किसे कहते हैं?
उत्तर - किसी भी नई वस्तु का - जो कौतुक का भाव होता है उसे आश्चर्य कहते हैं।
प्रश्न 26 - अरिहंत भगवान को आश्चर्य क्यों नहीं होता?
उत्तर - अरिहंत भगवान तीनों लोकों के समस्त पदार्थों की त्रैकालवर्ती अनंत पयार्यों को एक ही समय में जान रहते हैं; अतः उनके लिए कुछ भी नया नहीं है। इसीलिए अरिहंत भगवान को आश्चर्य नहीं होता।
प्रश्न 27 - पीड़ा किसे कहते हैं?
उत्तर - शरीर में अनिष्ट पदार्थों का संयोग होने पर वेदना की अनुभूति होना ही पीड़ा है।
प्रश्न 28 - दुःख किसे कहते हैं?
उत्तर - इष्ट वियोग अनिष्ट संयोग होने पर आत्मा में आर्तरूप परिमाण का आना दुःख है।
प्रश्न 29 - रोग किसे कहते हैं?
उत्तर - ठीक प्रकार से शरीर के कार्य करने में बाधा उत्पन्न होना रोग है।
प्रश्न 30 - शोक क्या है?
उत्तर - अपनी इष्ट वस्तु का वियोग हो जाने पर दुःख की अनुभूति होना शोक है।
प्रश्न 31 - गर्व किसे कहते हैं?
उत्तर - अपने को दूसरों से ऊंचा मानना गर्व कहलाता है।
प्रश्न 32 - मोह किसे कहते हैं?
उत्तर - पदार्थों में ममत्व परिणाम ये मेरा है मैं इसके बिना नहीं रह सकता ऐसा भाव मोह है।
प्रश्न 33 - भय किसे कहते हैं?
उत्तर - किसी पदार्थ के द्वारा अपने में अनष्टि की आशंका होने पर उससे बचने का प्रयास रूप जो भाव, तीव्र वेग से उत्पन्न होता है उसे भय या डर कहते हैं।
प्रश्न 34 - किया कितने होते हैं?
उत्तर - भय सात होते हैं।
प्रश्न 35 - सात भयों के नाम बताइये।
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उत्तर - 1 - इहलोक भय
2 - परलोक भय
3 - मृत्यु भय
4 - आकस्मिक भय
5 - वेदना भय,
6 - गुप्ति भय,
7 - अनरक्षा भय।
प्रश्न 36 - इहलोक भय किसे कहते हैं?
उत्तर - अभी मैं यदि कर्म करूंगा तो मेरी इस लोक में निन्दा होगी तथा लोग मुझे कष्ट पहुंचायेंगे ऐसा सोचना इहलोक भय है।
प्रश्न 37 - परलोक भय क्या है?
उत्तर - इस लोक में यदि मैं बुरे कर्म करूंगा तो मुझे परलोक में नरक त्रिर्यंच गति में जाकर दुःख उठाने पड़ेगे मेरा परलोक आगे आने वाला भव बिगड़ जायेगा, ये परलोक भय है।
प्रश्न 38 - मृत्यु भय क्या है?
उत्तर - रोग आदि के आने पर शरीर के छुटने का भय मृत्यु भय है।
प्रश्न 39 - आकस्मिक भय क्या है?
उत्तर - जिस भय के आने की सम्भावना नहीं होती, किंतु अचानक प्रकट हो जाता है, वह आकस्मिक भय है।
प्रश्न 40 - वेदना भय क्या है?
उत्तर - शरीर में चोट, पीड़ा आदि का भय होना वेदना भय है।
प्रश्न 41 - गुप्ति भय क्या है?
उत्तर - छिपी हुई, दबी हुई गोपनीय चोरी आदि की बात या तथ्य के प्रकट होने की आशंका गुप्ति भय है।
प्रश्न 42 - अनरक्षा भय क्या है?
