प्रश्न- 301 चतुर्दशपूर्वधर किस देवलोक तक जा सकते है ?
जवाब- 301 पांचवें ब्रह्मदेवलोक से उपर के किसी भी देवलोक तक जाते है ।
प्रश्न- 302 अनुत्तर वैमानिक देवों की विशेषता बताओ ?
जवाब- 302 सर्वार्थसिद्ध विमान के देव एकावतारी होते हैं । मनुष्य जन्म धारण कर नियमतः उसी भव में सिद्धपद को उपलब्ध करते हैं ।
प्रश्न- 303 देवों में कितने प्राण पाये जाते हैं ?
जवाब- 303 देवों में पांच इन्द्रिय प्राण, तीन बल प्राण, श्वासोच्छवास और आयुष्य रुप दसों ही प्राण पाये जाते हैं ।
प्रश्न- 304 जीव के कुल कितने भेद होते है ?
जवाब- 304 563 ।
जवाब- 305 वे जीव, जिन्होंने आठों कर्मों का समूल – संपूर्ण नाश कर दिया है , जन्म – मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष में बिराजमान हो चुके है, वे सिद्ध कहलाते हैं ।
प्रश्न- 306 सिद्धों के कितने भेद होते हैं ?
जवाब- 306 सिद्धों के पन्द्रह भेद होते हैं जो निम्नलिखित हैं-
1. अतीर्थ सिद्धः- वे जीव, जो चतुर्विध संघ की स्थापना, तीर्थ की स्थापना से पूर्व सिद्ध होते हैं, जैसे मरुदेवी माता ।
2. तीर्थ सिद्धः- वे जीव, जो तीर्थंकर परमात्मा के शासन में मोक्ष में जाते हैं । तीर्थ की स्थापना के बाद सिद्ध बनते हैं । जैसे सुधर्मा स्वामी ।
3. तीर्थंकर सिद्धः- वे जीव, जो अरिहंत-तीर्थंकर के रुप में मोक्ष उपलब्ध करते हैं, जैसे महावीरादि चौबीस तीर्थंकर ।
4. अतीर्थंकर सिद्धः- वे जीव, जो सामान्य केवली के रुप में सिद्धता की संपदा उपलब्ध करते हैं, जैसे चंदनबाला ।
5. गृहलिंग सिद्धः- वे जीव, जो गृहावस्था में केवलज्ञान प्राप्त करते हैं और मोक्ष में जाते हैं, जैसे मरुदेवी माता ।
6. स्वलिंग सिद्धः- वे जीव, जो तीर्थंकर की वाणी के अनुरुप श्रमणवस्था में सिद्ध बनते हैं । जैसे सुधर्मा स्वामी ।
7. अन्यलिंग सिद्धः- वे जीव, जो श्रमण के अतिरिक्त अन्य वेश एवं अवस्था में सिद्ध बनते हैं । जैसे वल्करचिरि आदि ।
8. पुरुषलिंग सिद्धः- वे जीव, जो पुरुषावस्था में सिद्ध बनते हैं । जैसे पुंडरीक स्वामी आदि ।
9. स्त्रीलिंग सिद्धः- वे जीव, जो स्त्री अवस्था में सिद्धता प्राप्त करते हैं । जैसे मृगावती आदि ।
10. नपुंसक सिद्धः- वे जीव, जो नपुंसक अवस्था में सिद्ध बनते है । जैसे गांगेय अणगार ।
11. प्रत्येक बुद्ध सिद्धः- वे जीव, जो निमित्तो के द्वारा असारता का बोध प्राप्त करके सिद्ध पद प्राप्त करते हैं । जैसे नग्गति, दुम्मुह आदि ।
12. स्वयंबुद्ध सिद्धः- वे जीव, जो स्वयं से बोध प्राप्त कर सिद्धि पद प्राप्त करते हैं । जैसे महावीर प्रभु ।
13. बुद्धबोधित सिद्धः- किसी बोधि प्राप्त जीव से बोध प्राप्त करके सिद्धता पाने वाले । जैसे गौतम, जम्बु आदि ।
14. एक सिद्धः- अकेले ही सिद्ध पद को उपलब्ध करने वाले एक सिद्ध कहलाते हैं, जैसे महावीर ।
15. अनेक सिद्धः- अनेक आत्माओं के साथ सिद्धि प्राप्त करने वाले अनेक सिद्ध कहलाते हैं, जैसे पार्श्वनाथ स्वामी ।
प्रश्न- 307 एक समय में कितने सिद्ध होते है ?
जवाब- 307 जघन्य से एक, दो, तीन और उत्कृष्ट से एक सौ आठ सिद्ध होते हैं ।
प्रश्न- 308 किस गति से आये कितने जीव एक समय में उत्कृष्ट रुप से सिद्ध हो सकते हैं ?
जवाब- 308
प्रश्न- 309 वेद की अपेक्षा से एक समय में कितने सिद्ध हो सकते है ?
जवाब- 309 1. पुरुष से पुरुष होकर 108
2. पुरुष से स्त्री-नपुंसक होकर 10
3. स्त्री से पुरुष-स्त्री-नपुंसक होकर 10
4. नपुंसक से पुरुष-स्त्री-नपुंसक होकर 10
प्रश्न- 310 सिद्ध गति कितने समय तक सिद्ध से रहित कही गयी है ? (विरहकाल)
जवाब- 310 जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट से छह माह ।
प्रश्न- 311 सिद्धों के आठ गुण कौन से है ?
जवाब- 311 1.अनन्त ज्ञान 2.अनन्त दर्शन 3.अनन्त चारित्र 4.अक्षय स्थिति 5.अगुरुलघुपन 6.अरुपीत्व 7.अनन्त वीर्य 8.अनन्त सुख ।
प्रश्न- 312 सिद्धों की अवगाहना कितनी होती है ?
जवाब- 312 सिद्ध भगवंतो के शरीर नहीं होने से अवगाहना नही होती है ।
प्रश्न- 313 सिद्धशीला कितने योजन परिमाण में हैं ?
जवाब- 313 पैंतालीस लाख योजन ।
प्रश्न- 314 अनुत्तर विमानों से कितने योजन उपर सिद्धशिला है ?
जवाब- 314 बारह योजन ।
प्रश्न- 315 सिद्धशीला के बारह नाम कौन से है ?
जवाब- 315 1.ईषत् 2.ईषत्प्राग्भरा 3.तनुत्विका 4.सिद्धि 5.सिद्धालय 6.मुक्ति 7.मुक्तालय 8.लोकाग्र 9.तन्वी 10.लोकस्तूपिका 11.लोकाग्र प्रतिवाहिनी 12.सर्वप्राणभूत सत्य सुखवहा ।
प्रश्न- 316 सिद्धशिला से कितने योजन उपर अलोक है ?
