HAVE YOU EVER THOUGHT ? Who Are You ? A Doctor ? An Engineer ? A Businessman ? A Leader ? A Teacher ? A Husband ? A Wife ? A Son ? A Daughter are you one, or so many ? these are temporary roles of life who are you playing all these roles ? think again ...... who are you in reality ? A body ? A intellect ? A mind ? A breath ? you are interpreting the world through these mediums then who are you seeing through these mediums. THINK AGAIN & AGAIN.
Sunday, 1 March 2015
मोहनीय कर्म :-
8 प्रकार के कर्मों में मोहनीय कर्म सभी कर्मों का राजा है व राजा होने के कारण इसने अपने साम्राज्य को पूरी दुनिया में फैला रखा है। इस राजा पर विजय पाना अत्यंत दुर्लभ व कठिन कार्य है। बड़े-बड़े सन्यासी भी मोह के प्रभाव में पथ भ्रमित हो लक्ष्य से भटके हैं। अन्नत जन्मों के संस्कार हमारे भीतर में जमे हुए हैं। इन संस्कारों की विद्यमानता से व्यक्ति मोह के जाल में फंसा हुआ है। अनेक लोग दुनिया में अकाल मृत्यु का ग्रास बनते हैं, परंतु जब कोई सगा-संबंधी मरता है तो परिजनों को दु:ख होता है। यह सब मोह के कारण ही होता है। व्यक्ति जब धर्म-ध्यान के द्वारा इन कर्मों को हलका करने का प्रयास करता है तभी प्रमाद, निंद्रा, तंद्रा, व आलस्य के माध्यम से मोहनीय कर्म उसके उदय में आते हैं व मन चंचल बनने लगता है। निरंतर जप, तप ध्यान, स्वास्थ्य व प्रभु सिमरण के द्वारा मानव अपने मन की एकाग्रता को स्थापित कर इस चक्रव्यूह में फंसने से बच कर मोक्षगामी बन बार-बार जन्म-मरण से मुक्ति प्राप्त कर सकता है।
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