उत्तर - कहीं भी किसी प्रकार से असुरक्षा-भावना अनरक्षा भय है।
प्रश्न 43 - निद्रा किसे कहते हैं?
उत्तर - निद्रा कर्म के उदय आने पर, सो जाना निद्रा है।
प्रश्न 44 - चिन्ता किसे कहते हैं?
उत्तर - किसी भी तथ्य या बात को लेकर अधिक सोचना, किसी कार्य को पूर्ण करने का बार-बार भावना आना चिंता है।
प्रश्न 45 - पीसना किसे कहते हैं?
उत्तर - अधिक श्रम या अन्य किसी कारण से शरीर में जो पानी की बूंदे आ जाती हैं वही पसीना कहलात है।
प्रश्न 46 - राग किसे कहते हैं?
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उत्तर - किसी पदार्थ, जीव, या व्यक्ति से लगाव राग कहलाता है।
प्रश्न 47 - द्वेष किसे कहते हैं?
उत्तर - जो पदार्थ अपने को अच्छा नहीं लगता उसके प्रतिकार रूप को हटाने स्वरूप जो भाव हैं उसे द्वेष कहते हैं।
प्रश्न 48 - मरण किसे कहते हैं?
उत्तर - संसारी जीवों के शरीर छूटने को मरण कहते हैं।
प्रश्न 49 - अरिहंत भगवान को जीवन मुक्त क्यों कहते हैं?
उत्तर - क्योंकि वे अभी जन्म से ही छूटे हैं आगे उनका जन्म नहीं होगा लेकिन जो शरीर उन्होंने धारण किया है वह तो छूटेगा ही।
प्रश्न 50 - यदि अरिहंत भगवान का शरीर छूटता है तो क्या उनका मरण भी होता है?
उत्तर - अरिहंत भगवान के शरीर छूटने को मरण संज्ञा नहीं है उसका नाम निर्वाण एवं मोक्ष है।
प्रश्न 51 - अरिहंत भगवान के 34 अतिश्य किस प्रकार हैं?
उत्तर - जन्म समय के 10 अतिश्य, केवलज्ञान के 10 अतिशय एवं देव कृत 14 अतिश्य से मिलकर 34 हो जाते हैं
प्रश्न 52 - अतिश्य किसे कहते हैं?
उत्तर - सर्वसाधरण, प्राणियों में नहीं पाई जाने वाली अद्भुत या अनोखी बात को अतिश्य कहते हैं।
प्रश्न 53 - जन्म के 10 अतिश्य कौन-कौन से है?
उत्तर - 1 - अतिश्य सुन्दर शरीर
2 - अत्यंत सुगन्धित शरीर
3 - पसीना रहित शरीर,
4 - मलमूत्र रहित शरीर
5 - हित मित प्रिय वचन,
6 - अतुल बल,
7 - सफेद रक्त
8 - शरीर में 1008 लक्षण
9 - समचतुस्त्र संस्थान एवं
10 - वज्र वृषभ नाराच सहनन।
प्रश्न 54 - अठारह दोष जो अरिहंत भगवान में नहीं हैं उनहें दोहे में बताइये।
उत्तर - जनम जरा तिरखा क्षुधा, विस्मय आरत खेद।
रोग शोक मद मोह भय, निद्रा चिंता स्वेद।।
राग द्वेष अरू मरण जुत, ये अष्टादश दोष,
नाहि होत अरिहंत के, सो छवि लायक मोष।।
प्रश्न 55 - अतिश्य सुन्दर शरीर का लक्षण बताइये।
उत्तर - भगवान के शरीर की रचना पृथ्वी मंडल पर पाये जाने वाले सुन्दर एवं शांति के परमाणु से हुई है। इसीलिए उनके समान सुन्दर शरीर देव, मानव आदि किसी का नहीं होता। यथा-
यै शांत राग रूचिभिः परमाणु भिस्व्तं,
निर्मापितत्रि भुवनैक ललाम भूतः।
तावंत एैव खलु तेप्यणऽव पृथ्व्यां,
यत्ते समान मपरं नाहि रूपमस्ति।।
प्रश्न 56 - अत्यंत सुगन्धित शरीर से क्या अभिप्राय है?