जवाब- 316 एक योजन ।
प्रश्न- 317 अगले भव में कौन-कौन मोक्षगामी हो सकते है ?
जवाब- 317 1. समस्त देव – मोक्ष (परमाधामी सिवाय)
2. मनुष्य - मोक्ष
3. पंचेन्द्रिय तिर्यंच – मोक्ष
4. नारकी – मोक्ष (सातवीं नरक सिवाय)
5. पृथ्वी-अप्-वनस्पति – मोक्ष
6. विकलेन्द्रिय – मोक्ष
7. वायुकाय-तेउकाय-मनुष्य भव नहीं (तिर्यंच गति में धर्मश्रवण)
प्रश्न- 318 काल के कितने भेद होते है ?
जवाब- 318 दो भेद- 1. व्यवहार काल – समय, आवलिका, स्तोक, दिन-रात्रि आदि अथवा सैकण्ड, मिनट, घण्टा आदि ।
2. निश्चय काल – अखण्डित रुप से प्रवाहित समय निश्चय काल कहलाता है ।
प्रश्न- 319 हर अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी में कितने महान पुरुष होते हैं ?
जवाब- 319 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 बलदेव, 9 वासुदेव, 9 प्रतिवासुदेव, ये त्रेसठ महापुरुष हर अवसर्पिणी एवं उत्सर्पिणी में होते हैं । इन्हें त्रिषष्ठिशलाका पुरुष कहते हैं । इनकी संख्या न घटती हैं, न बढती हैं ।
प्रश्न- 320 अंगुल का असंख्यातवां भाग किसे कहते है ?
जवाब- 320 सुई की नोंक जितने स्थान को घेरती है, उस भाग का असंख्यातवां भाग अंगुल का असंख्यातवां भाग कहलाता है ।
प्रश्न- 321 कितने अंगुल की एक मुट्ठी होती है ?
जवाब- 321 छह अंगुल की ।
प्रश्न- 322 कितनी मुट्ठी की एक बेंत होती है ?
जवाब- 322 दो मुट्ठी की ।
प्रश्न- 323 एक हाथ कितनी बेंत का होता है ?
जवाब- 323 दो बेंत का ।
प्रश्न- 324 एक दण्ड कितने हाथ का होता है ?
जवाब- 324 दो हाथ का ।
प्रश्न- 325 एक धनुष्य कितने दण्ड का होता है ?
जवाब- 325 दो दण्ड का ।
प्रश्न- 326 धनुष्य पृथक्त्व किसे कहते है ?
जवाब- 326 दो से नौ धनुष्य प्रमाण को धनुष्य पृथक्त्व कहते है ।
प्रश्न- 327 कितने धनुष्य का एक कोस होता है ?
जवाब- 327 2 हजार ।
प्रश्न- 328 कोस का अपर नाम क्या है ?
जवाब- 328 गाऊ ।
प्रश्न- 329 कोस पृथक्त्व किसे कहते है ?
जवाब- 329 2 से 9 तक की संख्या को कोस पृथक्त्व कहते है ।
प्रश्न- 330 कितने कोस का एक योजन होता है ?
जवाब- 330 चार कोस का ।
प्रश्न- 331 विश्व किसे कहते है ?
जवाब- 331 समस्त जीवों के रहने के स्थान को विश्व (लोक) कहते है ।
प्रश्न- 332 सम्पूर्ण विश्व कितने राज प्रमाण है ?
जवाब- 332 चौदह राज प्रमाण ।
प्रश्न- 333 एक राज कितने योजन प्रमाण का होता है ?
जवाब- 333 करोड को करोड से गुणा करने पर योग फल एक कोडाकोडी प्राप्त होता है । ऐसे असंख्यात कोडाकोडी योजन प्रमाण का एक राज (रज्जु) होता है ।
प्रश्न- 334 चौदह राजलोक का आकार कैसा है ?
जवाब- 334 कमर पर हाथ रखकर और पाँव चौडे किये हुए मनुष्य जैसा आकार चौदह राजलोक का है ।
प्रश्न- 335 संपूर्ण लोक को कितने भागों में बांटा जाता है ?
जवाब- 335 तीन भाग में
प्रश्न- 336 लोक में कितने द्वीप, समुद्र, नदियाँ हैं ?
जवाब- 336 असंख्यात ।
प्रश्न- 337 मध्यलोक में मध्य में क्या स्थित है ?
जवाब- 337 जम्बुद्वीप ।
प्रश्न- 338 जम्बुद्वीप कितने योजन प्रमाण है ?
जवाब- 338 एक लाख योजन ।
प्रश्न- 339 जम्बुद्वीप के मध्य में क्या स्थित है ?
जवाब- 339 मेरुपर्वत ।
प्रश्न- 340 मेरुपर्वत कितने योजन चौडा एवं ऊँचा है ?
जवाब- 340 मेरुपर्वत दस हजार योजन चौडा और एक लाख योजन ऊंचा है ।
प्रश्न- 341 मेरुपर्वत के मूल में आठ रुचक प्रदेश वाला भाग क्या कहलाता है ?
जवाब- 341 समभूतला ।
प्रश्न- 342 जम्बूद्वीप किस प्रकार एक लाख योजन प्रमाण का है ?
जवाब- 342
1. भरत क्षेत्र 526 योजन 6/19 कला
2. ऐरावत क्षेत्र 526 योजन 6/19 कला
3. लघुहिमवन्त पर्वत 1052 योजन 12/19 कला
4. शिखरी पर्वत 1052 योजन 12/19 कला
5. हिमवन्त क्षेत्र 2105 योजन 5/19 कला
6. हिरण्यवंत क्षेत्र 2105 योजन 5/19 कला
7. महाहिमवंत पर्वत 4210 योजन 10/19 कला
8. रुक्मि पर्वत
4210 योजन 10/19 कला
9. हरिवर्ष क्षेत्र 8421 योजन 1/19 कला
10. रम्यक् क्षेत्र 8421 योजन 1/19 कला
11. निषध पर्वत 16842 योजन 2/19 कला
12. नीलवंत पर्वत 16842 योजन 2/19 कला
13. महाविदेह क्षेत्र 33684 योजन 4/19 कला
(नोटः- 19 कलाओं का एक योजन होता है ) कुल – 1,00,000 योजन
प्रश्न- 343 जम्बुद्वीप में कितने शाश्वत पर्वत है ?
