Sunday, 1 March 2015

निर्वाण के पश्चात् तीर्थंकर के शरीर-संस्कार :- "तीर्थंकर का निर्वाण होने पर देवेन्द्र ने आज्ञा दी कि गोशीर्ष व चंदन काष्ठ एकत्र कर चितिका बनाओ, क्षीरोदधि से क्षीरोदक लाओ, तीर्थंकर के शरीर को स्नान कराओ, और उसका गोशीर्षचंदन से लेप करो। तत्पश्चात् शक्र ने हंसचिन्ह-युक्त वस्त्रशाटिका तथा सर्व अलंकारों से शरीर को भूषित किया, व शिविका द्वारा लाकर चिता पर स्थापित किया। अग्निकुमार देव ने चिता को प्रज्वलित किया, और पश्चात् मेघ कुमार देव ने क्षीरोदक से अग्नि को उपशांत किया। शक्र देवेन्द्र ने भगवान् की ऊपर की दाहिनी व ईशान देव ने बांयी सक्थि (अस्थि) ग्रहण की, तथा नीचे की दाहिनी चमर असुरेन्द्र ने, व बांयी बलि ने ग्रहण की। शेष देवों ने यथायोग्य अवशिष्ट अंग-प्रत्यंगों को ग्रहण किया। फिर शक्र देवेन्द्र ने आज्ञा दी कि एक अतिमहान् चैत्य स्तूप भगवान् तीर्थंकर की चिता पर निर्माण किया जाय; एक गणधर की चिता पर और एक शेष अनगारों की चिता पर। देवों ने तदनुसार ही परिनिर्वाण महिमा की। फिर वे सब अपने-अपने विमानों व भवनों को लौट आये, और अपने-अपने चैत्य-स्तंभों के समीप आकर उन जिन-अस्थियों को वज्रमय, गोल वृत्ताकार समुद्गकों (पेटिकाओं) में स्थापित कर उत्तम मालाओं व गंधों से उनकी पूजा-अर्चा की।"

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