उत्तर - भगवान के शरीर में कहीं नहीं पाई जाने वाली भीनी-भीनी सुगन्ध आती है।
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प्रश्न 57 - पसीना रहित से क्या अभिप्राय है?
उत्तर - भगवान के शरीर में संसारी प्राणियों के समान पसीना नहीं आता है।
प्रश्न 58 - क्या भगवान का शरीर मलमूत्र रहित होता है?
उत्तर - भगवान के शरीर में मलमूत्र नहीं होता है।
प्रश्न 59 - भगवान के शरीर में मलमूत्र क्यों नहीं होता है?
उत्तर - क्योंकि भगवान जन्म से ही संसारी प्राणियों की भांति दाल रोटी आदि का भोजन नहीं करते हैं।
प्रश्न 60 - यदि भगवान हमारी आपके तरह भोजन नहीं करते हैं तो वे क्या खाते हैं?
उत्तर - उनके लिए भोजन वस्त्रादि की सामग्री स्वर्ग से आती है।
प्रश्न 61 - हित मित प्रिय वचन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर - भगवान जब भी कुछ बोलते हैं तो सबके लिए हितकारी मितकारी एवं प्रिय वचन बोलते हैं उनके वचनों से किसी को भी किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है।
प्रश्न 62 - अतुल बल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर - भगवान के शरीर में इतना बल होता है कि जितना है कि जितना बल देव, दानवों, मानवों में होता है उनके बल से भी अनंत गुना बल भगवान के शरीर में होता है।
प्रश्न 63 - सफेद रक्त से क्या आशय है?
उत्तर - जिस प्रकार हमारे शरीर में लाल रक्त होता है। उसी प्रकार भगवान के शरीर में सफेद रक्त होता है।
प्रश्न 64 - भगवान के शरीर में कितने लक्षण होते हैं?
उत्तर - भगवान के शरीर में 1008 लक्षण चिन्ह होते हैं।
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प्रश्न 65 - सच चतुस्त्र संस्थान किसे कहते हैं?
उत्तर - शरीर के सुन्दर सुड़ोल बनावट ही सम चतुस्त्र संस्थान है शरीर के जिस अंग का जैसा आकार होना चाहिए, उतना ही हो तो समचतुस्त्र संस्थान होता है।
प्रश्न 66 - वज्र वृषभ नाराच संहनन क्या है?
उत्तर - जब शरीर की हडि़्यां इतनी मजबूत हों तो उन पर व्रज भी गिर जाए तो उनमें कुछ बिगाड़ ना हो ये वज्र वृषभ नाराच सहनन कहलाता है।
प्रश्न 67 - इस सहनन की क्या विशेषता है?
उत्तर - ये प्रत्येक मोक्ष जाने वाले जीव में अवश्य ही पाया जाता है।
प्रश्न 68 - जन्म के दस अतिश्यों को पद्य में बतलाइये।
उत्तर - जन्म के दस अतिश्यां को बतलाने वाली पद्य इस प्रकर है-
अतिश्य रूप सुगन्धित तन, नाहि पसेव निहार,
प्रियहित वचन अतुल्य बल रूधिर श्वेत आकार,
लक्षण सहस अरू आठ तन सम चतुष्क संठान,
वज्र वुषभ नाराच जुत य जनमत, दस ज्ञान।।
प्रश्न 69 - अरिहंत भगवान के शरीर के आश्रय से कितने अतिश्य होते हैं?
उत्तर - जन्म के दश अतिश्यों से अतिरिक्त, नख केश नहीं बढ़ना नेत्रों की पलकें नही झपकना, शरीर की परछाई नहीं पड़ना, चारों दिशाओं में मुख दिखाना, आकाश गमन तथा कवलाहारनहीं होना। कुल 15 अतिश्य।
प्रश्न 70 - अरिहंत भगवान के शरीर को क्या कहते हैं?