जवाब- 343 जम्बुद्वीप में स्थित 269 शाश्वत पर्वत इस प्रकार है ।
वर्षधर पर्वत - 7
वृत्त वैताढ्य पर्वत - 4
दीर्घ वैताढ्य पर्वत - 34
वक्षस्कार पर्वत - 16
यमक पर्वत - 2
चित्र-विचित्र पर्वत - 2
कंचन पर्वत - 200
गजदन्त पर्वत - 4
कुल शाश्वत पर्वत - 269
प्रश्न- 344 जम्बुद्वीप में कितने शाश्वत पर्वत शिखर हैं ?
जवाब- 344 467 ।
प्रश्न- 345 जम्बुद्वीप में कितने नदी-समुद्र संगम वाले शाश्वत तीर्थ हैं ?
जवाब- 345 162 ।
प्रश्न- 346 जम्बुद्वीप में विद्याधर-आभियोगिक देवों की श्रेणियाँ कितनी हैं ?
जवाब- 346 136 ।
प्रश्न- 347 जम्बुद्वीप में कितनी विजय हैं ?
जवाब- 347 34 ।
प्रश्न- 348 जम्बुद्वीप में कितने द्रह (कुण्ड) हैं ?
जवाब- 348 16 (10 लघु द्रह एवं 6 महाद्रह) ।
प्रश्न- 349 जम्बुद्वीप में कितनी शाश्वत नदियाँ हैं ?
जवाब- 349 14,56,000 ।
प्रश्न- 350 जम्बुद्वीप में कितनी शाश्वत महानदियाँ है ?
जवाब- 350 84 ।
प्रश्न- 351 मनुष्यलोक कितने भाग में स्थित है ?
जवाब- 351 ढाई द्वीप ।
प्रश्न- 352 ढाई द्वीप किस प्रकार 45 लाख योजन का होता है ?
जवाब- 352 1. एक लाख योजन का जम्बुद्वीप है ।
2. उसके पूर्व-पश्चिम में दो दो लाख योजन के लवणसमुद्र हैं ।
3. उसके पूर्व-पश्चिम में चार चार लाख योजन के धातकीखण्ड है ।
4. उसके पूर्व-पश्चिम में आठ आठ लाख योजन के कालोदधिसमुद्र हैं ।
5. उसके पूर्व-पश्चिम में आठ आठ लाख योजन का अर्धपुष्करावर्त द्वीप हैं ।
1+4+8+16+16 = 45 लाख योजन
प्रश्न- 353 अधोलोक में कितने पदार्थ अंधकार करते है ?
जवाब- 353 चार पदार्थः- 1.नरक 2.नारकी 3.पाप कर्म 4.अशुभ पुद्गल ।
प्रश्न- 354 तिर्यग्लोक में कितने पदार्थ उजाला करते है ?
जवाब- 354 चार पदार्थः- 1.चन्द्र 2.सूर्य 3.मणि 4.ज्योति (अग्नि) ।
प्रश्न- 355 उर्ध्वलोक में कितने पदार्थ उद्योत करते है ?
जवाब- 355 चार पदार्थः- 1.देव 2.देवियाँ 3.विमान 4.आभूषण ।
प्रश्न- 356 नारकी जीवों के कितने प्रकार का आहार होता है ?
जवाब- 356 चार प्रकार का
1. अंगारोपम – अल्पकालीन दाह वाला ।
2. मुर्मरोपम – दीर्घकालीन दाह वाला ।
3. शीतल – शीत वेदना उत्पन्न करने वाला ।
4. हिमशीतल – अत्यन्त शीत वेदना उत्पन्न करने वाला ।
प्रश्न- 357 तिर्यंच प्राणीयों का आहार कितने प्रकार का होता हैं ?
जवाब- 357 चार प्रकार का
1. कंकोपम – सरलता से खाने एवं पकने योग्य आहार ।
2. विलोपम – बिना चबाये निगला जाने वाला आहार ।
3. पाण-मांसोपम – चाण्डाल के मांस समान घृणित आहार ।
4. पुत्र-मांसोपम – पुत्र के मांस समान निन्द्य आहार ।
प्रश्न- 358 मनुष्यों का कितने प्रकार का आहार होता हैं ?
जवाब- 358 चार प्रकारका
1.अशन 2.पान 3.खादिम 4.स्वादिम ।
प्रश्न- 359 देवों का कितने प्रकार का आहार होता है ?
जवाब- 359 चार प्रकारका
1. उत्तम वर्ण वाला 2. उत्तम गंध वाला
3. उत्तम रस वाला 4. उत्तम स्पर्श वाला ।
प्रश्न- 360 किन चार कारणों से मनुष्यलोक एवं देवलोक में अंधकार होता है ?
जवाब- 360 1. तीर्थंकरो का विच्छेद होने पर ।
2. तीर्थंकर प्ररुपित धर्म का विच्छेद होने पर ।
3. पूर्वगत श्रुत का विच्छेद होने पर ।
4. अग्नि का विच्छेद होने पर ।
प्रश्न- 361 किन चार कारणों से मनुष्य लोक और देवलोक में प्रकाश होता है, देवों के आसन चलायमान होते हैं, देव मनुष्य लोक में आते हैं ?
जवाब- 361 1. तीर्थंकरो के च्यवन एवं जन्म कल्याणक के अवसर पर ।
2. तीर्थंकरो के दीक्षा कल्याणक के अवसर पर ।
3. तीर्थंकरो के केवलज्ञान कल्याणक के अवसर पर ।
4. तीर्थंकरो के निर्वाण कल्याणक के अवसर पर ।
प्रश्न- 362 संपूर्ण लोक में एसी चार चीजे कौनसी हैं जो समान रुप से एक लाख योजन विस्तार वाली हैं ?
जवाब- 362 1. सातवीं नरक में स्थित अप्रतिष्ठान नामक नरकावास 2. जम्बूद्वीप 3. सौधर्मेन्द्र का पालकयान नामक विमान 4. सर्वार्थसिद्ध विमन ।
प्रश्न- 363 सम्पूर्ण लोक में ऐसी चार चीजें कौनसी हैं, जो समान रुप से 45 लाख योजन याजन विस्तार वाली है ?
जवाब- 363 1. प्रथम नरक में स्थित सिमन्तक नरकावास 2.अढीद्वीप 3.सौधर्म देवलोक के प्रथम प्रतर का मध्यमवर्ती उड्डुविमान 4.सिद्धशिला ।
प्रश्न- 364 किन चार कारणों से जीव और पुद्गल लोक से बाहर (अलोक) गमन करने में समर्थ नहीं है ?
जवाब- 364 1.गति का अभाव 2.धर्मास्तिकाय का अभाव 3.लोकान्त में स्निग्ध पुद्गलों का अभाव 4.लोक की स्वाभाविक मर्यादा ।
प्रश्न- 365 जीवात्माओ को अल्प बहुत्व की अपेक्षा से बताओ ?
जवाब- 365 इस विश्व में 1.सबसे कम मनुष्य हैं । 2.नैरयिक उनसे असंख्यात गुणा हैं । 3.देव उनसे असंख्य़ात गुणा हैं । 4.सिद्ध उनसे अनन्तगुणा हैं । 5.तिर्यंच उनसे अनन्तगुणा हैं ।
प्रश्न- 366 जीव कितने प्रकार के होते हैं ?
जवाब- 366 1.भव्य 2.अभव्य 3.जाति भव्य ।
प्रश्न- 367 भव्य जीव किसे कहते है ?
जवाब- 367 जिन जीवों में मोक्ष पाने की योग्यता होती है, वे जीव, जो कभी न कभी सिद्धत्व को अवश्यमेव प्राप्त करेंगे, वह भव्य जीव कहलाते हैं ।
प्रश्न- 368 अभव्यजीव किसे कहते है ?
जवाब- 368 वे जीव, जो अनन्त काल तक संसार में ही भ्रमण करते रहेंगे, मोक्ष में जाने की अयोग्ता वाले जीव अभव्य कहलाते है ।
प्रश्न- 369 जातिभव्य जीव किसे कहते है ?
जवाब- 369 वे जीव, जो भव्य तो हैं परन्तु अनंतकाल तक अव्यवहार से व्यवहार राशी में नहीं आयेंगे और जिसे कभी धर्म आराधना के साधन रुप जिनागम, जिनवाणी, जिनप्रतिमा प्राप्त नही होने से कभी भी मोक्ष में नहीं जायेंगे, उन्हें जाति भव्य जीव कहते है ।
प्रश्न- 370 भव्य जीव कितने प्रकार के होते है ?
जवाब- 370 तीन प्रकार के 1.आसन्न भव्य 2.मध्यम भव्य 3.दुर्भव्य ।
प्रश्न- 371 आसन्न भव्य जीव किसे कहते है ?
जवाब- 371 वह जीव जो एकाध भव में ही मोक्ष प्राप्त करेगा, उसे आसन्न भव्य जीव कहते है ।
प्रश्न- 372 मध्यम भव्य जीव किसे कहते है ?
जवाब- 372 वह जीव जो 3, 5, 7, 9 या कुछ अधिक भवों में मोक्ष प्राप्त करेगा, उसे मध्यम भव्य जीव कहते है ।
प्रश्न- 373 दुर्भव्य जीव किसे कहते हैं ?
जवाब- 373 वह जीव जो अनन्तकाल के बाद मोक्ष प्राप्त करेगा, उसे दुर्भव्य कहते है ।
प्रश्न- 374 असंज्ञी किसे कहते है ?
जवाब- 374 जिस जीव में सोचने-विचार करने के लिये मनोबल प्राण नहीं होता है, वह असंज्ञी कहलाता है ।
प्रश्न- 375 हेतुवादोपदेशिकी संज्ञा किसे कहते है ?
जवाब- 375 मात्र वर्तमान काल का विचार करने की शक्ति को हेतुवादोपदेशिकी संज्ञा कहते है ।
प्रश्न- 376 दीर्घकालिकी संज्ञा किसे कहते है ?
जवाब- 376 तीनों काल का विचार करने की शक्ति को दीर्घकालिकी संज्ञा कहते है ।
प्रश्न- 377 द्रष्टिवादोपदेशिकी संज्ञा किसे कहते है ?
जवाब- 377 सम्यग्द्रष्टि जीव की विचार-शक्ति को द्रष्टिवादोपदेशिकी संज्ञा कहते है ।
प्रश्न- 378 आहार किसे कहते है ?
जवाब- 378 जिससे जीव अपनी क्षुधा को शान्त करता है, उसे आहार कहते है ।
प्रश्न- 379 आहार के कितने प्रकार होते है ?
जवाब- 379 तीन प्रकारः- 1.ओजाहार 2.लोमाहार 3.कवलाहार ।
प्रश्न- 380 ओजाहार किसे कहते है ?
जवाब- 380 उत्पत्ति के प्रथम समय से जब तक शरीर पर्याप्ति पूर्ण न हो तब तक जीव शुक्र-शोणित आदि औदारिक पुद्गलों को आहार करता है, उसे ओजाहार कहते है ।
प्रश्न- 381 लोमाहार किसे कहते है ?
जवाब- 381 शरीर पर्याप्ति पूर्ण होने के बाद स्पर्शनेन्द्रिय (त्वचा) के द्वारा लिया जाने वाला आहार लोमाहार कहलाता है ।
प्रश्न- 382 कवलाहार किसे कहते है ?
जवाब- 382 मुख से किया जाने वाला अन्न, फल आदि चार प्रकार का आहार कवलाहार कहलाता है ।
प्रश्न- 383 प्राण कितने प्राकार के होते है ?
जवाब- 383 दस प्रकार केः- 1.स्पर्शनेन्द्रिय 2.रसनेन्द्रिय 3.घ्राणेन्द्रिय 4.चक्षुरिन्द्रिय 5.श्रोतेन्द्रिय 6.मनोबल प्राण 7.वचनबल प्राण 8.कायबल प्राण 9.श्वासोच्छवास 10.आयुष्य ।
प्रश्न- 384 आयुष्य प्राण किसे कहते है ?
जवाब- 384 जिस शक्ति से जीव शरीर में जीता हैं, रहता है, उसे आयुष्य प्राण कहते है ।
जवाब- 301 पांचवें ब्रह्मदेवलोक से उपर के किसी भी देवलोक तक जाते है ।
प्रश्न- 302 अनुत्तर वैमानिक देवों की विशेषता बताओ ?
जवाब- 302 सर्वार्थसिद्ध विमान के देव एकावतारी होते हैं । मनुष्य जन्म धारण कर नियमतः उसी भव में सिद्धपद को उपलब्ध करते हैं ।
प्रश्न- 303 देवों में कितने प्राण पाये जाते हैं ?
जवाब- 303 देवों में पांच इन्द्रिय प्राण, तीन बल प्राण, श्वासोच्छवास और आयुष्य रुप दसों ही प्राण पाये जाते हैं ।
प्रश्न- 304 जीव के कुल कितने भेद होते है ?