उत्तर - अरिहंत भगवान के शरीर को परमौदारिक शरीर कहते हैं।
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प्रश्न 71 - केवलज्ञान के समय होने वाले अतिश्यों के नाम बताइये।
उत्तर - ये दस अतिश्य होते हैं- 1 - सौ-सौ योजन तक सुभिक्षता
2 - आकाश में गमन
3 - चार मुख दिखना,
4 - हिंसा न होना
5 - उपसर्ग नहीं होना
6 - कवलाहार नहीं होना
7 - समस्त विद्याओं का स्वामीपना
8 - नख केश नहीं बढ़ना,
9 - नेत्रों की पलकें नही झपकला,
10 - परछाई नहीं पड़ना।
प्रश्न 72 - सौ योजन तक सुभिक्षता का क्या आशय है?
उत्तर - सौ योजन तक सुभिक्षता का क्या आशय है? जहां भगवान का समवसरण रहता है उससे समस्त दिशाओ, सौ-सौ योजन 800 मील तक अकाल नहीं पड़ता है। पृथ्वी धन धान्य से भरी रहती है।
प्रश्न 73 - एक योजन का क्या माप है?
उत्तर - एक योजन चार कोश का होता है।
प्रश्न 74 - हिंसा न होने से क्या आशय है?
उत्तर - जहां भगवान का समवसरण रहता है वहां किसी भी प्रकार का प्राणबध नहीं होता है।
प्रश्न 75 - समस्त विद्याओं के स्वामीपना से क्या आशय है?
उत्तर - केवलज्ञानी भगवान संसार की समस्त विद्याओं के स्वामी-ईश्वर होते हैं।
प्रश्न 76 - भगवान का वास्तविक मुख किस दिशा में रहता है?
उत्तर - भगवान का वास्तविक मुख पूरब या उत्तर में रहता है।
प्रश्न 77 - कवलाहार किसे कहते हैं?
जो आहर मुख द्वारा लिया जाता है उसे कवलाहार कहते हैं जैसे अन्नादि।
प्रश्न 78 - केवलज्ञान के दस अतिश्य को बतलाने वाली पद्य बताइये।
उत्तर -
योजन शत इक में सुभिख, गगन गमन मुख चार,
नहि अदया, उपसर्ग नहीं, नाहिं कवलाहार।
सब विद्या ईश्वरपनों, नाहिं बढ़ें नख केश,
अनिमिष दृग छाया रहित, दश केवल के वेश।।
प्रश्न 79 - उपसर्ग किसे कहते हैं?
उत्तर - तप और ध्यान में जो विघ्न किया जाता है, उपद्रव किया जाता है उसे उपसर्ग कहते हैं।
प्रश्न 80 - देवकृत अतिश्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर - देवकृत अतिश्य चैदह हैं- 1 - अर्धमागधी भाषा
2 - जीवों में परस्पर मित्रता
3 - दिशाओं की निर्मलता
4 - आकाश की निर्मलता
5 - छहों ऋतुओं के फल फूलों का एक साथ होना
6 - एक योजन तक पृथ्वी का दर्पण की तरह निर्मल होना
7 - विहार के समय भगवान के चरणों के नीचे स्वर्णकमलों की रचना होना,
8 - आकाश में जय-जयकार की ध्वनि
9 - मंद सुगन्धित पवन
10 - सुगन्धित जल की वर्षा
11 - पवन कुमार देवों द्वारा भूमि की निष्कंटता
12 - समस्त प्राणियों को आनन्द
13 - भगवान के आगे धर्मचक्र चलना, एवं
14 - आठ मंगल द्रव्यों का एक साथ रहना।
प्रश्न 81 - भगवान क उपदेश कितनी भाषाओं में परिवर्तित होता है।
उत्तर - भगवान का उपदेश सात सौ अठारह भाषाओं में देव कृत अतिश्य से परिवर्तित होता है।
प्रश्न 82 - भगवन की वाणी की विशेषता बताइये।
उत्तर - भगवान की वाणी ऊँकार रूप होती है। उसकी आवाज मेघ गर्जना के समान होती है जिसमें होंठ तालु आदि नहीं चलते हैं।
प्रश्न 83 - भगवान की वाणी का दूसरा क्या नाम है?