जवाब- 304 563 ।
सिद्ध विवेचन
प्रश्न- 305 सिद्ध किसे कहते हैं ? जवाब- 305 वे जीव, जिन्होंने आठों कर्मों का समूल – संपूर्ण नाश कर दिया है , जन्म – मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष में बिराजमान हो चुके है, वे सिद्ध कहलाते हैं ।
प्रश्न- 306 सिद्धों के कितने भेद होते हैं ?
जवाब- 306 सिद्धों के पन्द्रह भेद होते हैं जो निम्नलिखित हैं-
1. अतीर्थ सिद्धः- वे जीव, जो चतुर्विध संघ की स्थापना, तीर्थ की स्थापना से पूर्व सिद्ध होते हैं, जैसे मरुदेवी माता ।
2. तीर्थ सिद्धः- वे जीव, जो तीर्थंकर परमात्मा के शासन में मोक्ष में जाते हैं । तीर्थ की स्थापना के बाद सिद्ध बनते हैं । जैसे सुधर्मा स्वामी ।
3. तीर्थंकर सिद्धः- वे जीव, जो अरिहंत-तीर्थंकर के रुप में मोक्ष उपलब्ध करते हैं, जैसे महावीरादि चौबीस तीर्थंकर ।
4. अतीर्थंकर सिद्धः- वे जीव, जो सामान्य केवली के रुप में सिद्धता की संपदा उपलब्ध करते हैं, जैसे चंदनबाला ।
5. गृहलिंग सिद्धः- वे जीव, जो गृहावस्था में केवलज्ञान प्राप्त करते हैं और मोक्ष में जाते हैं, जैसे मरुदेवी माता ।
6. स्वलिंग सिद्धः- वे जीव, जो तीर्थंकर की वाणी के अनुरुप श्रमणवस्था में सिद्ध बनते हैं । जैसे सुधर्मा स्वामी ।
7. अन्यलिंग सिद्धः- वे जीव, जो श्रमण के अतिरिक्त अन्य वेश एवं अवस्था में सिद्ध बनते हैं । जैसे वल्करचिरि आदि ।
8. पुरुषलिंग सिद्धः- वे जीव, जो पुरुषावस्था में सिद्ध बनते हैं । जैसे पुंडरीक स्वामी आदि ।
9. स्त्रीलिंग सिद्धः- वे जीव, जो स्त्री अवस्था में सिद्धता प्राप्त करते हैं । जैसे मृगावती आदि ।
10. नपुंसक सिद्धः- वे जीव, जो नपुंसक अवस्था में सिद्ध बनते है । जैसे गांगेय अणगार ।
11. प्रत्येक बुद्ध सिद्धः- वे जीव, जो निमित्तो के द्वारा असारता का बोध प्राप्त करके सिद्ध पद प्राप्त करते हैं । जैसे नग्गति, दुम्मुह आदि ।
12. स्वयंबुद्ध सिद्धः- वे जीव, जो स्वयं से बोध प्राप्त कर सिद्धि पद प्राप्त करते हैं । जैसे महावीर प्रभु ।
13. बुद्धबोधित सिद्धः- किसी बोधि प्राप्त जीव से बोध प्राप्त करके सिद्धता पाने वाले । जैसे गौतम, जम्बु आदि ।
14. एक सिद्धः- अकेले ही सिद्ध पद को उपलब्ध करने वाले एक सिद्ध कहलाते हैं, जैसे महावीर ।
15. अनेक सिद्धः- अनेक आत्माओं के साथ सिद्धि प्राप्त करने वाले अनेक सिद्ध कहलाते हैं, जैसे पार्श्वनाथ स्वामी ।
प्रश्न- 307 एक समय में कितने सिद्ध होते है ?
जवाब- 307 जघन्य से एक, दो, तीन और उत्कृष्ट से एक सौ आठ सिद्ध होते हैं ।
प्रश्न- 308 किस गति से आये कितने जीव एक समय में उत्कृष्ट रुप से सिद्ध हो सकते हैं ?
जवाब- 308
गति | 1 समय में सिद्धि | |
1 | प्रथम तीन नरकों से | 10 |
2 | चौथी नरक से | 4 |
3 | शेष तीन नरकों से | सिद्धि नहीं |
4 | पंचेन्द्रिय तिर्यंच से (पुरुष वेदी) | 10 |
5 | पंचेन्द्रिय तिर्यंच से (स्त्री वेदी) | 10 |
6 | पृथ्वीकाय से | 4 |
7 | अप्काय से | 4 |
8 | वनस्पतिकाय से | 6 |
9 | तेउ-वाउकाय से | सिद्धि नहीं |
10 | मनुष्य गति से (पुरुष वेदी) | 10 |
11 | मनुष्य गति से (स्त्री वेदी) | 20 |
12 | भवनपति देवों से | 10 |
13 | भवनपति देवीयों से | 10 |
14 | व्यंतर देवों से | 10 |
15 | व्यंतर देवीयों से | 5 |
16 | ज्योतिष्क देवों से | 10 |
17 | ज्योतिष्क देवीयों से | 20 |
18 | वैमानिक देवों से | 108 |
19 | वैमानिक देवीयों से | 4 |
प्रश्न- 309 वेद की अपेक्षा से एक समय में कितने सिद्ध हो सकते है ?
जवाब- 309 1. पुरुष से पुरुष होकर 108
2. पुरुष से स्त्री-नपुंसक होकर 10
3. स्त्री से पुरुष-स्त्री-नपुंसक होकर 10
4. नपुंसक से पुरुष-स्त्री-नपुंसक होकर 10
प्रश्न- 310 सिद्ध गति कितने समय तक सिद्ध से रहित कही गयी है ? (विरहकाल)
जवाब- 310 जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट से छह माह ।
प्रश्न- 311 सिद्धों के आठ गुण कौन से है ?
जवाब- 311 1.अनन्त ज्ञान 2.अनन्त दर्शन 3.अनन्त चारित्र 4.अक्षय स्थिति 5.अगुरुलघुपन 6.अरुपीत्व 7.अनन्त वीर्य 8.अनन्त सुख ।
प्रश्न- 312 सिद्धों की अवगाहना कितनी होती है ?
जवाब- 312 सिद्ध भगवंतो के शरीर नहीं होने से अवगाहना नही होती है ।
प्रश्न- 313 सिद्धशीला कितने योजन परिमाण में हैं ?
जवाब- 313 पैंतालीस लाख योजन ।
प्रश्न- 314 अनुत्तर विमानों से कितने योजन उपर सिद्धशिला है ?
जवाब- 314 बारह योजन ।
प्रश्न- 315 सिद्धशीला के बारह नाम कौन से है ?
जवाब- 315 1.ईषत् 2.ईषत्प्राग्भरा 3.तनुत्विका 4.सिद्धि 5.सिद्धालय 6.मुक्ति 7.मुक्तालय 8.लोकाग्र 9.तन्वी 10.लोकस्तूपिका 11.लोकाग्र प्रतिवाहिनी 12.सर्वप्राणभूत सत्य सुखवहा ।
प्रश्न- 316 सिद्धशिला से कितने योजन उपर अलोक है ?
जवाब- 316 एक योजन ।
प्रश्न- 317 अगले भव में कौन-कौन मोक्षगामी हो सकते है ?
जवाब- 317 1. समस्त देव – मोक्ष (परमाधामी सिवाय)
2. मनुष्य - मोक्ष
3. पंचेन्द्रिय तिर्यंच – मोक्ष
4. नारकी – मोक्ष (सातवीं नरक सिवाय)
5. पृथ्वी-अप्-वनस्पति – मोक्ष
6. विकलेन्द्रिय – मोक्ष
7. वायुकाय-तेउकाय-मनुष्य भव नहीं (तिर्यंच गति में धर्मश्रवण)
काल विवेचन
जवाब- 318 दो भेद- 1. व्यवहार काल – समय, आवलिका, स्तोक, दिन-रात्रि आदि अथवा सैकण्ड, मिनट, घण्टा आदि ।
2. निश्चय काल – अखण्डित रुप से प्रवाहित समय निश्चय काल कहलाता है ।
प्रश्न- 319 हर अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी में कितने महान पुरुष होते हैं ?
जवाब- 319 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 बलदेव, 9 वासुदेव, 9 प्रतिवासुदेव, ये त्रेसठ महापुरुष हर अवसर्पिणी एवं उत्सर्पिणी में होते हैं । इन्हें त्रिषष्ठिशलाका पुरुष कहते हैं । इनकी संख्या न घटती हैं, न बढती हैं ।
माप विवेचन
प्रश्न- 320 अंगुल का असंख्यातवां भाग किसे कहते है ?
जवाब- 320 सुई की नोंक जितने स्थान को घेरती है, उस भाग का असंख्यातवां भाग अंगुल का असंख्यातवां भाग कहलाता है ।
प्रश्न- 321 कितने अंगुल की एक मुट्ठी होती है ?
जवाब- 321 छह अंगुल की ।
प्रश्न- 322 कितनी मुट्ठी की एक बेंत होती है ?
जवाब- 322 दो मुट्ठी की ।
प्रश्न- 323 एक हाथ कितनी बेंत का होता है ?
जवाब- 323 दो बेंत का ।
प्रश्न- 324 एक दण्ड कितने हाथ का होता है ?
जवाब- 324 दो हाथ का ।
प्रश्न- 325 एक धनुष्य कितने दण्ड का होता है ?
जवाब- 325 दो दण्ड का ।
प्रश्न- 326 धनुष्य पृथक्त्व किसे कहते है ?
जवाब- 326 दो से नौ धनुष्य प्रमाण को धनुष्य पृथक्त्व कहते है ।
प्रश्न- 327 कितने धनुष्य का एक कोस होता है ?
जवाब- 327 2 हजार ।
प्रश्न- 328 कोस का अपर नाम क्या है ?
जवाब- 328 गाऊ ।
प्रश्न- 329 कोस पृथक्त्व किसे कहते है ?
जवाब- 329 2 से 9 तक की संख्या को कोस पृथक्त्व कहते है ।
प्रश्न- 330 कितने कोस का एक योजन होता है ?
जवाब- 330 चार कोस का ।
प्रश्न- 331 विश्व किसे कहते है ?
जवाब- 331 समस्त जीवों के रहने के स्थान को विश्व (लोक) कहते है ।
प्रश्न- 332 सम्पूर्ण विश्व कितने राज प्रमाण है ?
जवाब- 332 चौदह राज प्रमाण ।
प्रश्न- 333 एक राज कितने योजन प्रमाण का होता है ?
जवाब- 333 करोड को करोड से गुणा करने पर योग फल एक कोडाकोडी प्राप्त होता है । ऐसे असंख्यात कोडाकोडी योजन प्रमाण का एक राज (रज्जु) होता है ।
प्रश्न- 334 चौदह राजलोक का आकार कैसा है ?
जवाब- 334 कमर पर हाथ रखकर और पाँव चौडे किये हुए मनुष्य जैसा आकार चौदह राजलोक का है ।
प्रश्न- 335 संपूर्ण लोक को कितने भागों में बांटा जाता है ?
जवाब- 335 तीन भाग में
प्रश्न- 336 लोक में कितने द्वीप, समुद्र, नदियाँ हैं ?
जवाब- 336 असंख्यात ।
प्रश्न- 337 मध्यलोक में मध्य में क्या स्थित है ?
जवाब- 337 जम्बुद्वीप ।
प्रश्न- 338 जम्बुद्वीप कितने योजन प्रमाण है ?
जवाब- 338 एक लाख योजन ।
प्रश्न- 339 जम्बुद्वीप के मध्य में क्या स्थित है ?
जवाब- 339 मेरुपर्वत ।
प्रश्न- 340 मेरुपर्वत कितने योजन चौडा एवं ऊँचा है ?
जवाब- 340 मेरुपर्वत दस हजार योजन चौडा और एक लाख योजन ऊंचा है ।
प्रश्न- 341 मेरुपर्वत के मूल में आठ रुचक प्रदेश वाला भाग क्या कहलाता है ?
जवाब- 341 समभूतला ।
प्रश्न- 342 जम्बूद्वीप किस प्रकार एक लाख योजन प्रमाण का है ?
जवाब- 342
1. भरत क्षेत्र 526 योजन 6/19 कला
2. ऐरावत क्षेत्र 526 योजन 6/19 कला
3. लघुहिमवन्त पर्वत 1052 योजन 12/19 कला
4. शिखरी पर्वत 1052 योजन 12/19 कला
5. हिमवन्त क्षेत्र 2105 योजन 5/19 कला
6. हिरण्यवंत क्षेत्र 2105 योजन 5/19 कला
7. महाहिमवंत पर्वत 4210 योजन 10/19 कला
8. रुक्मि पर्वत
4210 योजन 10/19 कला
9. हरिवर्ष क्षेत्र 8421 योजन 1/19 कला
10. रम्यक् क्षेत्र 8421 योजन 1/19 कला
11. निषध पर्वत 16842 योजन 2/19 कला
12. नीलवंत पर्वत 16842 योजन 2/19 कला
13. महाविदेह क्षेत्र 33684 योजन 4/19 कला
(नोटः- 19 कलाओं का एक योजन होता है ) कुल – 1,00,000 योजन
प्रश्न- 343 जम्बुद्वीप में कितने शाश्वत पर्वत है ?