उत्तर - भगवान की वाणी का दूसरा नाम दिव्य ध्वनि है।
प्रश्न 84 - भगवान की वाणी कितने अंगों से खिरती है?
उत्तर - भगवान की वाणी सभी अंगों से खिरती है।
प्रश्न 85 - भगवान की वाणी को कौन-सी भाषा कहते हैं?
उत्तर - भगवान की वाणी को अर्धमागधी कहते हैं।
प्रश्न 86 - भगवान की वाणी के मुख्य श्रोता कौन होते हैं?
उत्तर - भगवान की वाणी के मुख्य श्रोता चक्रवर्ती राजा, या सम्राट होते हैं।
प्रश्न 87 - भगवान की वाणी कब और कितने समय तक खिरती है?
उत्तर - भगवान की वाणी दिन और रात में चार वार दो-दो मर्हत तक खिरती है। मुख्य श्रेाता के आने पर कभी भी खिर सकती है।
प्रश्न 88 - भगवान की वाणी जहां प्रकट होती है उस स्थान को क्या कहते हैं?
उत्तर - भगवान की वाणी जहां प्रकट होती है उस स्थान को समवसरण कहते हैं।
प्रश्न 89 - विहार के समय भगवान के चरणों के नीचे कितने कमलों की रचना होती है?
उत्तर - विहार के समय भगवान के चरणों के नीचे सात कमलों की रचना देव करते हैं।
प्रश्न 90 - ये कमल कौन-से होते हैं?
उत्तर - ये कमल स्वर्ण कमल होते हैं।
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प्रश्न 91 - मंद सुगन्धित पवन कौन चलाते हैं?
उत्तर - ये मंद सुगन्धित पवन, वायु कुमार के देव चलाते हैं।
प्रश्न 92 - सुगन्धित जल की वर्षा कौन करते हैं?
उत्तर - सुगन्धित जल की वर्षा मेघ कुमार के देव करते हैं।
प्रश्न 93 - समवसरण में पवन कुमार के देव और क्या कार्य करते हैं।
उत्तर - समवसरण में पवन कुमार के देव भूमि को निष्कंटक बनाते हैं।
प्रश्न 94 - धर्म चक्र को कौन धारण करते हैं।
उत्तर - धर्म चक्र को सर्वाण्ह यक्ष धारण करते हैं?।
प्रश्न 95 - धर्म चक्र में कितने आरे होते हैं?
उत्तर - धर्मचक्र में एक हजार 8 आरे होते हैं।
प्रश्न 96 - एक समवसरण में कितने धर्मचक्र होते हैं?
उत्तर - एक समवसरण में चारों दिशाओं में चार धर्मचक्र होते हैं।
प्रश्न 97 - आठ मंगल द्रव्य कौन-से हैं?
उत्तर - 1 - दर्पण
2 - झारी
3 - स्वस्तिक
4 - सिंहासन
5 - चंवरविजना
6 - कलश एवं
7 - ठोना। ये आठ मंगल द्रव्य भगवान के समवसरण में रहते हैं।
प्रश्न 98 - आठ मंगल द्रव्यों की प्रत्येक की संख्या कितनी रहती है?
उत्तर - प्रत्येक मंगल द्रव्य 108-108, संख्या में रहते हैं।
प्रश्न 99 - देवकृत 14 अतिश्यों को पद् में बताइये।
उत्तर -
देव रचित हैं चार दश, अर्धमागधी भाष,
आपस माहीं मित्रता, निर्मल दिश आकाश।
होत फूल फल ऋतु सवै, पृथ्वी कांच समान,
चरण कमल तक कमल हैं, नभी ते जय-जय बान।।
प्रश्न 100 - आठ प्रतिहार्यों के नाम बताइये?