जवाब- 343 जम्बुद्वीप में स्थित 269 शाश्वत पर्वत इस प्रकार है ।
वर्षधर पर्वत - 7
वृत्त वैताढ्य पर्वत - 4
दीर्घ वैताढ्य पर्वत - 34
वक्षस्कार पर्वत - 16
यमक पर्वत - 2
चित्र-विचित्र पर्वत - 2
कंचन पर्वत - 200
गजदन्त पर्वत - 4
कुल शाश्वत पर्वत - 269
प्रश्न- 344 जम्बुद्वीप में कितने शाश्वत पर्वत शिखर हैं ?
जवाब- 344 467 ।
प्रश्न- 345 जम्बुद्वीप में कितने नदी-समुद्र संगम वाले शाश्वत तीर्थ हैं ?
जवाब- 345 162 ।
प्रश्न- 346 जम्बुद्वीप में विद्याधर-आभियोगिक देवों की श्रेणियाँ कितनी हैं ?
जवाब- 346 136 ।
प्रश्न- 347 जम्बुद्वीप में कितनी विजय हैं ?
जवाब- 347 34 ।
प्रश्न- 348 जम्बुद्वीप में कितने द्रह (कुण्ड) हैं ?
जवाब- 348 16 (10 लघु द्रह एवं 6 महाद्रह) ।
प्रश्न- 349 जम्बुद्वीप में कितनी शाश्वत नदियाँ हैं ?
जवाब- 349 14,56,000 ।
प्रश्न- 350 जम्बुद्वीप में कितनी शाश्वत महानदियाँ है ?
जवाब- 350 84 ।
प्रश्न- 351 मनुष्यलोक कितने भाग में स्थित है ?
जवाब- 351 ढाई द्वीप ।
प्रश्न- 352 ढाई द्वीप किस प्रकार 45 लाख योजन का होता है ?
जवाब- 352 1. एक लाख योजन का जम्बुद्वीप है ।
2. उसके पूर्व-पश्चिम में दो दो लाख योजन के लवणसमुद्र हैं ।
3. उसके पूर्व-पश्चिम में चार चार लाख योजन के धातकीखण्ड है ।
4. उसके पूर्व-पश्चिम में आठ आठ लाख योजन के कालोदधिसमुद्र हैं ।
5. उसके पूर्व-पश्चिम में आठ आठ लाख योजन का अर्धपुष्करावर्त द्वीप हैं ।
1+4+8+16+16 = 45 लाख योजन
प्रश्न- 353 अधोलोक में कितने पदार्थ अंधकार करते है ?
जवाब- 353 चार पदार्थः- 1.नरक 2.नारकी 3.पाप कर्म 4.अशुभ पुद्गल ।
प्रश्न- 354 तिर्यग्लोक में कितने पदार्थ उजाला करते है ?
जवाब- 354 चार पदार्थः- 1.चन्द्र 2.सूर्य 3.मणि 4.ज्योति (अग्नि) ।
प्रश्न- 355 उर्ध्वलोक में कितने पदार्थ उद्योत करते है ?
जवाब- 355 चार पदार्थः- 1.देव 2.देवियाँ 3.विमान 4.आभूषण ।
प्रश्न- 356 नारकी जीवों के कितने प्रकार का आहार होता है ?
जवाब- 356 चार प्रकार का
1. अंगारोपम – अल्पकालीन दाह वाला ।
2. मुर्मरोपम – दीर्घकालीन दाह वाला ।
3. शीतल – शीत वेदना उत्पन्न करने वाला ।
4. हिमशीतल – अत्यन्त शीत वेदना उत्पन्न करने वाला ।
प्रश्न- 357 तिर्यंच प्राणीयों का आहार कितने प्रकार का होता हैं ?
जवाब- 357 चार प्रकार का
1. कंकोपम – सरलता से खाने एवं पकने योग्य आहार ।
2. विलोपम – बिना चबाये निगला जाने वाला आहार ।
3. पाण-मांसोपम – चाण्डाल के मांस समान घृणित आहार ।
4. पुत्र-मांसोपम – पुत्र के मांस समान निन्द्य आहार ।
प्रश्न- 358 मनुष्यों का कितने प्रकार का आहार होता हैं ?
जवाब- 358 चार प्रकारका
1.अशन 2.पान 3.खादिम 4.स्वादिम ।
प्रश्न- 359 देवों का कितने प्रकार का आहार होता है ?
जवाब- 359 चार प्रकारका
1. उत्तम वर्ण वाला 2. उत्तम गंध वाला
3. उत्तम रस वाला 4. उत्तम स्पर्श वाला ।
प्रश्न- 360 किन चार कारणों से मनुष्यलोक एवं देवलोक में अंधकार होता है ?
जवाब- 360 1. तीर्थंकरो का विच्छेद होने पर ।
2. तीर्थंकर प्ररुपित धर्म का विच्छेद होने पर ।
3. पूर्वगत श्रुत का विच्छेद होने पर ।
4. अग्नि का विच्छेद होने पर ।
प्रश्न- 361 किन चार कारणों से मनुष्य लोक और देवलोक में प्रकाश होता है, देवों के आसन चलायमान होते हैं, देव मनुष्य लोक में आते हैं ?
जवाब- 361 1. तीर्थंकरो के च्यवन एवं जन्म कल्याणक के अवसर पर ।
2. तीर्थंकरो के दीक्षा कल्याणक के अवसर पर ।
3. तीर्थंकरो के केवलज्ञान कल्याणक के अवसर पर ।
4. तीर्थंकरो के निर्वाण कल्याणक के अवसर पर ।
प्रश्न- 362 संपूर्ण लोक में एसी चार चीजे कौनसी हैं जो समान रुप से एक लाख योजन विस्तार वाली हैं ?
जवाब- 362 1. सातवीं नरक में स्थित अप्रतिष्ठान नामक नरकावास 2. जम्बूद्वीप 3. सौधर्मेन्द्र का पालकयान नामक विमान 4. सर्वार्थसिद्ध विमन ।
प्रश्न- 363 सम्पूर्ण लोक में ऐसी चार चीजें कौनसी हैं, जो समान रुप से 45 लाख योजन याजन विस्तार वाली है ?
जवाब- 363 1. प्रथम नरक में स्थित सिमन्तक नरकावास 2.अढीद्वीप 3.सौधर्म देवलोक के प्रथम प्रतर का मध्यमवर्ती उड्डुविमान 4.सिद्धशिला ।
प्रश्न- 364 किन चार कारणों से जीव और पुद्गल लोक से बाहर (अलोक) गमन करने में समर्थ नहीं है ?
जवाब- 364 1.गति का अभाव 2.धर्मास्तिकाय का अभाव 3.लोकान्त में स्निग्ध पुद्गलों का अभाव 4.लोक की स्वाभाविक मर्यादा ।
प्रश्न- 365 जीवात्माओ को अल्प बहुत्व की अपेक्षा से बताओ ?
जवाब- 365 इस विश्व में 1.सबसे कम मनुष्य हैं । 2.नैरयिक उनसे असंख्यात गुणा हैं । 3.देव उनसे असंख्य़ात गुणा हैं । 4.सिद्ध उनसे अनन्तगुणा हैं । 5.तिर्यंच उनसे अनन्तगुणा हैं ।
प्रश्न- 366 जीव कितने प्रकार के होते हैं ?
जवाब- 366 1.भव्य 2.अभव्य 3.जाति भव्य ।
प्रश्न- 367 भव्य जीव किसे कहते है ?
जवाब- 367 जिन जीवों में मोक्ष पाने की योग्यता होती है, वे जीव, जो कभी न कभी सिद्धत्व को अवश्यमेव प्राप्त करेंगे, वह भव्य जीव कहलाते हैं ।
प्रश्न- 368 अभव्यजीव किसे कहते है ?
जवाब- 368 वे जीव, जो अनन्त काल तक संसार में ही भ्रमण करते रहेंगे, मोक्ष में जाने की अयोग्ता वाले जीव अभव्य कहलाते है ।
प्रश्न- 369 जातिभव्य जीव किसे कहते है ?
जवाब- 369 वे जीव, जो भव्य तो हैं परन्तु अनंतकाल तक अव्यवहार से व्यवहार राशी में नहीं आयेंगे और जिसे कभी धर्म आराधना के साधन रुप जिनागम, जिनवाणी, जिनप्रतिमा प्राप्त नही होने से कभी भी मोक्ष में नहीं जायेंगे, उन्हें जाति भव्य जीव कहते है ।
प्रश्न- 370 भव्य जीव कितने प्रकार के होते है ?
जवाब- 370 तीन प्रकार के 1.आसन्न भव्य 2.मध्यम भव्य 3.दुर्भव्य ।
प्रश्न- 371 आसन्न भव्य जीव किसे कहते है ?
जवाब- 371 वह जीव जो एकाध भव में ही मोक्ष प्राप्त करेगा, उसे आसन्न भव्य जीव कहते है ।
प्रश्न- 372 मध्यम भव्य जीव किसे कहते है ?
जवाब- 372 वह जीव जो 3, 5, 7, 9 या कुछ अधिक भवों में मोक्ष प्राप्त करेगा, उसे मध्यम भव्य जीव कहते है ।
प्रश्न- 373 दुर्भव्य जीव किसे कहते हैं ?
जवाब- 373 वह जीव जो अनन्तकाल के बाद मोक्ष प्राप्त करेगा, उसे दुर्भव्य कहते है ।
प्रश्न- 374 असंज्ञी किसे कहते है ?
जवाब- 374 जिस जीव में सोचने-विचार करने के लिये मनोबल प्राण नहीं होता है, वह असंज्ञी कहलाता है ।
प्रश्न- 375 हेतुवादोपदेशिकी संज्ञा किसे कहते है ?
जवाब- 375 मात्र वर्तमान काल का विचार करने की शक्ति को हेतुवादोपदेशिकी संज्ञा कहते है ।
प्रश्न- 376 दीर्घकालिकी संज्ञा किसे कहते है ?
जवाब- 376 तीनों काल का विचार करने की शक्ति को दीर्घकालिकी संज्ञा कहते है ।
प्रश्न- 377 द्रष्टिवादोपदेशिकी संज्ञा किसे कहते है ?
जवाब- 377 सम्यग्द्रष्टि जीव की विचार-शक्ति को द्रष्टिवादोपदेशिकी संज्ञा कहते है ।
प्रश्न- 378 आहार किसे कहते है ?
जवाब- 378 जिससे जीव अपनी क्षुधा को शान्त करता है, उसे आहार कहते है ।
प्रश्न- 379 आहार के कितने प्रकार होते है ?
जवाब- 379 तीन प्रकारः- 1.ओजाहार 2.लोमाहार 3.कवलाहार ।
प्रश्न- 380 ओजाहार किसे कहते है ?
जवाब- 380 उत्पत्ति के प्रथम समय से जब तक शरीर पर्याप्ति पूर्ण न हो तब तक जीव शुक्र-शोणित आदि औदारिक पुद्गलों को आहार करता है, उसे ओजाहार कहते है ।
प्रश्न- 381 लोमाहार किसे कहते है ?
जवाब- 381 शरीर पर्याप्ति पूर्ण होने के बाद स्पर्शनेन्द्रिय (त्वचा) के द्वारा लिया जाने वाला आहार लोमाहार कहलाता है ।
प्रश्न- 382 कवलाहार किसे कहते है ?
जवाब- 382 मुख से किया जाने वाला अन्न, फल आदि चार प्रकार का आहार कवलाहार कहलाता है ।
प्रश्न- 383 प्राण कितने प्राकार के होते है ?
जवाब- 383 दस प्रकार केः- 1.स्पर्शनेन्द्रिय 2.रसनेन्द्रिय 3.घ्राणेन्द्रिय 4.चक्षुरिन्द्रिय 5.श्रोतेन्द्रिय 6.मनोबल प्राण 7.वचनबल प्राण 8.कायबल प्राण 9.श्वासोच्छवास 10.आयुष्य ।
प्रश्न- 384 आयुष्य प्राण किसे कहते है ?
जवाब- 384 जिस शक्ति से जीव शरीर में जीता हैं, रहता है, उसे आयुष्य प्राण कहते है ।
बहुत अच्छा कार्य मैं इसकी प्रशंसा करता हूँ|
ReplyDeleteबहुत बहुत ज्ञान सीखने योग्य
ReplyDeleteBhavi jiv me bhi ham kon si category me ate he jese asan/Madhya ya durbhavya ye kese pata chal Sakta hai? Pl. Reply....thnx for co-operation
ReplyDeleteबहुत ही उपयोगी जानकारी बहुत कुछ सीखने को मिल जाता है आप ही इस पोस्ट से ज्ञानवर्धक बातें सीखने को मिल रही हैं
ReplyDeleteI want to read more n more about jainisum philosophy....pl help me what should I do....if you can guide me
ReplyDeleteसुपर जानकारी इस प्रकार की मिलती रहे
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