उत्तर - 1 - अशोक वृक्ष
2 - रत्नमयी सिंहासन
3 - तीन छत्र
4 - भामण्डल
5 - दिव्य ध्वनि
6 - देवों द्वारा पुष्पवृष्टि
7 - चैसठ चंवर
8 - दुंदुभि बाजे बजना।
प्रश्न 101 - अशोक वृक्ष किसे कहते हैं?
उत्तर - भगवान को जिस वृक्ष के नीचे केवलज्ञान होता है उसे अशोकवृक्ष कहते हैं। यह वृक्ष प्राणियों के शोक हरने के कारण अपने नाम की सार्थकता को धारण करता है।
प्रश्न 102 - भामण्डल किसे कहते हैं?
उत्तर - भगवान के शरीर की प्रभा को भामण्डल कहते हैं।
प्रश्न 103 - भामण्डल की क्या विशेषता है?
उत्तर - इस भामण्डल में भव्य जीवों केा अपने सात भव दिखायी पड़ते हैं। तीन पहले के एक वर्तमान का तथा तीन आगे के।
प्रश्न 104 - अष्ट प्रतिहार्य को बताने वाला पद्य बताइये।
उत्तर - पद्य इस प्रकार है-
तरू अशोक के निकट में सिंहासर छवि दार।
तीन छत्र सिर पर फिरे, भामण्डल पिछवार।।
दिव्य ध्वनी मुख ते खिरे, पुष्प वृष्टि सुर होय।
ढोरे चैसढ चमर जखु, बाजें दुंदुभि जाये।।
प्रश्न 105 - प्रातिहार्य किसे कहते हैं?
उत्तर - विशेष शोभा की वस्तुओं को प्रातिहार्य कहते हैं।
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प्रश्न 106 - अनंत चतुष्टय के नाम बताइये।
उत्तर - 1 अनंतदर्शन 2 अनंतज्ञान 3 अनंतसुख एव 4 अनंतवीर्य।
प्रश्न 107 - उपरोक्त को अनंत चतुष्टय क्यों कहते हैं?
उत्तर - अंत रहित होने से इन्हें अनंत कहते हैं तथा ये चार होने से चतुष्ट कहलाते हैं।
प्रश्न 108 - अनंत दर्शन का क्या महत्व है?
उत्तर - अनंत दर्शन से केवली अरिहंत भगवान को तीनों लोकों की समस्तवस्तुओं का उनकी तीनों कालों की पर्यायों सहित एक समय में एक साथ दर्शन होता है।
प्रश्न 109 - अनंत ज्ञान का क्या कार्य है?
उत्तर - अनंत ज्ञान तीनों लोकों की समस्त वस्तुओं को एक साथ समय में उनकी अनंत पर्यायों युक्त जानता है।
प्रश्न 110 - अनंत सुख क्या है?
उत्तर - अरिहंत भगवान का सुख अंत रहित, उपमा रहित, अलौकिक अतीन्द्रय है। तीनों लोकों के जीवों को जितना सुख होता है उनसे अनंत गुना सुख अरिहंत भगवान को होता है।
प्रश्न 111 - अनंत-वीर्य क्या है?
उत्तर - वीर्य शक्ति को कहते हैं। अरिहंत भगवान शक्ति तीनों लोकों में सर्वोत्तम अंत रहित होती है।
प्रश्न 112 - अनंत चतुष्ट को पद्य में बताइये।
उत्तर -
ज्ञान अनंत, अनंत सुख, दरश अनंत प्रमाण।
बल अनंत अरिहंत सो इष्ट देव पहिचान।।
प्रश्न 113 - क्या प्रत्येक अरिहंत भगवान के 46 मूल गुण होते हैं?
उत्तर - जिन तीर्थंकरों के पंचकल्याणक होते हैं उन्हीं के 46 मूल गुण होते हैं। शेष के जन्म समय होने वाले 10 अतिश्य नहीं होते हैं।
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